प्रकाश प्रदूषण
सुधा भार्गव
स्वस्थ जीवन के लिए स्वस्थ वातावरण की आवश्यकता है। प्राकृतिक व्यवस्था को अव्यवस्थित करने की चेष्टा में पर्यावरण दूषित होने लगता है, तब प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है। यह आधुनिक औद्योगिक शहरी सभ्यता की देन है।
दिन की जगमगाहट
प्रकाश प्रदूषण पर्यावरण को बहुत कुछ प्रभावित करता है। बिजली के आविष्कार से जन जीवन आरामदायक तो हो गया पर जब इस कृत्रिम रोशनी का दिन -रात जरूरत से ज्यादा उपयोग होने लगा तो प्रकाश प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो गई।
रात की चकाचौंध
पृथ्वी का वातावरण ग्रीन हाउस की सतह के रूप में काम करता है और यह पृथ्वी की सतह को गरम रखने में सहायक है ।वरना ठंड के कारण जीवन दूभर हो जाता। सूर्य की ओर से आने वाली ऊर्जा, प्रकाश किरणों के रूप में एक सतह को पार कर ग्रीनहाउस तक आती है। ग्रीनहाउस में कार्बनडाय आक्साइड ,नाइट्रस ऑक्साइड आदि होती हैं जिससे धरती का तापमान बढ़ जाता है। कृत्रिम रोशनी के कारण इन गैसों की मात्रा में वृद्धि होती है और पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है। जलवायु में बदलाब आ जाते हैं। ग्लोवल वार्मिंग का यह मुख्य कारण है।
आधुनिक प्रकाश व्यवस्था में दुनिया की एक चौथाई बिजली नष्ट हो जाती है,मनों टन कोयला फूँक जाता है। यदि हम चाहे तो इसको अपनी कुशलता से बहुत हद तक रोक सकते हैं। प्रदूषण से भी मुक्ति मिलेगी और बिजली भी बचेगी। इस बची बिजली से न जाने कितने घर रोशन हो जाएँगे,कितने ही उद्योग पनप सकते हैं।
शहरी सड़कों की जगमगाहट और सिनेमा हॉल ,रेस्टोरेन्ट ,मॉल विज्ञापन ,कार्यालय और उत्सवों में फील्ड लाइट,ट्यूब लाइट का ऐसा चलन हुआ है कि बाहर तो यह आँखों को चकाचौंध करती ही है,
रेस्टोरेन्ट-उत्सव
खिड़कियों और दरवाजों से घुसकर घरों में भी आसान जमाये है। कोठियों और इमारतों में रात को सुरक्षा की दृष्टि से होने वाली रोशनी से प्रदूषण बढ़ता है। यह रात में साफ दिखाई देता है। रात के वक्त आकाश की चमक-दमक पर दृष्टि डालें तो उसमें मध्यम रोशनी की धुंध भी नजर आएगी। यही प्रदूषण हैं।
प्रकाश प्रदूषण
इस प्रदूषण से पूरा भूमंडल खतरे में है। पौधों को अंधेरा और रोशनी दोनों की जरूरत है। अंधेरा बीज को फूल में बदलने और रोशनी पौधों को ज़िंदगी देने में मदद करती है।रात की कृत्रिम रोशनी के कारण वे खिलने से पहले ही मुरझा जाते हैं। कुछ पौधों की तो प्रजाति ही लुप्त हो रही है।
ऊंची जगरमगर करती इमारतों के कारण प्रवासी पक्षी अपने रास्ते से भटक जाते हैं। न जाने कितने रोशनी से आकर्षित होने के कारण इनसे टकराकर मरते हैं। पक्षी -अंधेरा होते ही अपने घोंसलों में बच्चों के साथ विश्राम करते हैं पर रात में भी रोशनी देख उलझन में पड़ जाते हैं कि यह दिन है या रात। उनकी नींद में खलल पड़ता है। परेशान से एकांत जगह में पलायन करने की कोशिश में लग जाते हैं। कुछ की तो दिनचर्या ही अंधेरे से शुरू होता है।
उल्लू को भूख लगी तो शिकार की तलाश में असमंजस सा निकाल पड़ता है क्योंकि प्रकाश प्रदूषण के कारण उसे तारे ही नहीं दिखाई पड़ते। कृत्रिम रोशनी उसकी दृश्य शक्ति को कम कर देती है।
रात में स्पष्ट दिखाई देने के कारण चमगादड़,हिरण आदि गतिशील रहते है पर उनकी भी दृष्टि बाधित होती है । न ठीक से पेट भर पाते हैं और न उड़कर या चौकड़ी भरते दूर जा पाते हैं। कछुए और मेढक की तो एकांत व अंधेरे में ही प्रजनन क्रिया व यौन संबंध संभव है।रोशनी से उनकी एकाग्रता में बाधा पड़ती है।
