यह साहित्यिकी अंक अपने में विशेष है। इसकी परियोजना के समय किसी ने सोचा भी न था कि सुकीर्ति जी की स्मृति ही शेष रह जाएगी और उनकी मधुर यादों को इसमें संजोना पड़ेगा । पत्रिका के एक खंड में उनको समरण करते हुए श्रद्धांजलि देने का प्रयास है तो दूसरे खंड में साहित्यिकी मित्रों के विविध संस्मरणों का लेखा -जोखा है।
निम्न लिखित संस्मरण इसी पत्रिका का एक अंश है।
वह चाँद सा मुखड़ा/सुधा भार्गव
कभी -कभी जीवन में ऐसा घटित होता है जो भूलते भी नहीं बनता और याद आते ही उसकी खरोंच दिल को लहूलुहान कर देती है । अनेक वर्षों पहले मेरे भाई के आँगन में दो पुत्रियों के बाद पुत्र का जन्म लेना किसी समारोह से कम न था। पहली वर्षगाँठ पर उस चाँद से टुकड़े पर अंजुली भर -भर आशीष लुटाया पर वह कम पड़ गया ।
रात का भोजन मिलकर करना परिवार का नियम था । भोजन समाप्ति पर माँ ममता का आँचल पसार नन्हें नकुल को कुर्सी से उतारती और कहती -बेटा चल , हाथ मुँह धो ले वाशवेसिन पर। कभी गोदी के झूले में झुलाती,कभी स्टूल पर खड़ा करके कुल्ले कराती। वह नटखट इतनी ज़ोर से कुल्ला करता कि नीचे पानी पानी ही हो जाता और फिर भागता फिसलता हुआ माँ की बाहों से।उसे पानी से खेलने का बड़ा शौक था इसीकरण कुल्ला खुद करना चाहता था ताकि पानी से खेल कर सके। नहाता तो नल की धार से जग में पानी भरभरकर अपने ऊपर उड़ेलता और अपनी माँ के ऊपर भी भिगो देता ।
-ठहर शरारती ,अभी तुझे बताती हूँ । मुझे सारा भिगोकर रख दिया। माँ डांटती भी और फिर खुद ही यशोदा मैया की तरह उसकी बाल सुलभ क्रीड़ाओं पर हंस देती।
उस वाशबेसिन के पास एक बाथरूम बना था। वहाँ एक स्टूल पर पानी का मग रक्खा रहता था ताकि पानी से भरे प्लास्टिक के ड्रम से पानी लेकर बाल्टी में डाला जा सके।वह ड्रम करीब 3फुटा होगा। पानी नलों में चौबीस घंटे नहीं आता था इसलिए पानी एकत्र करके रखना पड़ता था।
उस काली रात नकुल खाने के बाद कब -कब में कुर्सी से सरककर कहाँ चला गया पति - पत्नी को पता ही नहीं चला ।
काफी देर बाद होश आया --अरे नकुल कहाँ चला गया !नकुल --नकुल आवाज लगने लगीं । उसकी बहनों ने कमरे छान मारे । माँ ने बाथरूम ,शौचालय ,रसोई देखी ,उसके पापा छत की ओर दौड़े ,नौकरों ने पास पड़ोस में पूछना शुरू कर दिया --अजी आपने नकुल को तो नहीं देखा । परेशान उसके पापा बोले -घर में ही होगा ! वह बाहर जा ही नही सकता --जरूर शैतान पलंग के नीचे छिप गया होगा या दरवाजे के पीछे खड़ा होगा ,मैं दुबारा देखता हूँ । .बाथरूम का दरवाजा अधखुला था और लाईट नही जली थी पर बरांडे के बल्व की रोशनी वहां पड रही थी । भाई ने नकुल को खोजते समय जैसे ही दरवाजा पूरा खोला .उसकी चीख से घर हिल उठा । ,सब लोग दौड़े -दौड़े आये ...देखा --ड्रम के बीच में दो अकड़े सीधे पैर !ड्रम में मुश्किल से दो बाल्टी पानी होगा । उसके बीच में था पानी से भरा मग्गा ,मग्गे मं फंसा हुआ था नकुल का सिर । आँख ,नाक मुँह सब पानी में डूबे हुए थे । काफी पानी उसके शरीर में जा चुका था।पूरा शरीर अकड़कर सीधा खड़ा था ।
अंदाज लगाया गया -हाथ धोने नकुल बाथरूम में गया होगा । ड्रम में पानी कम होने के कारण उसने स्टूल पर खड़े होकर मग्गे से पानी झुककर लेना चाहा , इस कोशिश में वह इतना झुक गया कि सर के बल ड्रम में जा पड़ा और नियति का ऐसा भयानक खेल --सर उसका मग में फँसा …। न वह हिलडुल सकता था न चीख -चिल्ला सकता था ।, देखने वाले सदमें से बेहोश !भारी दिलों से उसे निकला और पेट से पानी निकालने की कोशिश की ,कृत्रिम सांस प्रक्रिया की । मेरा भाई डाक्टर --सब कुछ समझते हुए भी समझने का साहस खो बैठा था । कोई चमत्कार होने की आशा में चिल्लाया --किसी डाक्टर को बुलाकर तो दिखाओ और ढाढें मारकर रो उठा।तब तक छोटे भाई वहाँ पहुँच चुके थे। हितैषी पड़ोसियों से घर घिर गया था।डाक्टर साहब आए। एकसाथ सैकड़ों उम्मीद भरी निगाहें उनकी ओर उठ गई। जैसे आये थे वैसे ही चले गए हरे -भरे घर आँगन में वेदना की मोहर लगा कर।मासूम नन्हा नकुल असमय ही खिलने से पहले ही इस दुनिया को छोडकर जा चुका था।
घर में आंसुओं की बाढ़ आ गई , वहाँ से आती कराहटें सुननेवालों के दिल दहला देती। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि बेटे से बिछुड़े सुबकते माँ -बाप को किन शब्दों में सांत्वना दें । सांत्वना देने वाला कुछ कहे उससे पहले ही वह रो उठता। गमगीन वातावरण में हम सब जिंदा लाश बन कर रह गए थे।
इस घटना को बीते वर्षों बीत गए पर जब भी याद आती है तो एक छिलन पैदा होती है और रिसने लगती है उससे न कभी खत्म होने वाली अंतर्वेदना की कसमसाहट। क्या करूँ! अपने प्यारे चाँद से भतीजे की बड़ी बड़ी आँखें,भोली बातें,ठुमक ठुमक कर चलना भूल भी तो नहीं पाती।
आपकी लिखी रचना बुधवार 10 दिसम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंऑंखें नम हो गयी पढ़ते पढ़ते ....घर-आँगन की बहार होते हैं बच्चे ..लेकिन नयति आगे हम सब मजबूर हो जाते हैं तो मन में एक टीस रह रह कचोट जाती है मन को जब तक कई मौकों पर ...
जवाब देंहटाएंमुझे आपका blog बहुत अच्छा लगा। मैं एक Social Worker हूं और Jkhealthworld.com के माध्यम से लोगों को स्वास्थ्य के बारे में जानकारियां देता हूं। मुझे लगता है कि आपको इस website को देखना चाहिए। यदि आपको यह website पसंद आये तो अपने blog पर इसे Link करें। क्योंकि यह जनकल्याण के लिए हैं।
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