4फरवरी 2013
मेरा कलकत्ते जाने का प्रोग्राम बन चूका था जब उनके आने की सूचना मिली। ,मन परेशान हो उठा कि कलकत्ते से लौटते -लौटते कही देर न हो जाये और उनसे मिलना ही न हो लेकिन जब आश्वासन मिला कि वे 10 फरवरी को वापस जायेंगे तब कहीं राहत मिली ।असल में राजेश उत्साही भी बैंगलोर से बाहर गए हुए हैं ।वे फरवरी में लौटने वाले थे और मैं 29 जनव्री को ।इसलिए सबसे मिल मिलाकर बलराम जी ने 10 फरवरी को दिल्ली लौटना ठीक समझा ।
कलकत्ते से लौटते ही हमने एकदूसरे को फ़ोन और ई मेल खटखटाए और मिलने का समय निश्चित किया ।मैंने राजेश जी को भी फ़ोन किया था ताकि वे बलराम जी से मिल लें पर वे 10 फरवरी को आयेंगे ।
व्यक्ति गत रूप से तो मैं इनको पिछले तीन वर्षों से जानती हूँ ।वह भी रामेश्वर काम्बोज जी की बदौलत ।लघुकथा डॉट कॊम के जरिये तब तक मेरा उनसे परिचय हो चुका था और कविता की धरा छोड़ लघुकथा लिखकर भेजने लगी थी।
बलराम जी एकबार बैंगलोर आये थे ।उस समय उनहोंने काम्बोज जी से ही पूछा था -बैंगलोर में कौन -कौन हिन्दी साहित्यप्रेमी हैं ?उन्होंने उनको मेरा और मुझे उनका सम्पर्क सूत्र पकड़ा दिया ।आगामी वर्ष काम्बोज जी ने उन्हें राजेश उत्साही का संपर्क सूत्र पकडाया जो मुझे दे दिया गया ।क्या इत्तफाक है !
लेकिन ----अग्रवाल जी के रचना संसार से मैं पहले से ही अवगत थी ।
कैसे ?
इसके पीछे भी एक लघुकथा है ।
2007 में जब तीन मास को लन्दन आई तो मेरे सामने प्रश्न था किस तरह समय खूबसूरती से बिताया जाय ।इसी तलाश में हौंसलो लाइब्रेरी(treaty centre) गई ।वहां बलराम के कई लघुकथा संग्रह देखे ।बीसवीं सदी की लघुकथाएं पढीं ।पढने में बड़ा आनंद आया ।दो मिनट में चटपट ख़तम और सोचने के लिए बहुत कुछ । कुछ तो हमेशा के लिए मास्तिष्क पटल पर अपनी छाप छोड़ गईं जैसे सर्वोत्तम चाय ,नागपूजा आदि ।इन्हें तो मौके के अनुसार सुनाने से नहीं चूकती ।तभी से साहित्य की इस विधा से ऎसी जुड़ी की अधिक से अधिक लघुकथाएं पढ़ने लगी ।मनभावन लघुकथाओं को उनके लेखकों सहित डायरी में नोट कर लेती ।इस अंतराल मैंने जाना कि बलराम अग्रवाल जी लघुकथा जगत के ऐसे हस्ताक्षर हैं जो कलम के धनी होने के साथ -साथ लघुकथा की परख -समझ ही नहीं रखते अपितु ब्लॉगस ,अनुवाद ,सम्पादन व् महत्वपूर्ण लेखों ,-वार्ताओं द्वारा साहित्य की इस विधा को बहुत कुछ दिया है ।
वे जहाँ ठहरे हुए हैं वह जगह मेरे निवास स्थल सर्जापुर रोड से काफी दूर है पर वे कष्ट उठाकर पिछले सोमवार (4फरवरी ) को मीरा जी सहित मुझसे मिलने आये ।
घर पर उनका दूसरा ही रूप था -मिलनसार ,मैत्रीपूर्ण व् भ्रातृत्व भावना से ओतप्रोत सहजता सरलता ।
जैसी सोच वैसे विचार ,जैसे विचार वैसा ही लेखन -यह कथन उनके एकांकी नाटक शिवाजी की बहन पर खरा उतरता है ।आज ऐसे ही
