यात्रा चाहे काल्पनिक हो
या वास्तविक उसके विस्तार से मन का भी
विस्तार हो जाता है । इस मन के विस्तार से
न जाने मैं कब से अभिभूत हुये बैठी
हूँ । कभी –कभी ये मेरी विकलता का कारण भी बन बैठता हैं क्योंकि मेरे देश विदेश की
यात्राएं –यात्राएं नहीं मेरी गतिशीलता की कथाएँ हैं । इनसे मुझे व्यापक जीवन दृष्टि और अनुभवों की विविधता मिली । मैंने
देश –विदेश की यात्राओं की स्मृति को खँगालने और उन्हें सुव्यवस्थित ढंग से
प्रस्तुत करने का प्रयास किया है और यह भी
प्रयास रहेगा कि यह घुमक्कड़ी शास्त्र के
साथ –साथ घुमक्कड़ी काव्य भी हो जिसमें सामाजिक ,सांस्कृतिक और आर्थिक
परिवेश का आत्मीय समन्वय हो । निवेदन हैं कि थोड़ा समय निकालकर आप भी इस यात्रा में मेरे साथ चलें और अपनी प्रतिक्रिया देकर अनुगृहित करें ।
मेरे वे चार दिन (रोचक समुद्री यात्रा-सिंगापुर )
पहला दिन –रविवार - 11 .8 .05
मेरे
वे चार दिन और तीन रातें ‘सुपर स्टार वर्गो ‘क्रूज में कैसे बीतीं इसकी
अभिव्यक्ति के लिए शब्द कम ,अपने में सुनाई देने वाले स्पंदन ज्यादा हैं । बचपन से ही
कल्पना के उड़नखटोले में बैठकर कभी समुद्र तल में गोताखोर की तरह डुबकी लगाकर रंग
बिरंगे कोरल ,शंख सीपियों से मुट्ठी भर लेती तो कभी समुद्री सतह
पर लहरों से अठखेलियाँ करते हुए सुनहरी मछली बन जाना चाहती । उम्र की दहलीज पार
करती रही पर समुद्री सैर की दिली तमन्ना में कोई कमी न आई ।
एक
दिन प्रतीक्षा की घड़ियाँ समाप्त हो गई । हमने एशिया पैसिफिक समुद्री मार्ग पर आने
वाले स्टार क्रूज में दो टिकटों का आरक्षण करा लिया । जहाज का नाम सुपर स्टार
वर्गो था । क्रूज का अर्थ ही है समुद्री यात्रा ।
मैं
और मेरे हमसफर भार्गव जी बैंकाक-पटाया होते हुए 9सितंबर 2005 को सिंगापुर पहुँच गए
।
वहाँ
हम गोल्डन लैंडमार्क होटल में ठहरे । 11 सितंबर की सुबह 9बजे के करीब लक्जरी टूर
वालों की कार हमें लेने आ गई । हमें सिंगापुर हार्बर जाना था । ड्राइवर ने बड़ी
ज़िम्मेदारी से समान कार में रख दिया । । उसके विनीत व्यवहार से हम बहुत प्रभावित
हुए । यूरोप टूर के समय तो हम बोझा ढोते ढोते खच्चर हो गए थे । अक्ल भी आ गई कि
यात्रा करते समय कम सामान तो भार भी हल्का ,मन भी हल्का ।
दोपहर
के 1बजे हम सिंगापुर हार्बर पहुँच गए । दूर से ही स्टार क्रूज पर निगाह पड़ी । मुँह
से बरबस निकल पड़ा –वाह !आधुनिकता और सुंदरता का क्या अद्भुत संगम है । इंसान की
कारीगरी का बेजोड़ नमूना विराट समुंदर से अपना तालमेल बैठाकर अवर्णनीय समा बांध रहा
है । हार्बर पर अटैची और बैग जलयान के कर्मचारियों के सुपुर्द कर के हम बेफिक्र हो
गए । क्रूज में सीढ़ियों द्वारा अंदर प्रवेश करना था परंतु सीढ़ियाँ चढ़ने से पूर्व
ही हमें अपना पासपोर्ट और कन्फर्मेशन स्लिप एक अधिकारी को दिखानी पड़ी । यह एक तरह
से क्रूज टिकट होता है । मखमली सीढ़ियों पर चढ़कर ऊपर पहुँचे तभी एक जोकर आकर झूमने
लगा । अपनी विभिन्न हँसोड़ मुद्राओं से यात्रियों की थकान मिटाने में लग गया ।क्लि –क्लिक
की आवाज से हम कुछ चौंक पड़े । पता लगा –जलयान के कुशल फोटोग्राफर क्रूज की पिक्चर
गैलरी में लगाने के लिए आगुन्तकों की फोटो खींच रहे हैं । हमारे पीछे आने वालों में
