बुधवार, 14 नवंबर 2012

ग्यारहवाँ पन्ना



किशोर की डायरी /सुधा भार्गव 




पापा एक हफ्ते के बाद सिंगापुर  से आये हैं ।उनका हवाई जहाज  देर से आया ।माँ आपको डिनर  पार्टी में जाना था उनका इन्तजार नहीं कर सकीं ।
मैं ड्राइंग रूम में बैठकर घड़ी देखने लगा ----प्यारे पापा----- आते होंगे ---बस आते ही होंगे ।
पापा आ गए ।बड़े थके -थके लग रहे थे ।घर में घुसते ही उनकी निगाहें आपको ढूँढ़ रही थीं ।

माँ ,आपके बिना वे अकेले हैं ।मैं अकेलेपन का दर्द जानता हूँ ।वह तो अच्छा है कि मैं यहाँ हूँ  ।मैं ही उनका साथ दे दूँगा । 
पापा नहा -धोकर कुर्सी पर बैठने ही वाले थे कि  मैं चिल्लाया --पापा मेरे पास बैठो ।वे चेहरे पर एक जबरदस्ती मुस्कान लाये और मेरी पास वाली कुर्सी पर बैठ गए ।इससे  मुझे बड़ा  सुख मिला  ।

मुझे बहुत भूख लग रही थी ।सोचा  पापा को भी लग रही होगी ,सो मैंने पूछा -खाना लाऊँ !
-तुमने खा लिया बेटे ?
-नहीं पापा ।मेरी आँख का एक कोना गीला हो गया ।

-चलो दोनों मिलकर खाते हैं ।
हम मेज -कुर्सी पर पास -पास बैठ गए ।पापा ने पहले मेरी प्लेट लगाई फिर अपनी ।मैं खुश होकर खाने लगा मालूम है क्यों ?बहुत दिनों के बाद ऐसा मौक़ा आया  कि  पापा मेरे  साथ थे ।लेकिन पापा बना हिलेडुले बैठे ही रहे ।मैंने झुककर उनकी आँखों में झांका |पापा की आँखें गीली थीं ।अचानक  एक बूँद टप से उनके हाथ पर  चूँ पड़ी ।  मैं सिसक पड़ा --   नहीं पापा जी !मैंने लपककर उस बूंद को मिटा दिया ।

पापा ने मुझे अपने सीने से चिपका कर भींच लिया ।आज मुझे मालूम हुआ मेरी ही नहीं मेरे पापा की आँखें भी गीली रहती हैं मगर क्यों --समझ नहीं पा रहा हूँ  ।



शनिवार, 10 नवंबर 2012

दसवाँ पन्ना




किशोर डायरी /सुधा भार्गव  












इस बार लक्ष्य छुट्टियों में नही आ  रहा है ।चाचा जी अस्वस्थ हैं ।चाची उनको  अकेला छोड़ नहीं सकतीं और लक्ष्य बिना चाची के कहीं  रह नहीं   सकता ।



आपको जब यह मालूम हुआ तो खुशी -खुशी मुझे चाचाजी के पास भेजने का इरादा बना लिया वह भी एक माह को ।बिना मुझसे पूछे  मेरे बार में निर्णय ले लिया ।एक बार तो मुझसे पूछ लिया  होता ---।जानता  हूँ --बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ --मेरे रहने से आपकी आजादी में खलल पड़ता है ।अब कुछ दिनों को तो बंधन मुक्त हो गईं ।मुझे भी आपकी याद नहीं सतायेगी ---आदत जो पड़  गई है बिना आपके रहने की ।

एक बात नहीं समझ सका ।जब कोई माँ अपने बच्चे की अंगुली पकडे सड़क पर जाती है या उसे दुलारती है ,जब  खूँटे से बंधी गाय अपने बच्चे को चूमती -चाटती है तो मेरे सीने में बेचैनी होने लगती है ।दोनों हथेलियों से मुंह ढाप कर जोर- जोर से रोने को मन करता है ।ऐसा मेरे साथ क्यों होता है---- ?