नाटकों के लिखने और मंचन कीआवश्यकता है जो बच्चों में स्नेह की गंगा बहा सके और देश के प्रति उन्हें अपने कर्तव्य की याद दिलाये।
मैंने तो इनका यही एकांकी पढ़ा है जो हाल में बालवाटिका पत्रिका में प्रकाशित हुआ है ।अवसर मिलने पर इनके अन्य एकांकी भी पढ़ डालूंगी |
लंच के बाद हम आराम से साहित्य चर्चा करने बैठ गए ।
कलकत्ते से निकलने वाली साहित्यिकी हस्तलिखित पत्रिका के लघुकथा विशेषांक पर बलराम जी ने अपने अमूल्य विचार व्यक्त किये थे ।इसके लिए इस पत्रिका के सब सदस्य बहुत आभारी हैं ।आगामी अंक -व्यस्तता के बीच अकेलापन -में उनके विचार प्रकाशित होंगे ।
कलकत्ते से चलते समय विद्या भंडारी ने अपना लघुकथा संग्रह मुझे दिया था ताकि वरिष्ठ लघुकथाकारों से इसके बारे में सुझाव या उपयुक्त दिशा पा सकूँ ।उस पर भी बातें हूई।
पिछली बार जब बलराम जी से मुलाक़ात हुई थी तो सुझाव दे गए थे -वर्ल्ड आफ चिल्ड्रनस लिटरेचर के सदस्य बन जाओ ।सच में इस सदस्यता से मुझे बहुत लाभ हुआ और अनेक बालसाहित्यकारों की जानकारी मिली ।
इस बार भी सोचा कुछ ऐसा ही मन्त्र हाथ लगेगा उनकी संगत में ,पर कुछ याद नहीं पड़ रहा ।हाँ !फैमिली ट्री बनाना जरूर सिखा गए हैं ।सोच रही हूँ इसका भी उपयोग किया जाय।ज़रा फैमिली ट्री ख़तम कर लूँ फिर फ्रेंड्स ट्री बनाऊँगी ।
मीरा जी ने रसोईघर में मेरा हाथ बँटाया ।घंटों का काम मिनटों में हो गया । इतना अपनापन व् आत्मीयता का संगम था कि मुझे ज़रा भी आभास नहीं हुआ कि वे मेहमान हैं ।प्रतीत हुआ घर के सदस्यों से अनुराग भरी नि:संकोचता की डोर से बंध गई हूँ ।
मैंने एक बात महसूस की जिससे मुझे बहुत खुशी मिली ।मीराजी अपने पति के लेखन संसार से पूर्णतया परिचित हैं और वे उनके सृजन में रूचि लेती हुई भरसक सहयोग देने की कोशिश करती हैं ।इस नजरिये से बलराम जी बहुत भाग्यवान हैं ।
हँसते- खिलखिलाते .साहित्य की गहराई में डूबते -उतराते काफी समय बीत गया ।बलरामजी चलने के लए उठ खड़े हुए ।आते तो सब अच्छे लगते हैं पर जाते हुए कॊई नहीं ।इसीकारण उन्हें रोकने की कोशिश में बोली -कुछ फोटोग्राफी हो जाय और एक -एक कप चाय ।
चाय का सिप लेते समय स्वर्गीय इंदु जैन का एक वाक्य रह -रहकर घुमड़ रहा था -भागदौड़ की जिन्दगी में सुकून पाने के लिये इतना समय जरूर होना चाहिए कि दोस्तों के साथ बैठकर एक कप चाय पी ली जाय ।
अब अग्रवाल दम्पति का और रुकना नामुमकिन था ।काफी लंबा सफर तय करने के बाद उन्हें अपने गंतव्य स्थान पर भी पहुँचना था ।
उनके जाने के बाद कम्प्यूटर से स्काई पी ,,ईमेल ,फेसबुक और ब्लोग्स झाँक -झाँककर मोबाइल फ़ोन से कहने लगे -भइये ,हमने मिलकर दुनिया बड़ी छोटी कर दी है ।न जाने कौन -कहाँ -किस्से टकरा जाये इसलिए बस एक सूत्र में बंधे रहो ।
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