रविवार, 23 जून 2024

सफर में सफर ,जैसा जिया वैसा कहा


7th जून 

कड़ी 5

                                 आर्ट इंस्टिट्यूट ऑफ़ शिकागो 

जहां भी जाती हूं आर्ट इंस्टिट्यूट ,आर्ट गैलरी या आर्ट प्रदर्शनी ज़रूर देखती हूँ। मालूम हुआ कि यहाँ भी अमेरिका का काफी पुराना और  बड़ा कला संस्थान है तो मन मचल उठा। यह मिशिगन ग्रांट पार्क में  ही है। सवा साल की पोती को प्रेंबुलेटर में बैठाकर  अंदर घुसे कलात्मक संग्रह को देख दंग रह गए। और मान गए कि यह दुनिया के महान कला संग्रहालयों  में से एक है। जिसमें विश्वभर की रचनात्मक कृतियाँ हैं। 

वैसे भी मेरी बहुत समय से शिकागो जाने की इच्छा था। मुझे वह जगह देखनी थी जहां विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को अपना पहला  भाषण केवल दो मिनट दिया था। लेकिन भाषण की शुरुआत ऐसे जादुई शब्दों में की कि वहां बैठे लोग ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया मंत्रमुग्ध की तरह उसे सुनती रही। । 


जैसे ही उन्होंने अपना भाषण शुरू किया  

' अमेरिका के  भाइयों -बहनों ---इन तीन शब्दों के बाद 2 मिनट तक  अनगिनत हाथों की तालियां गूँजती रहीं। ।

उनके भाषण को सुनने के लिए 6000 से अधिक लोग स्थाई स्मारक कला महल में इकट्ठे हुए थे जिसे आजकल शिकागो   का कला संस्थान कहा जाता है। इसके बाद तो उन्होंने अनेकानेक वक्तव्य द्वारा  भारत की आध्यात्मिक विरासत का प्रचार किया। 

यहाँ प्रसिद्ध चित्रकारों की पेंटिंग का भंडार है।  अद्भुत तस्वीरों,दुर्लभ मूर्तियों का आगार है। तमिल नाडु की बुद्ध  मूर्ति को मेडिटेशन की मुद्रा में बैठे देख नजर ठहर गई और अपने देश की याद आ गई।  इंप्रेशनिस्ट और पोस्ट इंप्रेशनिस्ट चित्रों की तो मैं प्रशंसा किए बिना न रही। अंदर से लहर आई कि काश मेरे हाथ में ब्रुश और सामने कैनवास होता! उनकी तरह रंग बिखेर पाती!

वहाँ की कुछ झलकियाँ 

बुधवार, 12 जून 2024

सफर में सफर जैसा जिया वैसा कहा

 

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 बड़े कंधों का शहर शिकागो की  क्रूस यात्रा 

शिकागो  में हमारे पास  केवल 7दिन थे। इतने कम समय में ज्यादा से ज्यादा  शहर का इतिहास जानना चाहते थे। शिकागो  विशाल लेक मिशिगन एवं मिसिसिपी नदी के बीच बसा है।  लेक के पास ही हमारा घर! सो पैदल ही पैदल बड़े से पार्क को  पार करते  लेक  के किनारे पहुंच गए। धूप का चश्मा ,टोपी ,जाकेट और पानी ले जाना न भूले। न जाने मौसम का कब मिजाज बदल जाये। 

प्राकृतिक सुषमा को निहारते कुछ देर तक लेक का चक्कर लगाया।

एक मूर्ति  को देख रुक गए। कुछ देर उसके शिल्प को देखती रही जो मुझे मुग्ध किए बिना न रहा।  कौतूहल वश उस पर जड़ी पीतल की पट्टी पर लिखा पढ़ा और कैमरे में कैद कर लिया। 




CAPTAIN ON THE HELM

They mark our passage as a race of men,Earth will not see such ships as those agen."

