मंगलवार, 27 मई 2014

मोदी अध्याय

महाविजय का नाद 




हमारे देश की राजनीति में मोदी अध्याय शुरू हो चुका है। कल 26 मई को भव्य शपथ ग्रहण समारोह में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद और गोपनीयता की शपथ ग्रहण की। वे भारत के15वे प्रधान मंत्री बने हैं।समारोह के सुनहरे अवसर पर राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में करीब 3000 लोगों से भी ज्यादा उपस्थित होने का अनुमान है ।
बड़ी बड़ी हस्तियो के साथ पाकिस्तान के प्रधान मंत्री आए थे। दक्षेश के सदस्य (दक्षीण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ के सदस्य )भी मौजूद थे।। उनको आमंत्रित करके हमारे प्रधानमंत्री ने एकता की ओर ठोस कदम बढ़ाया है । 

राष्ट्रीय धुनों के साथ समारोह का आरंभ और अंत हुआ। नरेंद्र मोदी ने शपथ लेने के बाद देश के नाम संदेश दिया –आइए हम सब मिलकर एक सुनहरे और सशक्त भारत का निर्माण करें । 

कल देशवासियों की हजार आँखें दूरदर्शन में दिखाई देने वाले इस समारोह और अपने नए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर लगी थीं जिन्होंने बड़ी उम्मीदों के साथ उन्हें अपना प्यार दिया ,विश्वास दिया और सिर माथे पर बैठाया । नए प्रधान मंत्री की राह भी काँटों से भरी हैं पर उनमें गज़ब का आत्मविश्वास है।एक चाय वाला प्रधान मंत्री कैसे बन गया ?यह कोई चमत्कार नहीं हुआ है बल्कि उनकी वर्षों की कड़ी तपस्या का फल है। 12 वर्ष गुजरात के मुख्य मंत्री रहकर राजनैतिक अनुभवों के भंडार हैं। अपने रण चातुर्य ,दूरदर्शिता ,सकारात्मक सोच और पक्के इरादों के कारण भारतीय जनता की उम्मीदों पर मेहनती प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी अवश्य खरे उतरेंगे ऐसी हमारी सकारात्मक सोच है।   


शुक्रवार, 9 मई 2014

समुद्री यात्रा का चौथा दिन

 हृदयग्राही सामुद्रिक यात्रा
-बुधवार 14-9-05

पहले दिन की क्षति पूर्ति करने मैं जल्दी उठ गई और सूर्योदय के समय की गगन की शोभा और पयोधि की शालीन मुद्रा निरखने लगी। आज तो मुझे कागज के कोरे टुकड़ों पर सागर राज का हृदय उड़ेल कर रख ही देना था  तूलिका से उसमें चमकीले रंग भरने लगी।
क्रूज पर कार्यक्रम तो  आज भी बड़े लुभावने थे । कहीं नेपकिन फोल्ड करना सिखाया जाना था ,कहीं सब्जी –फलों को काट –तराशकर उन्हें सुंदर रूप देने का प्रदर्शन । बच्चों –किशोरों के प्रथक कार्यक्रम थे।बच्चों का स्वीमिंग पुल देख तो मैं चकित रह गई ,एकदम बालप्रकृति के अनुकूल। 

कंप्यूटर सेंटर ,स्वीमिंग पूल ,जिम,जकूजी –सोना बाथ सेंटर आदि में जाने का तो समय ही नहीं था। यहाँ पर हर एक की रुचियों का ध्यान रखा गया है। लाफ्टर योगा क्लास में मेरी जरूर रुचि थी मगर भार्गव जी ने सनराइज़ वॉक का आग्रह किया । 5 मिनट बॉडी स्ट्रेच कक्षा में भी झांकी मार ली । गाइड ने खड़े होकर ,लेटकर ,इस तरह शरीर के अंगों को तानकर उनमें खिंचाव करना सिखाया कि सुस्ती ,शरीर का दर्द मिनटों में छूं मंतर हो गया।ब्लू लैगून एशियन वीस्ट्रो में नाश्ता करके बालकनी में जा बैठे । दोनों तरफ ---खामोश समुद्र ---दूर --–सपाट दूर ---आकाश समुद्र मिले हुए।एक – दूसरे में खोए,एक ही रंग में रंगे ,कितना अदूभुत प्रकृति का जलमंच। अजीब सी शांति मन में समा गई । लहरों को चीरता जहाज आगे बढ़ रहा था ,न कोई रुकावट न कोई बंदिश। गतिमान के साथ निरंतर गतिमान। काश! मैं भी ऐसा कर सकती ।
देखते ही देखते सूर्य ऊपर चढ़ आया । सूर्य की किरने लहरों पर पड़ने के कारण वे शुभ्रता छिटकाती चांदी की सी मछलियाँ प्रतीत होती थीं । नीलांबर में खरगोशी चपलता लिए बादल भी टिकने का नाम नहीं ले रहे थे । सूरज उनकी ओर ललचाई दृष्टि से देख रहा था । शायद बालकों की तरह उनके साथ आँख मिचौनी खेलने को लालायित हो ।
दोपहर के भोजन पश्चात स्वागत कक्ष में हमने एक्सेस कार्ड जमा कर दिए और पासपोर्ट व अन्य कागजात वापस ले लिए।