कोई  भूख लगने पर रोता है कोई माँ के न होने पर रोता है ,कोई मनपसंद खिलौना न मिलने पर आँसू  गिराता है ।मेरे पास तो यह सब कुछ है  फिर भी आँखें बार -बार गीली हो जाती हैं ।इसकी भाषा कोई नहीं जानता !


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शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

नौवाँ पन्ना


किशोर डायरी /सुधा भार्गव   






मेरा चचेरा भाई कक्षा 5 में पढता  है । उसका नाम लक्ष्य है ।ज्यादातर कक्षा में पहले या दूसरे नंबर  आता है ।गरमी की छुट्टियों में चाची हमेशा उसके साथ आती हैं ।चाची घर पर ही रहती हैं ।पेंटिंग का उन्हें बड़ा शौक है ।इतने सुन्दर रंग  लगाती हैं कि देखने वाला उसे खरीद ही ले ।चाचाजी काम के चक्कर में देश -विदेश जाते  रहते हैं ।उनके हिस्से का प्यार भी वे उस पर  उड़ेल देती हैं ।

वह बड़ा भाग्यवान है जो उसे चाची जैसी माँ मिली हैं ।स्कूल से आकर एक -एक बात उन्हें बताता है ।चाची धैर्य से सुनकर अपनी राय  देती हैं ।एक  अच्छे दोस्त की तरह हमेशा उसकी जरूरत पर उसके साथ खड़ी  रहती हैं ।उसको कोई  मास्टर पढ़ाने  नहीं आता ।चाची ही उसकी गुरू हैं ।

माँ ,आप हमेशा उससे बराबरी करती रहती हो ---देख तो कितने अच्छे नंबरों से पास हुआ है ।कुछ तो सीख उससे ।ऐसा कहकर आप हमेशा मुझे नीचा दिखाती हो ।मेरी आँखें आंसुओं से भर जाती हैं ।उन्हें टपकने से जबरदस्ती रोकता हूँ पर मन करता है दहाड़ मारकर रो पडूँ --शायद कोई मेरे अन्दर का दर्द समझ सके ।

हाँ ---हाँ मुझमे और लक्ष्य में अन्तर है -----ठीक उसी तरह --जैसे उसकी माँ और मेरी माँ में है ।अभी मुझमें इतना कहने का साहस नहीं है पर एक दिन साहस आ ही जाएगा और यह सच अवश्य कहूँगा  ।

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आठवाँ पन्ना



 किशोर डायरी /
सुधा भार्गव 


नौकरानी को सुबह आने में देर हो गई | घर में दूध - ब्रेड चाहिये थी ।पापा जैसे ही बाजार जाने को तैयार हुए ,मैंने कहा --मैं दूध ब्रेड लेकर आता हूँ ।
-तुम कहाँ जाओगे ।तुम्हारे हाथ से चोर -उचक्का रुपया छीन कर ले जा सकता  है ।

पापा आपने  मुझे एक पल में ही बता दिया कि  मैं किसी काम का नहीं ।माँ से थोड़ी उम्मीद थी   --पूछा 
--माँ ब्रेड ले आऊँ ।
-नहीं --नहीं,बासी ब्रेड ले आओगे ।सड़क भी ऊबड़ खाबड़ है --गिर पड़ोगे ।घर में ही बैठो ।
मन में उथल पुथल होने लगी --क्या मैं इतना बेबकूफ हूँ ।

थोड़ी देर में रसोई में पानी लेने पहुंचा ।पीछे -पीछे माँ ,आप जा पहुंची--
-क्या करना है ?
--फ्रिज से पानी लूंगा ।
--मैं देती हूँ ,तू  इसे खुला छोड़ देगा ।

छूट्टी  के दिन बस यही नाटक होता है ।जब आप आठ -आठ -घंटे घर से गायब रहती हैं तब भी तो नौकरानी गड़बड़ करती रहती है ।उससे कुछ नहीं कहतीं ।कहें भी कैसे ---ज़रा चूँ चपड़  की तो घर का काम छोड़कर चली जायेगी ।मैं तो घर छोड़कर जा भी नहीं सकता |आप दोनों मेरी मजबूरी का फायदा उठाते हैं ।

