मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

रोटेरी त्वचा दान निबंध प्रतियोगिता


विषय -त्वचा दान ,संक्षिप्त परिचय एवं उसका महत्व

 सुधा भार्गव

त्वचा दान की अवधारणा एवं उसकी जागरूकता 


 


    ईश्वर ने हर जीव को एक सुरक्षा कवच के साथ इस दुनिया में भेजा है और वह है त्वचा। यह प्रदूषण ,बदलते परिवेश में रासायनिक तत्वों और कीटाणुओं से उसके शरीर की  रक्षा करता है। लेकिन आजकल इसके क्षत -विक्षत होने में देर नहीं लगती। आए दिन सड़क दुर्घटनाएँ , जलने-जलाने,आग से झुलसने -झुलसाने की आकस्मिक घटनाओं ने इंसान का जीना दूभर कर दिया है। तेजाब फेंककर किसी का जीवन बर्बाद करने की वीभत्स जानलेवा लीला और शुरू हो गई हैं। चोटों और जलने के छोटे घाव पर तो रोगी के बिना जले हिस्से से त्वचा को काट कर डाल दिया जाता है। पर 60-80%शरीर के जल जाने पर रोगी की त्वचा का उपयोग नहीं हो सकता  । ऐसे में दान की त्वचा वरदान सिद्ध होती है। जो छ्ह घंटे के अंदर मृतक शरीर के पीठ,पेट या जांघ-पैर से निकालकर त्वचा बैंक में सुरक्षित कर दी जाती है।  वैसे तो त्वचा की आठ परतें होती है पर सिर्फ ऊपर की परत ही निकाली जाती है। कैडेवर त्वचा संक्रमण को रोकने, यंत्रणा  को कम करने,  घावों या जले  भाग की चिकित्सा में अद्भुत मददगार  है।  हालांकि मृत व्यक्ति की  त्वचा से की गई अस्थाई ड्रेसिंग विकल्प के रूप में ही कार्य करती है, लेकिन रोगी की त्वचा के उत्थान में यह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसी मनोदृष्टि से त्वचा दान की अवधारणा विकसित हुई । पर जागरूकता की कमी के कारण यह अपने विकास की प्रथम सीढ़ी पर ही प्रतीत होती है।

    कुछ दिनों पूर्व मुझे ही नहीं पता था कि त्वचा  दान  क्या है? इसके बारे में अपने मित्रों से बातें कीं  तो जाना, शहरी शिक्षित वर्ग भी मेरी तरह अंजान है। डॉक्टर रिश्तेदारों को खखोड़ा। उन तक को नहीं मालूम त्वचादान किस चिड़िया का नाम है। पर मैंने उनके दिमागी दरवाजे पर दस्तक दे ही दी । उन्होंने अपने परिवार में चर्चा की,मित्रों से बातें की।एक दूसरे के विचार  मेरे साथ साझा हुये । कहने का अभिप्राय केवल इतना है कि त्वचा दान के प्रति दूसरों में जागरूकता फैलाने से पहले यह अभियान हम अपने से ही क्यों न शुरू करें।कड़ियाँ तो उसमें स्वमेव ही जुड़ती चली जाएंगी।   

   हमारा देश विविधता का देश है। धार्मिक कट्टरपंथी और अंधविश्वासी आत्मा-परमात्मा ,पाप -मोक्ष के कुंड में स्नान करते रहते हैं । अगले जन्म से जुड़े अंतिम अनुष्ठानों से हर भारतीय का अटूट संबंध है । उन्हें समझना -समझाना दहकते अंगारों पर लोटने से कम नहीं।  

    ऐसी परिस्थिति में त्वचा दान कहने की बात बहुत भारी पड़ती है। हम भारतीय जानते हैं मरने के बाद शरीर नश्वर  है पर तब भी भावनाओं -संवेदनाओं के वशीभूत अधिकांशतया मृतक शरीर के छिन्न -भिन्न होने की कल्पना से ही सिहर जाते हैं ।

    लोगों की सोच तो लेकिन बदलनी होगी। उन्मादी इंसान के अमानवीय कृत्यों के परिणामस्वरूप 60%से 80 %जले लोगों को बचाने के लिए मृतक की त्वचा  सुरक्षित करनी  ही होगी  वृहद पैमाने पर लोगों में चेतना  लानी होगी । इसके लिए उनके दिमाग में उठने वाले हर प्रश्न का उत्तर देना होगा। जैसे  त्वचा दान की आवश्यकता क्यों है  ?त्वचा कब  कैसे और किसकी  ली जाती है ? त्वचा  सुरक्षित कहाँ रखी जाती है? इससे किस तरह से लोगों की जान बचाई जा सकती है?आदिआदि। मानसिक तौर से पूर्ण संतुष्ट होने पर ही लोग त्वचा दान की ओर कदम बढ़ाएँगे।