स्वागत कक्ष 
केबिन हमें शाम के पाँच बजे छोड़ देना था । इसलिए सामान उसके बाहर ही रख आए थे ताकि कर्मचारी वहाँ से उठा ले और सिंगापुर में हमें दे दे। मटरगश्ती करते हुए 4बजे एक रेस्टोरेन्ट में घुस गए । खिड़की के सहारे रखी कुर्सियों पर बैठकर गरम –गरम चाय –पेस्ट्री का आनंद उठाने लगे लेकिन हमारा ध्यान खिड़की से बाहर ही था । धरती का छोर दिखाई देने लगा था । जहां से चले बहीं पहुँचने की प्रतीक्षा करने लगे ।
जलयान के कुछ कर्मचारी भारतीय भी थे। वे बड़े अपनेपन से बातें करते रहे। उनमें से एक ने आकर बताया –अगले वर्ष स्टार क्रूज भारत में भी बंबई से चलनेवाला है। इसका नाम है –सुपर स्टार लिब्रा। यह लक्षदीप,कोची और गोवा जाएगा। मेरे नियुक्ति भी उसी जलयान पर होनवाली है। वह बहुत खुश था क्योंकि ऐसा होने पर वह भारत में अपने परिवार से मिल पाएगा। ।
पाँच बजते ही डेक 6पर बालकनी क्लास के यात्री पैवेलियन रूम में बैठ गए। वर्ल्ड क्रूसर श्रेणी के अतिथि डेक 7से सिंगापुर हार्बर उतरने वाले थे। भीड़ होते हुए भी सब अनुशासनबद्ध,पंक्तिबद्ध थे।
क्रूज यात्रा खतम होने जा रही थी पर इतनी मनोरंजक और हृदयग्राही सामुद्रिक सैर से जी न भरा था। लहरों पर ये बिताए चंद दिन जीवन केहसीन पलों में गुंथ गए। हार्बर आने पर हम सीढ़ियाँ उतर रहे थे कि संगीत उभरा –
ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना-----
पीछे मुड़कर देखा समुद्र ,क्रूज और उसके स्टाफ की हजार हजार निगाहें स्नेह से हमें देख रही हैं।
मेरे पैर भी तो बड़ी मुश्किल से आगे बढ़ रहे थे। यात्रा से विदाई का क्षण ऐसी ही मधुर उदासी से भरा होता है । एक ओर यात्रा समाप्ति का दुख तो दूसरी ओर जन -जन के साथ यात्रा के मधुर अनुभव बांटने का उत्साह ।  

 समाप्त

गुरुवार, 8 मई 2014

क्रूज यात्रा का तीसरा दिन

फुकेट का समुद्री तट 
मंगलवार :१३-९-05


प्रात: उदय होते सूर्यदेव के दर्शन की इच्छा अपूर्ण रह गई क्योंकि नींद देर से खुली। चाय पीने हम रेस्टोरेन्ट पहुंचे तो देखा फुकेट (थाईलैंड )टूर पर जाने वाले पर्यटक जमकर खा रहे हैं ।हमें तो किसी प्रकार की जल्दी थी नहीं।
दोपहर 12 बजे के करीब फुकेट पोर्ट पर जहाज ने लंगर डाल दिया। विराट समुद्र के दर्शन के लिए हमारे पास 6घंटे थे। । मन किया उसी क्षण समुद्र तटीय बलुआ मैदान में दौड़ लगाऊं,उसका स्पर्श करूं ,समुद्री फैन को अंजुरी में  भरकर उससे खिलवाड़ करूँ।
लेकिन पहले ताज होटल में आरक्षण कराना था ।सोचा वहाँ बहुत भीड़ होती होगी पर लंच रूम मे हम पति –पत्नी दो ही थे।नाम बड़े दर्शन छोटे वाली बात! खाने वाले भी वहाँ कम ही आते होंगे क्योंकि बिल चुका कर भोजन मिलता है। जब मुफ्त मे उससे हजार गुना स्वादिष्ट  खाद्य और पेय पदार्थ मिलें तो वहाँ क्यों जाएँ?हम दो पर बैरा तीन!सोच -सोचकर हंस रहे थे ।
एक्सेस कार्ड दिखाने के बाद ही जलपोत से उतरने की आज्ञा मिली । तीर पर कोस्टगार्ड और क्रूज के सुरक्षा अधिकारी बैठे थे । कुछ दूरी पर छोटा सा बाजार लगा हुआ था। दूर तक विराट जल की भीम क्रीडा को देखते हुए काफी दूर तक चलते रहे हम । बाजार में हस्त शिल्प का सौंदर्य बिखरा पड़ता था ।  कुछ टीशर्ट,चाबी के गुच्छे उपहार स्वरूप देने के लिए खरीदे। एक चाबी का गुच्छा तो अब भी मेरे पर्स में लटका रहता है जो वहाँ की याद दिलाता है । 