मुझे  आप कोई काम नहीं सिखाएंगी----बस डराती रहेंगी या डरती  रहेंगी । माँ--- इतना न डराओ वरना  मुझे कोई  काम ही नहीं आयेगा ।ऐसी जिन्दगी से मैं तंग आ चुका हूँ ।मुझे कायर बना कर रख देंगी ।शुरू में सबसे गलती होती है ।गलती नहीं करूंगा तो सीखूँगा कैसे ?अपने पर भरोसा कैसे होगा ।

क्या आप चाहती हैं --बात -बात पर आपका मुंह ताकता रहूं ,अपने पैरों पर न खड़ा होऊं ।

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गुरुवार, 8 नवंबर 2012

सातवाँ पन्ना


किशोर  डायरी /सुधा भार्गव  






आज मुझे रिपोर्ट कार्ड मिला ।मेरे दोस्तों के साथ उनकी माँ या बाप थे ।कोई आफिस से छुट्टी लेकर आया था ,कोई घर का काम छोड़कर अपने बच्चे की मैडम से मिलने आया था ।सब उनकी कमियाँ या खूबियाँ जानना चाहते थे ।

आप कैसे आतीं ! आफिस में कुछ ख़ास लोग आने वाले थे ।मेरी परवाह भी कहाँ है आपको ।पापा का तो मेरे लिए होना या न होना बराबर है ।उन्हें तो यह भी नहीं मालूम होगा  कि  मैं कौन सी कक्षा में पढ़ता  हूँ !
स्कूल जाने के लिए मैं सुबह जल्दी उठता हूँ ।उस समय वे सोते रहते हैं ।जब वे रात को फैक्टरी से लौटते हैं तो मैं सो जाता हूँ । 

बड़ा ताज्जुब है ---उन्हें अपने बॉस के लिए ,दोस्तों  के लिए ,आपके लिए समय है बस मेरे लिए-- नहीं ।
मैं रात में सो जाता हूँ तो क्या हुआ !कमरा तो खुला रहता है ।अकेले कमरे में परेशान हो जाता हूँ ।दिल से चाहता हूँ कोई आये ,मुझसे दोस्ती करे ।पापा आकर मेरे गाल की चुम्बी तो ले सकते हैं ।मैं तो सोते -सोते भी  उनको पहचान सकता हूँ ।

आप लोगों के होते हुए भी मैं अनाथों की तरह रिपोर्ट कार्ड लेने गया ।मेरा लटका मुंह देखकर मैडम बड़े अपनेपन से बोलीं --परेश मेहनत करो ,तुम अच्छे बच्चे हो ।अपनी मम्मी से कहना -फ़ोन पर बात कर लें ।मन में हंसा --मेरे लिए फुरसत हो तब ना ।

शाम को रिपोर्ट कार्ड आपकी हथेली पर रखा  ।उसे देखते ही  उसे इतनी जोर से जमीन पर पटका मानो बिच्छू ने डंक मार दिया हो ।हर विषय में मुझे बी ग्रेड मिला था ।आपने दो -तीन चांटे मेरे गाल पर जड़ दिए ।बिना रोये मैं चुप खड़ा रहा ।असल में अब मुझे मार खाने ,डांट  खाने की आदत सी हो गई है ।खाने -पीने -सोने के साथ यह भी मेरे लिए जरूरी हो गया है ।

मेरी चुप्पी से आपका पारा गर्म हो गया --
--बेशर्म की तरह खड़ा है ।न जाने दिमाग में क्या भरा है ।तीन -तीन मास्टर पढ़ने आते हैं ,तब भी बी --बी मिलता है ।कितना पैसा खर्च करवाएगा !

