तीसरा पन्ना /सुधा भार्गव
यह दुनिया मुझे अद्भुत लगती है ।रात में तारे चमकते देख कर मैं खुशी से उछल पड़ता हूँ । उन्हें पकड़ने की कोशिश करता हूँ पर वे मेरे हाथ नहीं आते ।दिन में तो न जाने कहाँ छिप जाते हैं ।ढूँढ़ते -ढूँढ़ते थक जाता हूँ ।
आपसे मैंने एकबार इनके बारे में पूछा भी था कि ये दिन में कहाँ रहते हैं । ।हँसकर बोलीं -मैं फ़ोन करके पूछ लूंगी--- वे कहाँ हैं ?आज तक--- नहीं ---पूछा ।पूछा भी होगा तो भूल गई हो ।
स्कूल के बगीचे में लाल ,पीले नीले फूल खिले हैं । वे मुझे बहुत अच्छे लगते हैं |
मैंने यह प्रश्न भी पूछा था आपसे ---हम लाल ,पीले ,नीले क्यों नहीं होते ! आपने मुँह बनाते हुए कहा --इसका उत्तर तो भगवान् ही दे सकता है ।उसने ही हम सबको बनाया है ।उसे भी फ़ोन करना पड़ेगा ।
कुछ दिनों बाद मैंने फिर पूछा --माँ फ़ोन किया था ?
--अरे फ़ोन नहीं हो पाया । भगवान् तो आकाश में रहते हैं।वहां की टेलीफोन लाइन खराब है।
मुझे लगा मेरी बातों के लिए आपके पास समय नहीं---- है ।कुछ दिनों की ही तो बात है ,फिर तो मैं बड़ा हो जाऊंगा ।जब तक छोटा हूँ मुझे अपना कुछ समय दे दो ।
दुनिया के रहस्य मेरे दिमाग में खलबली मचा देते हैं जो ---सोने नहीं देते ।
उनके बारे में मेरी जिज्ञासा शांत कर दो ।
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