JOHN MASEFIELD

DEDICATED THIS 19TH DAY OF MAY,IN THE YEAR 2000

TO THOSE COURAGEOUS MARINES WHO GUIDED THEIR SHIPS

THROUGH PERILIOUS WATERS,CARRING CARGO AND PEOPLE. THEIR CONTRIBUTIONS

 

INTERNATIONAL SHIPMASTERS'ASSOCIATION.CHICHGO LODGE NO.3

SCULPTURE:Michael Martino

     झील के किनारे  सफेद ,नीली वाटर टैक्सियाँ  सैलानियों को लुभाने में लगी थीं।मैं अपने बेटे के साथ वाटर बोट टैक्सी में बैठकर शिकागो नदी के किनारे पहुँच गई।  । शिकागो नदी का इतिहास तो पूरे शहर का इतिहास है। यह नदी शिकागो शहर से ही गुजरती है।इसी  इतिहास को जानने के लिए हमने क्रूज में बैठने का इरादा किया । टिकट  लेने के लिए पूंछते  -पांछते उस जगह रुक गए जहां एक बोर्ड टंगा था । लिखा था ….

Shore  line sight seeing 

     फट से टिकट ले ,लहरों के साथ हिलते- झूमते क्रूस पर हम  चढ़ गए। नीली -चमकीली लहरों को छूती हवाएँ ठंडी व तेज थी। हमारे एक साथी की तो टोपी ही उड़ गई और २१ फ़िट गहरी नदी  में खेलने लगी लहरों के साथ।  हमने तो अपनी टोपी कस कर पकड़ ली  और काला  चश्मा नाक पर ज़ोर देकर बैठा  लिया।   कहने को तो नदी का  रंग नीला है पर सेंट पैट्रिक दिवस पर इसे हरे रंग से रंग देते हैं। 

    इसमें बैठते ही जलमार्ग की भव्य उपस्थिति पूरे शहर में महसूस होने लगीं।

 

दोनों तरफ गगनचुम्बी इमारतों को देख ठगे से रह गए। जो समृद्ध वास्तु शिल्प का इतिहास बताने में सक्षम हैं। शिकागो दुनिया की पहली गगनचुंबी इमारत का घर है। सबसे पहले विलियम लेबरन जेनी शिकागो वास्तुकार ने नौ मंजिल ऊंची होम लाइफ इंश्योरेंस बिल्डिंग बनाई जिसका बाहरी दीवारों सहित पूरा वजन  लोहे के फ्रेम पर रखा गया था।

    गाइड ने यह कहकर हमें हैरत में डाल दिया कि 500 से ज्यादा गगनचुम्बी इमारतें मिट्टी से बनी हैं। इन पर न पानी  का असर होता है और न आँधी -तूफान का। कुछ इमारतें तो सैकड़ों  वर्ष पुरानी लगीं।  लेकिन बड़ी शान से खड़ी अपने अतीत की गाथा कह रही थीं।    

    बातों ही बातों में क्रूस मेँ बैठे  एक बुजुर्ग  ने बताया -“शिकागो जमीन से ऊपर उठाया शहर है।”

हम तो चौंक पड़े पर पास ही खड़ा एक लड़का चहक उठा-“तब तो अंकल, शिकागो शहर के  हवाईजहाज़ की तरह पहिये लगे होंगे ।तभी तो यह ऊपर उठ गया।”

उसकी भोली बात से चेहरों पर हंसी मुखर हो उठी। 

एक अन्य किशोर भी वाचाल हो उठा -“मुझे तो लगता है पूरे शहर को जैक लगाकर अपलिफ्ट किया है।”  

ये सज्जन ठीक ही बोल रहे हैं। शिकागो असल में  दलदल वाली जमीन पर बसा है। एक बार हैजे ,टाइफाइड जैसी बीमारियों ने ज़ोर पकड़ा  तो सैंकड़ों की संख्या में लोग मरने लगे जी।  बाद में पता लगा कि मिशिगन झील और शहर की ऊंचाई एक होने के कारण जमीन दलदली हो गई है।” गाइड बोला। 