मैं आपको कैसे समझाऊँ -पैसे से आप मेरे लिए बुद्धि नहीं खरीद सकतीं ।मेरा दिमाग उड़ा  सा रहता है ।पढने 
की इच्छा ही नहीं होती ।पढता भी हूँ  तो दिमाग को ज्यादा देर काबू  में नहीं रख पाता ।गुस्से से तमतमाता आपका चेहरा मेरी आँखों के आगे आ जाता है ।मेरा शरीर कांपने लगता है ,आपकी डांट  मेरे लिए जहर है ।कडवे बोल शरीर में तीर की तरह चुभते रहते हैं ।मुझे सब फीका -फीका लगता है ।मेरे में न पढ़ने का उत्साह है न आगे बढ़ने की लगन

यह उत्साह मास्टरजी नहीं दे सकते ।मेरी तारीफ में यदि आप दो शब्द भी बोल  दोगी तो मुझे बड़ी ठंडक पहुंचेगी ।मुझसे कहो तो --बेटा आगे बढ़ो --ऐसा करोगे तो जरूर अच्छे नंबर लाओगे ।मुझे एक बार प्यार से रास्ता तो दिखाओ --फिर देखना मेरा उत्साह !अपने साथियों को  पढ़ाई में ही नहीं खेल में भी पछाड़ दूँगा ।  मेरी ओर  ममता का हाथ तो बढ़ाओ ---।
लेकिन नहीं ------आप नहीं समझोगी ।मेरे साथ उठने -बैठने से आपका कीमती समय नष्ट होता है ।कई बार सुन चुका हूँ --पढ़ूँगा तो यह होगा --नहीं पढ़ूँगा तो यह होगा ।मैं इस चक्र को नहीं समझता ।मैं तो वही कर पात़ा हूँ जो मेरा दिमाग कहता है ।दिमाग क्या कहता है वह भी आप पर निर्भर करता है ।आप अपने व्यवहार से जैसा सिखाओगी ,उसकी छाप हमेशा के लिए मेरे दिमाग पर पड़ जायेगी ।अब ये आदतें अच्छी होंगी  या बुरी ,यह मैं नहीं जानता ।यह भी आप या आपकी दुनिया निश्चित करेगी ।मैं तो इस समय दूसरों के हाथों की कठपुतली हूँ ।



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छटा पन्ना



किशोर डायरी 

दादी माँ बताती हैं --

आप रोज मंदिर जाती थीं ।भगवान् से कहती थीं --मुझे एक  गुड्डा चाहिए ।

उसने गुड्डे के रूप में मुझे भेज  दिया ।उस समय मेरे दांत नहीं थे ,चल फिर भी नहीं सकता था ।आपने मुझे दूध पीना सिखाया ।रगड़ -रगड़ कर नहलातीं,गोदी में लिए घूमतीं ।
धीरे -धीरे दांत निकल आये ,चलने फिरने लगा ,पहले -पहले दाल चावल सटक जाता था ,अब खूब चबा -चबा कर खाता हूँ ।

लेकिन  माँ यह सब एक दिन में नहीं हुआ ,धीरे -धीरे हुआ ।अभी तो मुझे बहत  कुछ सीखना है ।आपको धैर्य तो रखना ही पडेगा ।क्यों जल्दी -जल्दी में अपनी आवाज भी कड़वी  कर लेती हो ।लगता है मुझसे तंग आ गई  हो ।पर मेरा क्या कसूर !
मैं खुद आपके पास चलकर नहीं आया बल्कि बुलाया गया ।मैं तो भगवान् का दिया उपहार हूँ ।इसकी देखभाल तो करनी ही पड़ेगी --चाहे खुश होकर करो या  दुखी होकर ।दुखी होकर करोगी तो मैं मुरझा जाऊँगा ।



प्यार भरी छुअन ,प्यार भरी निगाहें तो मैं पैदा होते ही पह्चानता  हूँ ।

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पाँचवाँ पन्ना



किशोर डायरी/सुधा भार्गव 

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 आज रात मौसी -मौसा जी मिलने आये थे ।मैं चुपचाप बैठा उनकी बातें सुन रहा था ।मैंने सोचा -मुझे भी कुछ कहना चाहिए वर्ना मौसी समझेंगी मैं गूंगा हूँ ।


मैंने डरते -डरते कहा ----
-मौसी आप एक  बात बतायेंगी ---हवाईजहाज, जमीन पर दौड़ता है ,हवा में भी उड़ता है ।चिड़िया --धरती पर फुदकती है ,आकाश में उडती है ।तितली --फूलों पर बैठती है  और पंख फैलाए उडान भरती है ।मैं --केवल जमीन पर चलता हूँ ,उनकी तरह उड़ क्यों नहीं सकता ?
-बेटे, तुम्हारे पंख नहीं हैं ।
--क्यों नहीं हैं ?