खगोलीय वेधशालाओं के कार्य भी सुचारुरूप से नहीं हो पाता है। याद आते हैं बचपन के वे गर्मियों के दिन जब रात को खाने के बाद छत पर चढ़ जाते थे।चमकते चंद्रमा और तारों की बारात देख ठंडक सी महसूस होती थी और मन खिल-खिल उठता था। हमारी नजरें पल में ही सप्त ऋषि और चमचमाते ध्रुव तारे को खोज लेती थीं। बाबा बालक ध्रुव की कहानी सुनाया करते थे। आज के बच्चे प्रकृति की इस छटा से अछूते हैं। महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए बड़े चाव से करवाचौथ का व्रत करती हैं। सारे दिन भूखी रहकर चंद्रमा के दर्शन करके ही उपवास तोड़ती हैं। पर उस दिन बेचारी आकाश में चंद-सितारे खोजती ही रह जाती हैं। निकलने पर भी प्रदूषण के कारण वे देर से दिखाई देते हैं या दिखाई ही नहीं देते हैं।
बिजली का प्रकाश सूर्य के प्रकाश से बराबरी नहीं कर सकता। सूरज की रोशनी से विटामिन डी मिलता है, और दिमाग अपना कार्य सुचारूरूप से करता है। सूर्य की रोशनी से दिमाग में सेरोटोनिन (serotonin)हारमोन रिलीज होता है जिससे मिजाज ठीक रहता है। चिड़चिड़ाहट उदासीनता कोसों दूर भागती है। चित्त शांत होने से एकाग्रता में वृद्धि होती है। रोशनी के साथ-साथ तंदरुस्ती के लिए रात का अंधकार भी आवश्यक है। क्योंकि अंधेरे में मेलाटोनिन (melatonin)हारमोन रिलीज होता है जिससे जीव नींद का अनुभव करता है। गहरी निद्रा से हमारी सारी थकान तनाव जाता रहता है। सुबह एक नई ताजगी और जोश लिए उठते है। दिन में बिजली के प्रकाश में घिरे रहने से कार्य क्षमता कम हो जाती है। साथ ही आलस और तनाव के शिकार होते हैं।
घरों में भी तो फ्लोरेन्स ट्यूब और शानशौकत के मारे तेज रोशनी का आलम रहता है। अनिद्रा, सिरदर्द ,माइग्रेन दर्द हमारा पीछा करने लगते हैं। । तेज रोशनी आँखें बर्दाश्त नहीं कर पातीं। इससे देखने की शक्ति कुम्हला उठती है। बूढ़ी और कमजोर आँखें तो दर्द करने लगती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार –महिलाओं में स्तन कैंसर का एक कारण अति प्रकाश भी है। जहां तक हो सके अंधेरे में सोएँ और रात में घर के लैपटॉप ,दूरदर्शन भी बंद कर दें। खिड़की के पर्दे डाल लें ताकि सड़कों के प्रकाश से बचा जा सके।
मनुष्य की आँखों के रेटीना में फोटो सेनसिटिव सैल होते हैं जो मस्तिष्क की पिटयूटरी ग्लेण्ड से जुड़े रहते हैं । सूर्य की रोशनी से ही ये सेल उत्तेजित होते हैं।
इसका प्रभावन केवल दिमाग पर ही नहीं बल्कि पूरे शरीर पर होता है। इससे रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।
इस तरह से स्वास्थ्य की दृष्टि से सूर्य की रोशनी ही उत्तम है पर बिजली की रोशनी के बिना भी काम नहीं चलेगा। इसके प्रयोग में थोड़ा सावधान रहना पड़ेगा।
कृत्रिम रोशनी देने वाले उपकरणों की फिटिंग इस प्रकार की जाय कि उससे निकलने वाली रोशनी ऊपर की ओर कम जाय। बल्ब,ट्यूब लाइट नीचे की तरफ झुकाकर लगाए जाएँ जिससे हमारे शरीर पर उनका प्रकाश कम पड़े और आँखों में चौंध न पैदा हो।सजावट विज्ञापन व उत्सवों में आवश्यकता के अनुसार ही बिजली का प्रयोग हो और सूर्य की प्रथम किरण के साथ ही बत्तियाँ गुल कर दी जाएँ । जन -जन को समझना होगा कि बिजली के दुरुपयोग से ऊर्जा ही खर्च नहीं होती अपितु धन का अपव्य भी होता है । उसे बचाकर हम देश के विकास में हाथ बंटा सकते हैं। खुशी है रोशनी प्रदूषण के प्रति देशवासियों को सचेत किया जा रहा है। कल की ही तो बात हैं टी॰ वी॰ में बच्चे नारा लगा रहे थे- - -
बिजली बचाओ,देश बढ़ाओ।
इतनी सूझबूझ! उनके चार शब्दों में मेरे हजार शब्द समा गए। मुझे अपना कद छोटा नजर आने लगा।