अब तो दलदली नहीं लगती ।  पानी कैसे सुखा दिया?” मैंने पूछा। 

मिट्टी का भीगना तो अपने आप ही बंद हो गया जी ,जब शहर को थोड़ा ऊपर उठा दिया।” 

ऐं, तुम भी वही बात कर रहे हो जो असंभव है।” 

ठीक ही कह रहा हूँ।  एक तरह से शहर को फिर से बनाया। दलदली जमीन,फुटपाथ,नालियों को मिट्टी से पाटा । पुरानी इमारतों  को ऊपर उठाया। नई इमारतों को ऊंचाई पर बनाया।” 

बड़ी मेहनत और सूझबूझ का काम है यह तो ।मान  गए मिट्टी के शहर का लोहा।”

    बातों का बाज़ार गर्म था पर निगाहें सामने ही बढ़ते क्रूज़ पर जमी थी ।  दोनों तरफ  बिल्डिंग को छूता पानी --टकराती लहरें मीठा सा संगीत पैदा कर रही थीं। बीच में शहर के दो बिंदुओं को   जोड़ते छोटे -छोटे ब्रिज बने थे जिन पर स्ट्रीट के नाम लिखे थे- जैसे मेडिसन स्ट्रीट ,लेक स्ट्रीट ,क्लार्क स्ट्रीटहेरिसन स्ट्रीट।। इन पुलों के कारण जल जीवन भी सामान्य था और   शहर के दूसरे हिस्से में पैदल प्रवेश भी  सुविधाजनक था। न ट्रैफ़िक न प्रदूषण। मैं तो इन्हें देखती ही रह गई। क्या अद्भुत संरचना! कुछ ही देर मेँ  बैंक , विशाल रंगीन कांच और अल्मुनियम के भवन ,होटल ,संग्रहालय , क्लब हाई टावर ,शिकागो यूनिवर्सिटी सहित  चमकती दुनिया को भी देख लिया।

    यहाँ की श्रम प्रवृति , उन्नतशील औद्योगिक गतिविधियाँ तथा परिवहन व्यवस्था  को देख ऐसा लगा जैसे यह बड़े कंधों का शहर हो। 

सोमवार, 10 जून 2024

सफर में सफर जैसा जिया वैसा कहा

 3-शिकागो ग्रांट पार्क में अगोरा बिग फीट  


अभी तक तो यही सुना -पढ़ा  था कि शिकागो बिंडी सिटी कहलाता है।  लेकिन आज यह भी देख लिया कि विंडी सिटी होता क्या है। घर से तो बहू के साथ थोड़ा घूमने के लिए ही पैदल निकल पड़ी थी। साथ में नन्ही परी को भी ले गएा। वह प्रेंबुलेटर में बैठी थी।   दूर से हरे -भरे पेड़ों का झुरमुट दिखाई दिया। मुदित मन उसी ओर  मुड़ गए। मिशिगन एवेन्यू से करीब आधे किलोमीटर चले होंगे कि  ग्रांट पार्क पहुंच गए। 

घर  से चले तो अच्छी खासी धूप थी । हल्का सा बस एक स्वेटर पहन लिया था। अचानक बदली छा गई। पानी बरसने के आसार नज़र आने  लगे। हमारे दिल की धड़कनें तो तेज हो गईं। परंतु ईश्वर की लीला !कुछ देर में ही  धूप निकल आई। जन में जान आई लेकिन   साथ ही  हवा के झोंके भी ले आई।  कुछ ही मिनटों में  हवा इतनी तेज हो गई कि लगा  हमें उड़ा कर ही दम लेगी ।


शांत वातावरण में हलचल  पैदा हो गई।  मैंने बहू की बांह   कसकर पकड़ ली । मानो मै एक बच्ची होऊँ और हवा के हल्के से धक्के से लुढ़क जाऊँगी।   पैर जमाते हुए  एक -एक इंच आगे बढ्ने लगी। लेकिन  चारों  तरफ का दृश्य आँखों में भरने को भी आतुर थी।  । 