इसी बीच माँ तुम बड़ी बेरहमी से मेरा गला घोंटने आ गईं --
--कितनी बार कहा है बड़े जब बातें करते हैं तो बीच में नहीं बोलना चाहिए ।फालतू की बातें मत करो और जाओ अपने कमरे में ।

तुम मुझसे अधिक शक्तिशाली हो ,इसलिए मुझ कमजोर को तुम्हारे सामने घुटने टेकने पड़े ।
आंसुओं को सभांलता  वहां से उठ गया ।
मेरा भी तो मन करता है सबसे मिलने को ।सबके साथ हंसने  को व्याकुल रहता हूँ ।

अनुशासन ही सिखाना था तो  स्नेह का हाथ फेरकर भी  समझा सकती थीं ।इस तरह मेरा अपमान करने की क्या जरूरत है ।मेरी भी तो कोई इज्जत है ।छोटा हूँ तो क्या हुआ ,महसूस तो उसी तरह करता हूँ जैसे आप करती हो ।

मैं आपसे अच्छा व्यवहार करूं इसके लिए आपको भी शिष्ट होना पड़ेगा । 

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सोमवार, 5 नवंबर 2012

किशोर डायरी



चौथा पन्ना /सुधा भार्गव 





माँ, अक्सर आप 7बजे तक घर आ जाती हो  आज तो रात के 9 बज गए ।शायद आपके आफिस में मीटिंग थी ।पापा टर्की गए हैं ।आप भी बाहर --पापा भी बाहर ।पापा यह नौकरी छोड़ क्यों नहीं देते ।एक महीने में 20 दिन अमेरिका .इटली ,न जाने कहाँ कहाँ रहते हैं ।आपको मेरे लिए समय  नहीं मगर पापा मौका पाते ही  मेरे साथ गप्पबाजी करते हैं ,बाजार से मेरी इच्छा के जूते ,टाफियां दिलाते हैं । 

एक बार आपने पापा से कहा भी था -बाहर जाने से अच्छा अपने देश की  ही नौकरी अच्छी है ।पापा तो भड़क उठे  -तुम नौकरी क्यों नहीं छोड़ देतीं ।घर को कुशलता से चलाना भी बहुत बड़ा काम है ।तुम्हें कितना पैसा चाहिए ---मैं दूंगा ।घर को बर्बाद होने से बचा लो ।

पापा की आवाज रोनी सी हो गई ।मैं बहुत घबरा गया ।पापा से लिपट गया ।पापा ने गोदी में लेकर मुझे चूम लिया ।समझ नहीं आया पापा मेरी तरह रोये  -रोये  से क्यों हो गए ।वे तो मेरी तरह छोटे नहीं हैं --फिरभी --कोई बात मिलती है हम दोनों की ।

समय काटे  नहीं कट रहा है ।हवा से पर्दा भी हिलता है तो लगता है आप आ गईं ।टी .वी देखते -देखते दस बार नींद के झोंके ले चुका हूँ ।वी डीयो  गेम खेला ,मनपसंद चाकलेट खाई ।आलू चिप्स के तो दो पैकिट खा गया ।डिनर हो गया समझो ।सोना भी चाहता हूँ और नहीं भी ।नींद का समय है नींद तो आयेगी पर आपसे बात नहीं हो पायेगी ।कितनी देर से आपका चेहरा देखने को तरस रहा हूँ

