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सोमवार, 5 नवंबर 2012

किशोर डायरी


तीसरा पन्ना /सुधा भार्गव 




यह   दुनिया मुझे अद्भुत लगती  है ।रात में तारे चमकते देख कर  मैं खुशी से उछल पड़ता हूँ । उन्हें पकड़ने की कोशिश करता हूँ पर  वे मेरे हाथ नहीं आते ।दिन में तो न जाने कहाँ छिप जाते हैं ।ढूँढ़ते -ढूँढ़ते थक जाता हूँ ।

आपसे मैंने एकबार इनके बारे में पूछा भी था कि ये दिन में कहाँ रहते हैं ।हँसकर बोलीं  -मैं फ़ोन करके पूछ लूंगी--- वे कहाँ हैं ?आज तक--- नहीं ---पूछा ।पूछा  भी होगा तो भूल गई हो ।

स्कूल के बगीचे में लाल ,पीले नीले फूल खिले हैं ।  वे मुझे बहुत अच्छे लगते हैं |
   
                 मैंने यह प्रश्न भी पूछा था आपसे ---हम लाल ,पीले ,नीले क्यों नहीं होते ! आपने  मुँह बनाते हुए  कहा --इसका उत्तर तो भगवान् ही दे सकता है ।उसने ही हम सबको बनाया है ।उसे भी फ़ोन करना पड़ेगा ।

कुछ दिनों बाद मैंने फिर पूछा --माँ फ़ोन किया था ?
--अरे फ़ोन नहीं हो पाया । भगवान् तो आकाश में रहते हैं।वहां की टेलीफोन लाइन खराब है।

मुझे लगा मेरी बातों  के लिए आपके पास समय नहीं---- है ।कुछ दिनों की ही तो बात है ,फिर तो मैं बड़ा हो जाऊंगा ।जब तक छोटा हूँ मुझे अपना कुछ समय दे दो ।

दुनिया के रहस्य मेरे दिमाग में खलबली मचा देते हैं जो ---सोने नहीं देते ।
उनके बारे में मेरी जिज्ञासा शांत कर दो ।

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