 अचानक एक तरफ बनी ऊंची -ऊंची बिना सिर वाली आकृतियों की भीड़ को  देख  ठिठक गई।



हवाई तेज झोंकों को तो भूल गई !आकृतियों की ओर द्रुत गति से  अपने को संभालती - बढ्ने लगी।  गगन चुम्बी इमारतों की तरह आकृतियाँ भी बड़ी -बड़ी! कम से कम 9-10 फीट की तो होगी।खूब चमक रही थी। जरूर लोहे में कास्य और स्टील मिलाया होगा। पास आने पर मैं तो उनके लंबे -लंबे पैरों को ही देखती रह गई । खड़ी एक जगह थीं  पर लगता था चारों तरफ उनके कदम बढ़ रहे हैं।   मुझे तो  वे सिर विहीन मूर्तिया बहादुर सिपाही नजर आ रहे थे जो जरूर अपनी जान पर खेल गए होंगे। बस अत्याचारियों ने सजाये तौर पर उनके सिर धड़ से अलग करने का हुकुम सुना दिया। । देखने से साफ पता लग रहा था कि जिनके संदर्भ में भी ये सिर कटी  आकृतियाँ  बनाई गईं वे दुखी और   सताये लोगों का प्रतीक हैं।  । मेरे  अंदर तो   एक पीड़ा  सी उभर आई। । लेकिन जिसने भी इनको बनाया उसकी कलाकारिता की दाद दिये बिना न रही।







इन बिग फीट आकृतियों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने का मोह न छोड़ सकी। तीखी -ठंडी हवाओं के तीरों का सामना करते हुए सूचनात्मक पट्टिका खोजने में जुट गई। आखिर सफल हो ही गई। उस पर  लिखा था--

ये  106 आकृतियाँ   पोलैंड की  कलाकार  मैग्डेलेना अबकानोविक्ज़ ने बनाया है।ये  शिकागो को पॉलिश संस्कृति मंत्रालय से उपहार स्वरूप मिलीं   । 





   वारसॉ के बाहर एक कुलीन परिवार में जन्मी मैग्डेलेना अबकानोविक्ज़  द्वितीय विश्व युद्ध और उसके बाद के पैंतालीस वर्षों के सोवियत वर्चस्व से बहुत प्रभावित थीं।वे कलाकार होने के साथ एक लेखिका भी थीं। एक जगह  वे लिखती हैं-"उन्हें   सामूहिक घृणा और सामूहिक प्रशंसा के विभिन्न रूपों से पाला पड़ा। जुलूस और परेड में अच्छे नेताओं की पूजा की जाती थी पर वे जल्द ही सामूहिक हत्यारे बन गए।"

अबकानोविक्ज़ ने पहली बार 1970  में मानव रूप से प्रेरित और अपनी भावनाओं के वशीभूत   मूर्तियाँ बनाई

और दुनिया भर में इसी तरह के प्रतिष्ठान बनाए गए हैं, लेकिन अगोरा बिग फीट सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण  है। 

बिग फीट की बात तो समझ गई पर अगोरा !इसका मतलब !दिमाग में खलबली मच गई।  एक माली को देख उसके पास गई और अगोरा के बारे में पूछ बैठी। उसने बताया -"बहुत पहले गाँव -शहर में एक स्थान पर लोग मिलने जुलने के लिए इकट्ठे होते थे। उसे  अगोरा कहते थे। " गुत्थी सुलझ गई---यहाँ भी तो एक जगह पर ही  106 सिर कटी आकृतियाँ साथ -साथ खड़ी हैं ।  

  

हवाई मौसम अब भी तीखा था। लेकिन तब भी खुश थी ---चलो आज कुछ नया जानने को मिला।


शुक्रवार, 7 जून 2024

सफर में सफर जैसा जिया वैसा कहा

 

कड़ी 2

3 जून

विंडी सिटी शिकागो एयरपोर्ट से घर 





 