सुबह उठते ही वही भागदौड़ ।काम की भागदौड़ नहीं रहती आपके मोबाईल और टेलीफोन की भागमभाग रहती है ।नानी से आप बहुत देर तक बातें करती हो ।कभी सोचा आप मेरी   माँ हो ,मेरा दिल भी आपके सामने खुल जाना चाहता  है ।माँ की खशबू चाहता है ।चाहता हूँ आप मेरे बालों में अपनी लम्बी -लम्बी उँगलियाँ घुमाओ और मैं गहरी नींद में सो जाऊं ।मुझे अलग कमरे में सुलाती हो ताकि स्वस्थ रहूं ।ठीक ही सोचती हो मगर इस मन का क्या करूं !रात में नींद खुलने पर बाथरूम जाता हूँ ,नींद उछट  जाती है ।डर लगने लगता है । किसी कोने में जंगली बिल्ली नजर आती है ,कहीं सांप देखता हूँ ।काश !आपकी गोद में छिप जाता ।एक दिन आपके कमरे का दरवाजा खड़खड़ा दिया था तो मुझे ऐसे दुत्कार दिया जैसे गली के कुत्ते को भगाते हैं ।

लगता है मन से जरूर  बीमार हो जाऊँगा।

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किशोर डायरी


तीसरा पन्ना /सुधा भार्गव 




यह   दुनिया मुझे अद्भुत लगती  है ।रात में तारे चमकते देख कर  मैं खुशी से उछल पड़ता हूँ । उन्हें पकड़ने की कोशिश करता हूँ पर  वे मेरे हाथ नहीं आते ।दिन में तो न जाने कहाँ छिप जाते हैं ।ढूँढ़ते -ढूँढ़ते थक जाता हूँ ।

आपसे मैंने एकबार इनके बारे में पूछा भी था कि ये दिन में कहाँ रहते हैं ।हँसकर बोलीं  -मैं फ़ोन करके पूछ लूंगी--- वे कहाँ हैं ?आज तक--- नहीं ---पूछा ।पूछा  भी होगा तो भूल गई हो ।

स्कूल के बगीचे में लाल ,पीले नीले फूल खिले हैं ।  वे मुझे बहुत अच्छे लगते हैं |
   
                 मैंने यह प्रश्न भी पूछा था आपसे ---हम लाल ,पीले ,नीले क्यों नहीं होते ! आपने  मुँह बनाते हुए  कहा --इसका उत्तर तो भगवान् ही दे सकता है ।उसने ही हम सबको बनाया है ।उसे भी फ़ोन करना पड़ेगा ।

कुछ दिनों बाद मैंने फिर पूछा --माँ फ़ोन किया था ?
--अरे फ़ोन नहीं हो पाया । भगवान् तो आकाश में रहते हैं।वहां की टेलीफोन लाइन खराब है।

मुझे लगा मेरी बातों  के लिए आपके पास समय नहीं---- है ।कुछ दिनों की ही तो बात है ,फिर तो मैं बड़ा हो जाऊंगा ।जब तक छोटा हूँ मुझे अपना कुछ समय दे दो ।

दुनिया के रहस्य मेरे दिमाग में खलबली मचा देते हैं जो ---सोने नहीं देते ।
उनके बारे में मेरी जिज्ञासा शांत कर दो ।

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शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

किशोर की डायरी



दूसरा पन्ना  /किशोर  डायरी 

(गूगल से साभार )


मैं एक -एक दिन उँगलियों पर गिनता रहता हूँ -सोमवार ,मंगल -- ,बृहस्पत ,शुक्र ।शनिवार पर आकर रुक जाता हूँ ।शनिवार को आपकी छुट्टी होती है ।आज भी तो शनिवार है -आपके साथ घूमने जाऊँगा  ,अपनी मनपसंद आइसक्रीम खाऊंगा ।खुशी के मारे हवा में उड़ा  जा रहा हूँ ।ओह ,यह क्या हुआ !आपकी तो किटटी पार्टी निकल आई --आपको तो जाना ही पड़ेगा लेकिन --पार्टी तो 3 बजे से शुरू है ।आप कहाँ हो ?--माँ --माँ ।