भारतीय ,पाकिस्तानी ,यूरोपियन ,अरेबियन सभी थे । राष्ट्रीय –अंतर्राष्ट्रीय
जातियों –भाषाओं का निराला मिलन था ।
स्वागत कक्ष में हमने बड़ी शान व उत्सुकता से प्रवेश किया ।
स्वागत कक्ष में हमने बड़ी शान व उत्सुकता से प्रवेश किया ।
चेक
इन काउंटर पर पहुंचते ही तीन प्रवेश द्वार दिखाई दिये । यात्री भी तीन
श्रेणियों में विभक्त थे । उन्हें
पृथक –पृथक
रास्तों से जाना था । जिनके केबिन के साथ बालकनी थी वे बालकनी क्लास के कहलाए ।
उन्हें बाईं ओर लाल गलीचे पर चलकर जाना था । वर्ल्ड क्रूजर्स को दाईं ओर नीले
गलीचे से जाना था । एड्मिरल क्लास के यात्रियों के लिए पीले गलीचे की व्यवस्था थी
। इनको चैक - इन में प्रधानता दी गई । बालकनी क्लास का टिकट होने पर हमें तो
पंक्ति में खड़ा होना पड़ा । स्वागत कक्ष में यात्रियों के पासपोर्ट की जगह एक्सेस
कार्ड (Acces Card )दे दिये गए । कार्ड देखने में छोटा था पर था बड़ा
महत्वपूर्ण । यही बोर्डिंग पास स्टेटरूम की चाबी था । यही चार्ज कार्ड और बोर्ड पर
मिलने वाली विभिन्न सुविधाओं का द्वार था । उसके पीछे मैंने हस्ताक्षर किए ताकि
गुम होने पर कोई इससे अनुचित लाभ न उठा सके ।
स्वागत
कक्ष में वैलकम ड्रिंक देकर बड़ी हर्मजोशी से नवागंतुकों का अभिनंदन किया गया । हॉल
में खड़े होकर हम चारों ओर आँखें फाड़ –फाड़कर देख रहे थे । प्रतीत होता था हम कुबेर नगरी
में आ गए हैं ।
संगमरमर के चमचमाते फर्श के मध्य धातु के बने समुद्री घोड़े ,उनके
पीछे चढ़ती उतरती पारदर्शी लिफ्ट ,तरतीब से लगाए गुदगुदे सोफे ,करीने
से लगे विशाल फूलदान ,चारों तरफ बिछे ईरानी कालीन ,उनसे
लगी मदिरा की लुभावनी दुकानें ,क्रय –विक्रय करती अप्सराओं सी हसीन युवतियाँ हमें
हैरानी में डालने के लिए पर्याप्त थीं ।
सोमरस को चखने की लालसा लिए अनेक देशी
विदेशी भौंरे मदिरा पर नजर जमाये थे । समुद्री घोड़े हवा से बातें करते नजर आए ।
मानो इस बात का आश्वासन दे रहे हों –आपकी यात्रा शुभ होगी । शीघ्र ही हमारी तरह
सरपट भागता सुपर जलयान समुद्र की लहरों से अठखेलियाँ करेगा और आप आत्मविभोर हो उठेंगे ।
दीवारों पर लकड़ी की नक्काशी और पोत का ढांचा पोत निर्माताओं व शिल्पियों के हुनर का गवाह था । । अनुशासित कर्मचारी नौ चालक ,मार्ग निर्देशक अपने –अपने कर्तव्य का पालन करते हुए यात्रियों की मदद करने का भरसक प्रयत्न कर रहे थे ।
तभी
घोषणा हुई –जहाज दोपहर के चार बजे सिंगापुर पोर्ट से चलेगा । आप लोग विभिन्न
रेस्टोरेन्ट में जाकर जलपान कर सकते हैं । हमें तो अपने सामान की चिंता थी । फिर
केबिन में जाकर बालकनी से लहराते समुद्र के ऐश्वर्य का अवलोकन भी करना था । अगले
दिन के रात्रि –समारोह –भोज (Gala Dinner)के लिए आरक्षण भी कराना था । उसमें सीटों की
व्यवस्था सीमित होती है । निशुल्क होने से सभी यात्री उसमें जाना चाहते हैं । इसीलिए जो पहले आ गया वह पा गया वाला
नुस्खा अपनाया जाता है । हम आरक्षण के लिए भागे –भागे रिसेप्श निस्ट डेस्क पर गए ।
वहाँ पहले से ही टिकट लेने वालों की दीर्घ कतार थी । मेरा तो दिल धड़कने लगा । जब
तक हमारा नंबर आए कहीं टिकट ही न खतम हो
जाएँ । पिछले महीने यहाँ आए मेरे भाई को
टिकट नहीं मिल पाए थे । पर हम सौभाग्यशाली निकले और दो टिकट मिल गए ।
रहरह