   इन सब प्रश्नों का उत्तर वही दे सकता है जिसको त्वचा और त्वचा दान से संबन्धित पूरा पूरा ज्ञान हो। इसके लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे।

    मेडिकल स्नातक के पाठ्यक्रम में त्वचा बैंक ,त्वचा दान जैसे विषय भी शामिल होने चाहिए। उसके बाद लेखक प्रकाशक व स्नातक के सहयोग से ऐसी पुस्तकें प्रकाशित होनी चाहिए जिनमें शरीर रचना विज्ञान और सर्जरी को त्वचादान से जोड़ दिया जाय। 80%जले हुए लोगों के पुन :जीवन दान में त्वचादान के महत्व का उल्लेख हो।  त्वचा विशेषज्ञ डॉक्टर्स किताबें लिखें। वे  अपने सकारात्मक प्रेरक अनुभव बताकर लोगों की सोच बदलने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं । मेडिकल स्नातक छुट्टी के दिन स्वयंसेवक के रूप में जन संपर्क द्वारा त्वचा दान के महत्व को उजागर कर लोगों का  ध्यान इस ओर आकर्षित  करने में सफल रहेंगे।

     त्वचा दान जैसे गंभीर विषय को बाल साहित्य व किशोर साहित्य से भी जोड़ सकते हैं। कहानी -कविता  द्वारा खेल खेल में अति दिलचस्प तरीके से त्वचा दान की जरूरत व महत्व पर प्रकाश डाला जा सकता है । इससे यथार्थता की भूमि पर पैर टिकाये इस विषय से वे एकदम अनभिज्ञ न रहेंगे।

    तेजाब हमले से पीड़ित लक्ष्मी अग्रवाल के जीवन पर आधारित मूवी छपाक देख इंसान दर्द से कराह उठता है । जनता का बहुत बड़ा वर्ग एसिड अटैक के खिलाफ उठ खड़ा हुआ है । जलने -जलाने की घटनाओं पर शॉर्ट मूवीज बनाकर फिल्म इंडस्ट्री अहम भूमिका निभा सकती है।

     त्वचा दान द्वारा स्वस्थ हुये रोगियों की कहानियों का प्रचार किया जाना चाहिए फिल्में, वृत्तचित्र ,मीडिया इस के प्रसार में मदद करेंगे।  त्वचा बैंक के लाभार्थी भी जोरदार अभियान चलाकर लोगों को प्रेरित कर महसूस करा सकते हैं कि जीवन समाप्त होने के बाद भी समाज को कुछ देना है ।

     अंगदान के नाम से ही लोग डरते हैं । डॉक्टर्स तक किडनीदान ,नेत्रदान के लिए आगे नहीं आते हैं। फिर गैर चिकित्सा व्यक्ति से उम्मेद लगाना बेईमानी सी लगती है। डर दूर करने के लिए उन लोगों से  संपर्क किया जाय जिनके रिशतेदारों ने मृत्यु पर्यंत त्वचा का दान किया  या जिन्होंने त्वचा के दान का मन बना लिया है।उनके अनुभव से अवश्य भय को  राहत मिलेगी।  

    फौलादी इरादों वाली असहनीय यंत्रणा भोगी लक्ष्मी अग्रवाल ,एसिड अटैक सरवाइवर प्रज्ञा प्रसून जैसे लोगों को विशेष कार्यक्रमों में  निमंत्रित कर जनता से साक्षात कराया जाए तो उनकी कही-अनकही व्यथा वास्तविकता के कपाट खोले बिना न रहेगी ।

    त्वचा को सुरक्षित रखने के लिए त्वचा बैंकों की संख्या भी बढ़ानी पड़ेगी । डॉक्टर्स को बर्न विशेषज्ञ बनने के लिए उत्साहित करना होगा। तभी तो जागरूकता के परिणाम अच्छे  होंगे।

   माना त्वचा दान की प्रक्रिया अभी शैशव अवस्था में है, प्रौढ़ता तक पहुँचने में उसे वर्षों लग जाएँगे। पर अंधेरे में बैठने से तो अच्छा है उम्मीद का एक दिया जलायें! क्या जाने उसकी रोशनी में अनगिनत दिये झिलमिला उठें और हजारों बिलखते- तड़पते लोगों को जिंदगियाँ मुस्करा उठें।



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रविवार, 23 जनवरी 2022

निबंध -प्रकाश प्रदूषण

 प्रकाश प्रदूषण 

सुधा भार्गव 

    स्वस्थ जीवन के लिए स्वस्थ वातावरण की आवश्यकता है। प्राकृतिक व्यवस्था को अव्यवस्थित करने की चेष्टा में पर्यावरण दूषित होने लगता है, तब प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है। यह आधुनिक औद्योगिक शहरी सभ्यता की देन है।