दिव्या हमारे घर की नौकरानी है ।उससे मालूम हुआ आप  बाजार गई हो साड़ी  खरीदने ।साड़ी ---साड़ी से तो आपकी दो अलमारियाँ  भरी पड़ी हैं ।पापा ने तो एक बार टोका भी था ---जब भी कहीं जाती हो  नई साड़ी खरीदती ही ।एक साड़ी  दो बार नहीं पहनी जा सकती क्या !आपने छूटते ही कहा --आप नहीं समझेंगे ,यह मेरी शान का सवाल है ।फिर मैं कमाती हूँ तो अपने ऊपर खर्च भी कर सकती हूँ।आपको बुरा क्यों लगने लगा ।
पापा आपके मामले में बहुत कम बोलते हैं ,यदि बोलते भी हैं तो आप उन्हें इसी तरह चुप करा देती हो ।
माँ पापा भी तो धन कमाँ  कर लाते हैं ।वे तो अपने ऊपर इतना खर्च कभी नहीं करते ।वे सबका ध्यान रखते हैं आप केवल अपना ।

आप दोपहर के  2 बजे बाजार से लौट कर आईं ।जल्दी -जल्दी तैयार होकर बोलीं --तुम्हें मिसेज सिन्हा के घर छोड़ देती हूँ ।लौटते समय ले लूंगी ।
-माँ मैंने खाना भी नहीं खाया है ।
-क्यों नहीं खाया !घर क्या मैं अपने साथ बाँध कर ले गई थी ।एक दिन अपने आप खा लेता तो क्या हो जाता ।दिव्या से ले लेता ।अब तो वह चली गई ।मुझे देर हो रही है ---ऐसा कर ,बिस्कुट का पैकिट ले और इसे आंटी के घर खा लेना ।आलू चिप्स भी हैं ,पेट तो भर ही जाएगा ।

सिन्हा आंटी ने गर्म -गर्म फुल्का बनाकर दिया। मैंने पेट भर कर खाया ।वे बोलीं -खाने के समय बिस्कुट नहीं खाओ ,बाद में खा लेना ।उनकी बात ठीक लगी ।मैं सो गया ।सोकर उठा तो देखा -आंटी दूध का गिलास लिए खडी हैं ।उनके प्यार में मैं नहा गया  और दूध गटागट  पी गया ।

मैंने एकबार भी आपको याद नहीं किया ।जब तक आप नहीं आईं पप्पू के साथ खेलता रहा ।वह सिन्हा आंटी का बेटा है ।आप मुझे लेने  आईं तो मैंने सोचा --क्यों आ गईं ,देर से आतीं तो अच्छा होता ।

घर पहूँचकर आपने मुझे दूध दिया ।मेरे पेट में जगह ही नहीं थी ।बड़े  आश्चर्य से बोलीं --बिस्कुट खाने के बाद भूख नहीं लगी --।
--आंटी बहुत अच्छी हैं ।उन्होंने दाल -रोटी खिलाई और दूध भी पिला दिया ।
-नदीदा कहीं का ---तुझे तो हम कूछ खाने को  देते नहीं  ,टूट पडा भुक्कड़ की तरह सुखी रोटी पर ।खाया तो खाया ,दूध पीकर भी आ गया ।मिसेज सिन्हा भी क्या सोचती होंगी हम तेरा ध्यान नहीं रखते ।

तुमने जितनी दुनिया देखी माँ ,मैंने उतनी नहीं ।आप क्या सोचती हैं --दूसरा क्या सोचता है --मैं नहीं जानता । जो  मेरा मन कहता है वह  मैं कर लेता हूँ ।मुझे अपनी इच्छा के 
बारे में पहले से बता दिया करो ।मैं वही कर लिया करूंगा।आपके गुस्से से  मेरा दिल कांपने लगता है ।
 मुझसे  प्यार से बोलोगी तो अच्छा  लगेगा ।

क्रमश :
** * * * *                    

किशोर डायरी के पन्ने


किशोरावस्था 



किशोरावस्था जीवन का एक यथार्थ है |

बाल्यवस्था से  युवावस्था तक पहुंचने की एक कड़ी है । किशोर अपनी अलग पहचान बनाने  की कोशिश इसी अवस्था से शूरू करते हैं ।उनमें शारीरिक -मानसिक परिवर्तन परिलक्षित होने लगते हैं ।उलझन में फंसे ,दुविधा में पड़े किशोरे अपने माँ -बाप से प्रथम सहयोग ,मार्गदर्शन व् प्यार की उम्मीद करते हैं ।

