शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

नौवाँ पन्ना


किशोर डायरी /सुधा भार्गव   






मेरा चचेरा भाई कक्षा 5 में पढता  है । उसका नाम लक्ष्य है ।ज्यादातर कक्षा में पहले या दूसरे नंबर  आता है ।गरमी की छुट्टियों में चाची हमेशा उसके साथ आती हैं ।चाची घर पर ही रहती हैं ।पेंटिंग का उन्हें बड़ा शौक है ।इतने सुन्दर रंग  लगाती हैं कि देखने वाला उसे खरीद ही ले ।चाचाजी काम के चक्कर में देश -विदेश जाते  रहते हैं ।उनके हिस्से का प्यार भी वे उस पर  उड़ेल देती हैं ।

वह बड़ा भाग्यवान है जो उसे चाची जैसी माँ मिली हैं ।स्कूल से आकर एक -एक बात उन्हें बताता है ।चाची धैर्य से सुनकर अपनी राय  देती हैं ।एक  अच्छे दोस्त की तरह हमेशा उसकी जरूरत पर उसके साथ खड़ी  रहती हैं ।उसको कोई  मास्टर पढ़ाने  नहीं आता ।चाची ही उसकी गुरू हैं ।

माँ ,आप हमेशा उससे बराबरी करती रहती हो ---देख तो कितने अच्छे नंबरों से पास हुआ है ।कुछ तो सीख उससे ।ऐसा कहकर आप हमेशा मुझे नीचा दिखाती हो ।मेरी आँखें आंसुओं से भर जाती हैं ।उन्हें टपकने से जबरदस्ती रोकता हूँ पर मन करता है दहाड़ मारकर रो पडूँ --शायद कोई मेरे अन्दर का दर्द समझ सके ।

हाँ ---हाँ मुझमे और लक्ष्य में अन्तर है -----ठीक उसी तरह --जैसे उसकी माँ और मेरी माँ में है ।अभी मुझमें इतना कहने का साहस नहीं है पर एक दिन साहस आ ही जाएगा और यह सच अवश्य कहूँगा  ।

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