3 जून ,सुबह 10 बजे हम  माँ-बेटे शिकागो एयरपोर्ट पर पहुँच ही गए। टाटा एयरलाइंस में हमें शाकाहारी भोजन बहुत अच्छा दिया गया। साथ ही कर्मचारियों का व्यवहार बड़ा मृदुल था। इस समय मैं व्हील चेयर पर बैठी हूँ। मेरी व्हील चेयर खींचने वाला  छात्र जॉन है । शिकागो  एयरपोर्ट पर विद्यार्थियों का जाल  सा फैला हुआ है । यह काम करते हैं और पढ़ने के लिए पैसा भी कमाते हैं ।मुझे यह नियम बहुत अच्छा लगा। यहां न व्हीलचेयर की कमी  है। न ही उन्हें ले जाने वालों की।  व्हील चेयर सेवा विद्यार्थी ही कर रहे हैं! चाहे वह लड़का हो चाहे लड़की। इसमें पैसा तो मिलता ही है साथ ही  सेवा की भावना भी  उत्पन्न होती है।  बहुत ही  जिम्मेदारी का काम कर रहे हैं । साथ ही बहुत शिष्ट हैं।  हमारे देश में हुए विद्यार्थियों को छुट्टियों का मतलब है आराम या सैर -सपाटे। इन छुट्टियों का सदुपयोग आत्मनिर्भर बनने में किया जा सकता है।इससे वे पैसे की कीमत समझेंगे। आए दिन  सुनने में आता  हैं  --कक्षा छोड़कर मस्ती को निकल गए, फीस जमा न करके वह रकम  शराब पीने या ड्रग लेने में उड़ा दी।  पसीने की कमाई होने पर कुराफत करने से पहले एक बार तो सोचेंगे।


महिला गेराज काउंटर के सामने बैठी मैं उकता गई हूँ।  बेटा सामान खोजने की कोशिश कर रहा है।भारी  अटैचियों  का चक्का गोल -गोल घूम रहा है।  यात्री कितनी भारी अटैचियां उठाकर ट्रॉली पर रख रहे हैं जबकि अपने देश में एक किलो सामान उठाने में भी बेज्जती का अनुभव करते हैं ।नौकर की पुकार मचने  लगती है। अभी मेरे पास से  एक पुलिस महिला ऑफिसर कुत्ते को लेकर निकलीहै  जो लोगों का सामान सूंघ रहा है। इधर -उधर देखता  बड़ा  सतर्क है। सुरक्षा का यह अच्छा तरीका है। स्क्रीन पर आ रहा है Working dogs---Don't touch 


छात्र जॉन मेरे पास ही खड़ा रहा। सामान मिलने पर वह जल्दी से ट्रॉली खींचकर लाया और समान उसमें रखने में बेटे की मदद करने लगा। जॉन कुछ ज्यादा ही भावुक था। सामान मिलने में देरी हो रही थी तब मुझसे पूछने लगा -Will you take water or coffe? I can bring for  you .You should not be hungry for a long time. 

No--no !Thank you my son . मेरे मुंह से निकल पड़ा। अनजानी जगह में एक अंजान से मैं  जुड़ गई। वह मुस्करा दिया। मुझे उसके बोल बहुत प्यारे  लगे ठीक वैसे ही जैसे  उसका चेहरा था। 

दूसरे ही क्षण गंभीर हो गया। बातों ही बातों में उसने बताया--- मेरे मम्मी पापा का डाइवोर्स हो गया है।  मेरी दूसरी मां  ग्रैंड मदर का एकदम ध्यान नहीं रखती । बाहर होने पर मुझे हमेशा उनकी चिंता सताए रहती है। आपको देखकर मुझे अपनी दादी की याद आ गई। आपके बेटे कितने अच्छे हैं जो आपका इतना ध्यान रखते हैं। एक मेरे पिता है । एक महीना में एक बार भी दादी मां से बात करने का समय नहीं मिलता। उसकी बात सुनकर मैं गहरी सांस लेकर रह गई क्योंकि अब बुजुर्गों के प्रति उपेक्षा  का भाव तो हमारे देश में भी मामूली बात हो गई है। 