दुर्भाग्य ,भौतिक वाद के अनुयायी माँ -बाप को जीवन की भागदौड़ से इतना समय कहाँ कि वे धैर्य  से किशोर की जिज्ञासा शांत कर सकें ।उसके सर पर स्नेह का चंदोवा  तान सकें ,अपने अहं  और मान प्रतिष्ठा को ताक में रखकर उसके ह्रदय की कोमल तरंगों की आहट  पा सकें ।

थके -हारे झुंझलाए से वे अपने व्यंग्य बाणों और थप्पड़ों से किशोर का तन -मन झुलसा देना चाहते हैं ।उनकी आँखें तानाशाह सी कहती हैं --खबरदार जो सर उठाया ,कुचल दिए जाओगे ।उपेक्षा ,अपमान ,ह्रदय हीनता से किशोर निराश हो उठता है ।जब तक घरवाले समझते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और सुनने में आता है -उसके लड़के ने आत्म हत्या कर ली हैं ,अरे वो छोरा तो स्कूल ही न पहुंचा ---गजब हो गया --आजकल बच्चों  से कुछ कहने का धर्म नहीं ।

अध्यापन काल में मैं अनेक किशोरों के सम्पर्क  में आई ,उनके मनोभावों को पढने का यत्न किया । अपने अनुभवों को -किशोर डायरी के कुछ पन्नों में समेट  दिया है ।इनको पढने से शायद किशोरों को समझा जा सके और उनके व्यक्तित्व के विकास का मार्ग प्रशस्त हो

यह डायरी स्पंदन पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है ।पाठक मित्रों की सलाह पर अब मैं इसे अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर रही हूँ । 

किशोर डायरी का प्रथम पन्ना 


माँ आप सुबह सात बजे ही अपने औफिस के लिए घर से निकल पड़ती हो  ।केवल चाय पी पाती हो   ।लौटती हो बहुत थकी हुई ।मुझे आप पर बहुत तरस आता है ।जी चाहता है भाग -भाग कर आपके काम करूं ।लेकिन कर नहीं पाता  ।करूं कैसे ?जानता ही नहीं उन्हें करना ।

कल मेरा गृह कार्य कराते समय बहुत  झल्ला रही थीं|मैंने सोचा आपके आने से पहले सुलेख तो लिख ही सकता हूँ ।बहुत ध्यान से धीरे -धीरे लिखा ।घर में आपके घुसते ही मैं इतराते बोला---

--मैंने अपना गृहकार्य ख़तम कर लिया है --देखो न माँ !
-क्या माँ -माँ की रट लगा रखी है ,एक मिनट तो सांस लेने दो ।
गुलाब सा खिला मेरा चेहरा मुरझा गया ।मैं गुमसुम  बैठ गया ----शायद मनाने आओ ।नहीं आईं ---।चाय पीने के बाद सो गईं ।शाम को उठीं ।उस समय मैं बाहर खेलने जा रहा था ।आपने मुझे रोक लिया --

-कहाँ चले नबाब ,लाओ जरा देखूँ क्या किया  है  !
सुलेख पर नजर पड़ते  ही तमतमा उठीं --
अरे !यह क्या !ज्यादातर    शब्द लाइन से बाहर निकले हैं ।कोई अक्षर छोटा है कोई बड़ा ।कितनी बार कहा है --ठीक से लिखा कर पर नहीं -न सुनने की तो कसम खा रखी है ।

मुझे  काट कर तुम चली गईं ।मेरी सारी खुशियाँ भी अपने साथ ले गईं ।

माँ ,आप दुनिया में पहले आईं मैं बाद में आया ।आपके हाथ बड़े -बड़े हैं ,मेरे छोटे -छोटे ।आपको लिखने का जो अनुभव हैं मुझे नहीं ।अगर मेरे अक्षरों की बनावट खराब है तो क्यों आशा करती हो कि मैं भी आपकी तरह मोती से अक्षर बनाऊँ ।

मुझे कुछ समय दो और अभ्यास करने दो माँ  

क्रमश :
* * * * * *