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दिन की जगमगाहट 



प्रकाश प्रदूषण पर्यावरण को बहुत कुछ प्रभावित करता है। बिजली के आविष्कार से जन जीवन आरामदायक तो हो गया पर जब इस कृत्रिम रोशनी का दिन -रात जरूरत से ज्यादा उपयोग होने लगा तो प्रकाश प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो गई। 


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रात की चकाचौंध 

     पृथ्वी का वातावरण ग्रीन हाउस की सतह के रूप में काम करता है और यह पृथ्वी की सतह को गरम रखने में सहायक है ।वरना ठंड के कारण जीवन दूभर हो जाता। सूर्य की ओर से आने वाली ऊर्जा, प्रकाश किरणों के रूप में एक सतह को पार कर ग्रीनहाउस  तक आती है। ग्रीनहाउस में कार्बनडाय आक्साइड ,नाइट्रस ऑक्साइड आदि होती हैं जिससे धरती का तापमान बढ़ जाता है। कृत्रिम रोशनी के कारण इन गैसों की मात्रा में वृद्धि होती है और पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है। जलवायु में बदलाब आ जाते हैं। ग्लोवल वार्मिंग का यह मुख्य कारण है।  

    आधुनिक प्रकाश व्यवस्था में दुनिया की एक चौथाई बिजली नष्ट हो जाती है,मनों टन कोयला फूँक जाता है। यदि हम चाहे तो इसको अपनी कुशलता से बहुत हद तक  रोक सकते हैं। प्रदूषण से भी मुक्ति मिलेगी और  बिजली भी बचेगी। इस बची बिजली से न जाने कितने घर रोशन हो जाएँगे,कितने ही उद्योग पनप सकते हैं। 

    शहरी सड़कों की जगमगाहट और सिनेमा हॉल ,रेस्टोरेन्ट ,मॉल विज्ञापन ,कार्यालय और उत्सवों में फील्ड लाइट,ट्यूब लाइट  का ऐसा चलन हुआ है कि बाहर तो यह आँखों को चकाचौंध करती ही है, 

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रेस्टोरेन्ट-उत्सव 

खिड़कियों और दरवाजों से घुसकर घरों में भी आसान जमाये है। कोठियों और इमारतों में रात को सुरक्षा की दृष्टि से होने वाली रोशनी से प्रदूषण बढ़ता है। यह रात में साफ दिखाई देता है। रात के वक्त आकाश की चमक-दमक पर दृष्टि डालें तो उसमें मध्यम रोशनी की धुंध भी नजर आएगी। यही प्रदूषण हैं। 

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प्रकाश प्रदूषण

 इस प्रदूषण से पूरा भूमंडल खतरे में है। पौधों को अंधेरा और रोशनी दोनों की जरूरत है।  अंधेरा बीज को फूल में बदलने और रोशनी पौधों को ज़िंदगी देने में मदद करती है।रात की कृत्रिम रोशनी के कारण वे खिलने से पहले ही मुरझा जाते हैं। कुछ पौधों की तो प्रजाति ही लुप्त हो रही है। 

     ऊंची जगरमगर करती इमारतों के कारण प्रवासी पक्षी अपने रास्ते से भटक जाते हैं। न जाने कितने रोशनी से आकर्षित होने के कारण इनसे टकराकर मरते  हैं। पक्षी -अंधेरा होते ही अपने घोंसलों में बच्चों के साथ विश्राम करते हैं पर रात में भी रोशनी देख उलझन में पड़ जाते हैं कि यह दिन है या रात। उनकी नींद में खलल पड़ता है। परेशान से एकांत जगह में पलायन करने की कोशिश में लग जाते हैं। कुछ की तो दिनचर्या ही अंधेरे से शुरू होता है। 

उल्लू को भूख लगी तो शिकार की तलाश में असमंजस सा निकाल पड़ता है क्योंकि प्रकाश प्रदूषण के कारण उसे तारे ही नहीं दिखाई पड़ते। कृत्रिम रोशनी उसकी दृश्य शक्ति को कम कर देती है।

रात में स्पष्ट दिखाई देने के कारण चमगादड़,हिरण आदि  गतिशील रहते है पर उनकी भी दृष्टि बाधित होती है । न ठीक से पेट भर पाते हैं और न उड़कर या चौकड़ी भरते दूर जा पाते हैं। कछुए और मेढक की तो  एकांत व अंधेरे में ही प्रजनन क्रिया व यौन संबंध संभव है।रोशनी से उनकी एकाग्रता में बाधा पड़ती है। 