जॉन मुझे   एयरपोर्ट के बाहर टैक्सी तक छोड़ने आया। मेरा हाथ पकड़ कर के टैक्सी में बैठाया ,फिर बोला  --"Don't forget your stick." टैक्सी स्टार्ट होने तक मैं उसको देखती रही । काश !कुछ समय और उसके साथ बिता पाती।

पोती के घर पहुंचने से पहले ही आकाश  से बातें करती इमारतें दिखाई देने लगी।  मैंने मजाक में कहा-" हमारे देश में तो एक ही ऊंची मीनार है , इतनी सारी कुतुबमीनार यहाँ कहां से आ गईं?  

बेटे ने भी हंसते हुए जवाब दिया --" मां ,यहाँ की कुतुब मीनार अकेली नहीं !अपने पूरे कुनबे के साथ है। एक 70  मंजिली मीनार में तो आपकी पोती भी रहती है।" 

शिकागो झील के पास ही एक गगन चुम्बी इमारत के सामने हमारी टॅक्सी रुकी। जैसे-जैसे मिशीगन लेक के पास आते गए इमारतों का आकार बड़ा होता गया। टैक्सी से उतर कर लगा उस इमारत के सामने तो हम चींटियों के समान हैं। चमचमाती 40 वीं  मंजिल पर हम आए। 

एक नई ऊर्जा के साथ घर में घुसी । कभी सोचा न था कि पोती के घर आऊँगी। वह भी शिकागो जैसी जगह पर । पर उसका प्यार खींच लाया। उसने पिछले वर्ष मुझे परनानी  बनाकर मेरी झोली में अनगिनत खुशियाँ डाल दीं। और संयोग देखो! मेरे और मेरी पड़पोती का जन्मदिन  8मार्च हीहै।जब भी मैंने कहा -बेटा इतनी दूर आने की --इतना लंबा सफर करने की हिम्मत नहीं होती। तो चिढ़ जाती -अम्मा आपको क्या हुआ है ?ठीक ठाक तो हो।बच्चों का इतना स्नेह !अभिभूत हो उठती हूँ। सबसे मिलकर मैंने पूरे घर में चहलकदमी शुरू कर दी। जिज्ञासा ने पंख फैलाने शुरू कर दिये।  शीशे की दीवारों से नीचे झाँककर  देखा --रंग बिरंगे घर एक कतार मेँ बड़े छोटे और मनमोहक बौने से लग रहे थे। कारें चुहिया की तरह फुदकती नजर  आ रही थीं। उनके पीछे ऊंची इमारतों के कतारे। बड़ा भव्य दृश्य !आराम कुर्सी खींचकर बैठ गई।  उसे देखते हुए चाय की चुसकियों सहित थकान मिटाने लगी। 


   पोती ने बड़े शौक व मेहनत से मेरा मन पसंद सब्जियाँ बनाईं । खाने बैठी तो बोली-”अम्मा अभी गरम गरम रोटी बनाती हूँ।” 


“न बेटा !चावल ही खा लूँगी। रोटी बनाएगी -गंदगी होगी,चार बर्तन ज्यादा होएंगे ,फिर उन्हें धोएगी!बड़ा झमेला है!”

मैं तो अपना राग ही अलापती  रही---- उसने घी की सौंधी -सौंधी खुशबू भरी रोटी  मेरी थाली मेँ भी रख दी। 

“ऐन!तेरा गैस चूल्हा तो बंद है। रोटी कैसे बनी!"

"अम्मा यह सब रोटी मेटिकरोटी  रोबो का कमाल है। उसे पानी, आटा और घी दे दो । अपने आप आटा गीला करके फुल्ली रोटी बना देगा।"

मैंने भरपेट खाया तो बस आँखें बोझिल होने लगीं।  कल रात  जागने की इच्छा होते हुए भी अपने को जगा कर नहीं रख पाई।  अपने देश का चुनावी धमाका देखना था। मन मार कर सो गई लेकिन लगता है कि रात भर मुझे चुनावी  दुनिया के सपने आते रहे।