कर सवाल उठ रहे थे -सुपर स्टार 13 डेक वाले विशाल यान के बारे में कैसे जानेंगे ?कहाँ
क्या करने जाना है ?पता करते –करते कहीं पैर जबाव न देने लगें । इसी मानसिक उथल –पुथल के बीच हम अपने ओंठ सिए मार्ग निर्देशक की सहायता से अपने केबिन नंबर
9658 के सामने जा पहुंचे । हमारी दो अटेचियाँ पहले से ही उसके दरवाजे पर रखी थीं ।
एक्सेस कार्ड से केबिन खोलकर अंदर घुसे । सीधे हाथ की ओर छोटा सा आधुनिक शैली का
बाथरूम था । उल्टे हाथ की ओर लकड़ी की
अलमारी में यात्रियों के सामान रखने की व्यवस्था थी । उसमें लाइफ जैकिट ,स्लीपर
,बाथ गाउन भी थे । उसी के बराबर में चाय की केतली व दूरदर्शन
हमारा इंतजार कर रहे थे ।
दरवाजे
के सामने ही बिछे हुए डबल बैड पर एक पेपर रखा था । जिस पर लिखा था –‘स्टार
नेवीगेटर –वैल्कम एबोर्ड। केबिन के अंदर –बाहर --!हर जगह स्वागत होता देख हर्ष की
सीमा न रही । पेपर में जहाज की समस्त गतिविधियों का अच्छा –खासा विवरण था । ।पलंग
से कुछ कदम दूर प्यारी सी छोटी सी बालकनी थी जिसमें दो आरामकुरसियाँ व मेज रखी थीं
। बालकनी और कमरे के बीच शीशे का दरवाजा
था । हमने फटाक से शीशे का दरवाजा और उस पर पड़ा पर्दा हटाया और बालकनी में जा खड़े
हुए । सिंगापुर बन्दरगाह का अद्भुत दृश्य उपस्थित था । हमने जी भरकर उसे आँखों से
पी जाना चाहा ।
नौ परिवहन नौकाएँ बड़ी कुशलता से अतुल जलराशि को चीरती आगे बढ़ रही थीं मानो कोई साहसिक समुद्री अभियान चल रहा हो ।
नौ परिवहन नौकाएँ बड़ी कुशलता से अतुल जलराशि को चीरती आगे बढ़ रही थीं मानो कोई साहसिक समुद्री अभियान चल रहा हो ।
इतने
में कमरे में लगा स्पीकर बोल उठा –‘आवास सुविधा युक्त शक्ति चालित जलयान पर आपका
स्वागत है । आज समुद्री यात्रा का प्रथम
दिन है । कृपया लाइफ जैकिट लेकर इमरजाइनसी ड्रिल के लिए डेक 7 जोन z
पर हाजिर हो जाइए ।‘
हम
तुरंत गंतव्य की ओर चल दिये । जरा सी भी देरी करके हम बदनाम नहीं होना चाहते थे ।
विदेश जाकर अपने देश की प्रतिष्ठा के लिए ज्यादा ही सजग रहना पड़ता है । सेफ्टी
डेमो में यात्रियों को अलग अलग वर्गों में विभक्त करके सेफ्टी जैकिट पहनना और उसका
इस्तेमाल करना सिखाया । साथ में संकट कालीन परिस्थिति में इमरजेंसी बोट की जानकारी
प्रदान की गई ।
अभी
जहाज के चलने में समय था । हम डेक 7 पर ‘व्यू पोइण्ट’पर जाकर खड़े हो गए ।
जहाज के आगे के हिस्से पर
खड़े होकर ऊपर से नीचे तक प्रकृति के निखरे सहज रूप को देखकर मैं रोमांचित हो उठी ।
कैमरे का बटन दबाकर उसे उसमें कैद करना चाहा । एक क्षण को हमें ऐसा अनुभव हुआ जैसे
टाईटैनिक’ अँग्रेजी पिक्चर के हीरो की तरह वहाँ खड़े हैं । यह
फोटोग्राफी जहाज के चलने के पहले ही हो सकती है क्योंकि बाद में सुरक्षा की दृष्टि
से व्यू पाइंट का दरवाजा बंद कर दिया जाता है । जैसे ही हम वहाँ से नीचे उतरे ,जहाज
हिल उठा । मैं अप्रत्याशित खुशी से छलक गई । जहाज धीरे –धीरे चलता हुआ सिंगापुर
बन्दरगाह से बाहर खुले समुद्र में निकाल आया ।
अब समुद्र तट पीछे छूट चुका था ।
सिंगापुर में चार रातें बिताकर आई थी इसलिए अपनापन सा लगा और अंजाने ही हाथ हिलाने
लगी मानो परिचित को छोड़े जा रही हूँ । फिर सोचा –कुछ दिन बाद ही तो लौट रही हूँ ,विदायगी
–बिछुड्ने का दर्द कैसा ?