टीन की चादर से बने अनोखे पेंसिल शार्पनर लो देख कर तो मैं उनको लेने बच्चों की तरह मचल उठी । हाथ की कारीगरी देखते ही बनती थी।  एक लड़का उन्हें छोटी सी मेज लगाए बेच रहा था। 


पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ कि वाद्य संगीत की ये आकृतियाँ पेंसिल की धुनाई भी कर सकती हैं। मैंने उन्हें सजावट का समान ही समझा था। जब लड़के ने पेंसिल छील कर दिखाई तो इतनी खुश हुई  कि उसे मुंह  मांगे दाम  देकर चार खरीद लिए ।     
समुद्र के किनारे से किनारा करते –करते शाम के छ्ह तो बज ही गए। 6 बजे हैपी आवर्स(Happy hours) शुरू हो गए थे इसलिए हम रेसेप्शन हॉल मेँ ही बिछे सोफो पर बैठ गए । आकेस्ट्रा बज रहा था। सामने स्त्री -पुरूष अंग्रेज़ी धुनों पर थिरक रहे थे। हमारे दोनों ओर छोटी पर खूबसूरत दुकानों पर विदेशी सुरा रखी थी। सोविनियर्स से वहाँ की शोभा दुगुनी हो गई थी मगर वे हमें बहुत कीमती लगे। हैपी आवर्स मेँ एक गिलास लेने से दूसरा मुफ्त मिल रहा था। अभी तक 300 सिंगापुर डोलर्स के कूपन भोजन पर खर्च न कर पाए थे इसलिए वहाँ से हमने महंगी होने पर भी ब्लैक लेबिल शैम्पेन व आस्ट्रेलियन शीराज वाइन खरीद ली । कूपन का इस्तेमाल हर हाल मेँ करना था वरना वे बेकार हो जाते ।
वैलाविस्टा रेस्टोरेन्ट में आज गला डिनर था। उसमें उपयुक्त परिधानों का विशेष ध्यान रखा गया । कोई भी नेकर, वरमूडा ,बिना बांह की कमीज या चप्पल पहनकर नहीं जा सकता था।दरवाजे पर एक्सेस कार्ड दिखाकर अंदर घुसे । मेज का नंबर हमारा पहले से ही निश्चित था। हम वहाँ खास मेहमान थे। यान परिचारिकाएँ मेजबानी में खड़ी थीं। 

रेस्टोरेन्ट
रंगबिरंगे बल्बों से कोना –कोना जगमगा रहा था। संगीतमय मदभरी शाम में हमने कुछ समय के लिए खुद को राजे –महाराजे समझने का मजा लिया। कुछ पर्यटक नोबल हाउस (चाइनीज)समुराय (जापानीज़)होटल के गाला डिनर में चले गए थे पर हमारी मंजिल तो बैलाविस्टा ही थी। शाकाहारी भोजन वहीं अच्छा था ।
डीनर के बाद हम पिक्चर गैलरी चले गए। सैकड़ों तस्वीरे दीवार पर लगी हुई थीं ताकि सैर करने वाले इन्हें देखें ,सराहें और खरीदें। स्टार क्रूज के फोटोग्राफरों ने यात्रियों के चित्र कैमरे मेँ कैद कर लिए थे। हमने भी अपनी दो तस्वीरें खरीदीं। एक नर्तकी के साथ दूसरी जोकर के साथ।
रात के बारह बजे डिजायर प्रहसन (las vegas style toples revue)देखने जाना था। यह 40 मिनिट का लीडो शो होता है । प्यार और रोमांस से भरी यह रात दर्शकों के दिल की धड़कनों को तेज करने वाली थी । अल्हड़ लड़कियां झीने वस्त्र पहने रूपहले जुगनुओं की तरह चमक रही थीं। उनमें नीली आँखों वाली एक लड़की थी। लगता है इससे कवि पैब्लो नेरूदा अवश्य मिले होंगे  


कवि पैब्लो नेरूदा 
तभी तो उनकी कुछ पंक्तियों मेँ उसका सार्थक चित्रण है –
जादू भरे उभारों में
दो अग्नि शिखाएँ लहक रही थीं
और वे अग्नि धाराएँ ,स्वच्छ मांसल लहरों से इठलाती हुई
कदली खंभ जैसी जांघों से तैरती हुई
उसके चरणों तक उतर गई थीं
पर
उसकी निगाहों से तिरछी हरी –भरी किरणों के
निर्मल झरने झरते थे ।
लेकिन ऐसी दृष्टि सबकी कहाँ? वहाँ बैठे लोगों की नजरें तो अनावृत उरोजों से टकरा रही थीं । आखिर था तो नारी देह प्रदर्शन ही। नारी कब तक दिल बहलाने का साधन बनी रहेगी?’ जैसे प्रश्न से जूझती मैं व्यर्थ ही परेशान होती रही ।  

क्रमश :