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    खगोलीय वेधशालाओं के कार्य भी सुचारुरूप से नहीं हो पाता है। याद आते हैं बचपन के वे गर्मियों के दिन जब रात को खाने के बाद छत पर चढ़ जाते थे।चमकते चंद्रमा और तारों की बारात देख ठंडक सी महसूस होती थी और मन खिल-खिल उठता था। हमारी नजरें पल में ही  सप्त ऋषि और चमचमाते ध्रुव तारे को खोज लेती थीं। बाबा बालक ध्रुव की कहानी सुनाया करते थे। आज के बच्चे प्रकृति की इस छटा से अछूते हैं।  महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए बड़े चाव से करवाचौथ का व्रत करती हैं। सारे दिन भूखी रहकर चंद्रमा के दर्शन करके ही उपवास तोड़ती हैं। पर उस दिन बेचारी आकाश में चंद-सितारे  खोजती ही रह जाती हैं। निकलने पर भी प्रदूषण के कारण वे देर से दिखाई देते हैं या दिखाई ही नहीं देते हैं। 

बिजली का प्रकाश सूर्य के प्रकाश से बराबरी नहीं कर सकता। सूरज की रोशनी से विटामिन डी मिलता है, और दिमाग अपना कार्य सुचारूरूप से करता है। सूर्य की रोशनी से दिमाग में सेरोटोनिन (serotonin)हारमोन रिलीज होता है जिससे मिजाज ठीक रहता है। चिड़चिड़ाहट उदासीनता कोसों दूर  भागती है। चित्त शांत होने से एकाग्रता में वृद्धि होती है। रोशनी के साथ-साथ तंदरुस्ती के लिए रात का अंधकार भी आवश्यक है। क्योंकि अंधेरे में मेलाटोनिन (melatonin)हारमोन रिलीज  होता है जिससे जीव नींद का अनुभव करता है। गहरी निद्रा से हमारी सारी थकान तनाव जाता रहता है। सुबह एक नई ताजगी और जोश लिए उठते है। दिन में बिजली के प्रकाश में घिरे रहने से कार्य क्षमता कम हो जाती है। साथ ही आलस और तनाव के शिकार होते हैं।

घरों में भी तो फ्लोरेन्स ट्यूब और शानशौकत के मारे तेज रोशनी का आलम रहता है। अनिद्रा, सिरदर्द ,माइग्रेन दर्द  हमारा पीछा करने लगते हैं। । तेज रोशनी आँखें बर्दाश्त नहीं कर पातीं। इससे  देखने की शक्ति कुम्हला उठती  है। बूढ़ी और कमजोर आँखें तो दर्द करने लगती है। 

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विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार –महिलाओं में स्तन कैंसर का एक कारण अति प्रकाश भी है। जहां तक हो सके अंधेरे में सोएँ और रात में घर के लैपटॉप ,दूरदर्शन भी बंद कर दें। खिड़की के पर्दे डाल लें ताकि सड़कों के प्रकाश से बचा जा सके। 

    मनुष्य की आँखों के रेटीना में फोटो सेनसिटिव सैल होते हैं जो मस्तिष्क की पिटयूटरी ग्लेण्ड से जुड़े रहते हैं । सूर्य की रोशनी से ही ये सेल उत्तेजित होते हैं।  

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इसका प्रभावन केवल दिमाग पर ही नहीं बल्कि पूरे शरीर पर होता है। इससे रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।  

    इस तरह से स्वास्थ्य  की दृष्टि से  सूर्य की रोशनी ही उत्तम है पर बिजली की रोशनी के बिना भी काम नहीं चलेगा। इसके प्रयोग में थोड़ा सावधान रहना पड़ेगा। 

    कृत्रिम रोशनी देने वाले उपकरणों की फिटिंग इस प्रकार की जाय  कि उससे निकलने वाली रोशनी ऊपर की ओर कम जाय। बल्ब,ट्यूब लाइट नीचे की तरफ झुकाकर लगाए जाएँ जिससे हमारे शरीर पर उनका प्रकाश कम पड़े और आँखों में चौंध न पैदा हो।सजावट विज्ञापन व उत्सवों में आवश्यकता के अनुसार ही बिजली का प्रयोग हो और सूर्य की प्रथम किरण के साथ ही बत्तियाँ गुल कर दी जाएँ । जन -जन को समझना होगा कि बिजली के दुरुपयोग से ऊर्जा ही खर्च नहीं होती अपितु धन का अपव्य भी होता है । उसे बचाकर हम देश के विकास में हाथ बंटा सकते हैं।  खुशी है रोशनी प्रदूषण के प्रति देशवासियों को सचेत किया जा रहा है। कल की ही तो बात हैं टी॰ वी॰ में बच्चे नारा लगा रहे थे- - - 

बिजली बचाओ,देश बढ़ाओ। 

इतनी सूझबूझ! उनके चार शब्दों में मेरे हजार शब्द समा गए। मुझे अपना कद छोटा नजर आने लगा।