स्टार
नेवीगेटर के कार्यक्रमों को पढ़कर विदित हुआ कि आज का लीडो शो देखने लायक है ।
शाकाहारी –मांसाहारी दोनों तरह के रेस्टोरेन्ट हैं । कुछ में नि:शुल्क भोजन मिलता
है ,कुछ में बिल चुकाकर । हमको भोजन के लिए 300सिगापुर डॉलर के कूपन
मिले थे । उनको क्रूज में ही खर्च करना अनिवार्य था । क्रूज से बाहर उनकी कीमत
शून्य थी । पेट में चूहे खलबली मचा रहे थे सो शुद्ध शाकाहारी स्वादिष्ट भोजन की
तलाश में बाहर आ गए । शाकाहारी भोजन के लिए ज़्यादातर लोगों की जुबान पर ‘मेडिटेरियन
का नाम था । यह डेक 12 पर था । हमने वहाँ एक्सेस कार्ड दिखाकर अंदर बैठने के लिए
सीट नंबर ले लिया । वहाँ फल –सलाद ,केक –पेस्ट्री ,जैन भोजन ,चाय-काफी
,जूस –आइसक्रीम का निहायत उम्दा इंतजाम था । भाग्य से हमारी सीट
ऐसी मिली कि खिड़की से लहराते समुद्र पर चाँदनी की बिछी चादर दिखाई पड़ने लगी ।
कुछ देर में बादलों की भागदौड़ से बाहर
का बदलता दृश्य प्रतिपल लुभाने लगा और याद आने लगीं कवि नरेश मेहता की पंक्तियाँ--
नीले
अकास में अमलतास
झर
–झर गोरी छवि की कपास
किसलियत
गेरुआ वन पलास
किसमिसी
मेघ चीवर विलास
मन
बरफ शिखर पर नैन प्रिया
किन्नर
रंभा चाँदनी ।
प्रकृति
के सौंदर्य का पान करते –करते कुछ ज्यादा ही खा गए । डकार लेते हुए यूनिवर्सल जिम
और कार्डरूम का जायजा लेने चल दिये । जिम में तो इक्के –दुक्के ही नजर आए पर
कार्डरूम में अच्छा –खासा जमघट था । रईसजादों की जेबें खाली होने के लिए कुलबुला
रही थीं ।
गुलाबी
आकाश के सम्मोहन से खिंचे हम सबसे ऊपर डेक 13 पर पहुँच गए । वहाँ हवा के इतने तेज
थपेड़े लग रहे थे कि एक पल को लगा –अगर
अपना ठीक से संतुलन न बनाए रखा तो पवन देवता हमें जरूर उड़ाकर ले जाएंगे
इतनी
ऊंचाई से उदधि गहरे नीलवर्ण का लग रहा था । वह बड़ी शांत तथा गंभीर मुद्रा में था ।
उसके इस रूप रंग –गंध के उन्माद में ख्यालों की पतंग उड़ाने लगी । । प्रभाती हवा सी
ताजगी लिए स्पोर्ट्स डेक की ओर घूम गई । वहाँ कुछ युवक बास्केटबॉल खेल रहे थे और दर्शक उन्हें घेरे उल्लसित से खड़े थे । वहाँ तो सबका
एक –एक पल मोती के समान कीमती और पुलकित
करने वाला था ।
रात
के साढ़े नौ बजते ही हम डेक 7पर चले गए।वहाँ लीडो शो होने वाला था जिसका नाम था -सौर
प्रेसा (SORPRASA) । उसमें सुपरस्टार के कलाकारों ने भाग लिया था ।
नर्तकियाँ यूरोप और ब्राज़ील की थीं । अपनी कला में वे पूर्ण दक्ष थीं । फोटोग्राफी
पर वहाँ बंदिश थी । मंचसज्जा को देख तो मेरी आँखें चुंधिया गईं । युवती के रूप में
युवक का मेकअप इतनी कुशलता से किया गया था कि संदेह की दृष्टि से कोई देख ही नहीं सकता था ।
गैलेक्सी
ऑफ स्टार्स में संगीत भरे मनोरंजक कार्यक्रम शुरू होने का समय हो गया । । बच्चों
की तरह हम वहाँ के लिए भागे । आगे की सीटें घिर चुकी थीं । मन मारकर पीछे सोफे पर
बैठना पड़ा । वहाँ से कैबरे डांसर ठीक से दिखाई भी नहीं दे रही थी । थोड़ी देर इसी
ताक में रही कि कोई आगे से उठकर जाये तो
मैं वहाँ जाकर धम्म से बैठ जाऊँ। । उस दिन म्यूजिक इज माई लाइफ नामक
विनोदपूर्ण प्रोग्राम था । आस्ट्रेलियन प्रदर्शन कर्ता मिस मारिसा बारगीज कैबरे
शैली में उसे प्रस्तुत कर रही थीं । उनके साथ पेरिस के विश्व प्रसिद्ध मूलिन रौग (Moulin Rough)थे जो हास्यपूर्ण शैली में दक्ष थे । ।दोनों अपने
अनुभवों का पिटारा खोले हास –परिहास की फुलझड़ियाँ छोडने लगे ।
गैलेक्सी
में हँसते –हँसते पेट फूल गया था मगर वहाँ से निकलते ही उदर ज्वाला भड़क उठी । ।
उसे शांत करने के लिए मेडिटेरियन में सपर करने जाना पड़ा । सोच रहे थे गुदगुदे
बिस्तर पर लुढ़कते ही सो जाएँगे मगर लेटते ही हमें लगा समुद्र की उठती लहरें पलंग
से टकरा रही हैं और पलंग केबिन में न होकर खुले समुद्र में तैर रहा है ।
रात्रि
की नीरवता को चीरती सागर की साँय –साँय कानों में फुसफुसाकर हृदय को कंपायमान करने
वाला राग अलापने लगती । प्रतीत होता कोई अजगर जहरीली फुंफकार छोडता हमें डसने आ
रहा है । संदेह के घेरे में घिरी कायर की तरह सोचती –जहाज की पेंदी में छेड़ हो गया
तो क्या होगा !समुद्री तूफान के आने से तो हमारा जहाज और हम डूब ही जाएँगे । हड्डी
–पसली तक का पता नहीं लगेगा । । अंजाने में भार्गव का हाथ थाम लिया ,मुझ
डूबते को तिनके का सहारा मिला ।
छवि योजना -सुधा भार्गव
छवि योजना -सुधा भार्गव
क्रमश :
यह यात्रा वृतांत -यादों के झरोखों से (यात्रा संस्मरण संकलन )साहित्यिकी प्रकाशन के अंतर्गत 2008 में प्रकाशित हो चुका है ।
यह यात्रा वृतांत -यादों के झरोखों से (यात्रा संस्मरण संकलन )साहित्यिकी प्रकाशन के अंतर्गत 2008 में प्रकाशित हो चुका है ।
Ati sundr
जवाब देंहटाएंआपका यह यात्रा वृतांत अद्भुत है ऐसा लगा जैसे मैं भी इसमें शामिल हो कर आनंद ले रहा हूँ.अब तो मेरे लिए शायद ही कभी संभव हो पायेगा.मेरी पत्नी ने इसे पढ लिया होता तो सबसे पहले आप का धन्यवाद करती इतनी अच्छी जानकारी के लिए और फिर..... खैर मैं आपको इस संस्मरण के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूँ सुधा दी .
जवाब देंहटाएंभाई जी
हटाएंआप काफी देर तक क्रूज यात्रा करते रहे और अमूल्य टिप्पणी दी । यह सब मुझे बहुत अच्छा लगा । अतीत का पिटारा खोलकर उसमें दूसरे की साझेदारी एक अजीब सा सुख दे जाती है । कभी -कभी बड़ा ताज्जुब होता है मनुष्य वर्तमान का उपभोग करता है ,भविष्य पर आँखें गड़ाए रहता है और अतीत को खंगालने से बाज नहीं आता । यह उसका स्वार्थ है या सामर्थ्यता ।
aap ke ye ssnmrn swrnim dhrohr hain
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी बहुत उत्साह वर्धक है । पीनांग यात्रा की झलकियाँ शीघ्रही पोस्ट करूंगी ।
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