रविवार, 28 अप्रैल 2013

प्रतिभाशाली भारतीय विद्यार्थी

एम. आई. टी.( M.I.T, U.S.A) में जाने  वाला 

 भारतीय कैम्ब्रिज छात्र 

ऋषभ भार्गव 




समय-समय पर मेधावी छात्रों के बारे में सुनने को मिलता है तो विश्वास –अविश्वास के हिंडोले में झूलते रहते हैं ।कहा जाता है  स्वामी विवेकानंद को  कुछ ही दिनों में एनसाइक्लोपीडिया के दसों भाग याद हो गए थे । स्वतंत्र इंडोनीशिया राष्ट्र के प्रथम राष्ट्रपति सुकारनो की तो याददाश्त ऐसी थी कि एक बार जो पढ़ लिया या देख लिया वह सदैव के लिए मसितिष्क पटल पर अंकित हो गया। 

कई वर्षों पहले जब बुद्धि के धनी एक  ऐसे ही  बच्चे के संपर्क में आई तो पढ़ी –पढ़ाई ,सुनी सुनाई बातों पर विश्वास  होने  लगा । यह बालक करीब ढाई –तीन वर्ष  का होगा, उसकी माँ खाना खिलाते समय इंगलिश व हिन्दी बालगीतों के ट्रान्जिस्टर मेँ कैसट्स लगा दिया करती थी जिनको वह बड़े  ध्यान से सुनता और पेट भरकर बना किसी बाल नखरों के खा भी  लेता । नतीजा यह हुआ कि उसे वे सब याद हो गई और जब नर्सरी में गया तो जो बच्चों को सिखाया जाने लगा वह उसे पहले से ही याद था । माँबाप दोनों ही सुशिक्षित ,उस पर भी डाक्टर !

डॉ राजन -डॉ रंजना
कानपुर(भारत)

शायद इसी कारण बाल मनोविज्ञान समझते हुये उन्होंने उसे आगे बढ़ाने के प्रयोजन से  उच्च स्तर  की बाल पुस्तकें घर में पढ़ाना  ठीक समझा ताकि बच्चा उकताए भी नहीं और ज्ञान के  अंकुर पनपते जाएँ  ।
घर में सभी को पढ़ने का शौक !इसके लिए भी नित नयी बाल कहानियों की पुस्तकें व सी. डी .आतीं । रिश्तों की महक से भरपूर संयुक्त परिवार में दादी –बाबा की छ्त्र छाया में वह बालक  हर जन्म दिन मनाता  ,
प्रथम जन्मदिन की केक कट रही है
दादी-बाबा के साथ!


 अनुशासन की डोर में बंधा खूब सबसे कहानियाँ सुनता, सी. डी. की सहायता से दूरदर्शन पर कोमिक्स देखता ।धीरे -धीरे ज्ञान का घड़ा भरने लगा । 

कहते हैं -पूत के पाँव पालने मेँ ही दिखाई दे जाते हैं यह बात इसके मामले में सोलह आने सच है ।

वह  तीव्र स्मरण शक्ति का बादशाह है , बचपन में ही पता लग गया था । घटना उस समय की है जब वह मुश्किल से 2-3 वर्ष का रहा होगा ,उसकी माँ कहानी सुनाने को एक पन्ना खोलकर बैठी । किताब का चित्र देखते ही उसने वह कहानी पढ़नी शुरू कर दी जो उस पेज पर लिखी थी ,माँ ने अवाक होकर दूसरा पन्ना पलटा –उसने पन्ने के अनुसार फिर बोलना शुरू कर दिया और आखिरी पंक्ति के अनुसार रूक गया  उस समय वह पढ़ना नहीं जानता था ,केवल अक्षर पहचानता था । पर कहानी सुनने से उसे वह याद हो गई थी और पता लग जाता था कि किस पेज पर क्या लिखा है 

जब भी उससे पूछो –क्या चाहिए ?केवल एक माँग—किताब !उसके पापा किताबों की दुकानों पर ले जाते ,उसके लिए किताब का चुनाव करते । 
एक बार वह अपने मम्मी –पापा के साथ किताबों की दुकान पर गया । भाग्य से मैं भी साथ थी । कोई काफी पीने बैठ गया कोई किताबों पर सरसरी निगाह ही डाल रहा था । यह बच्चा एक स्टूल पर जम कर बैठ गया और बाएँ –दायें –ऊपर के रैक से किताबें निकालता ,जल्दी –जल्दी किताब के पेज पलटकर पढ़ता और रख देता क्योंकि उसकी पढ़ने की स्पीड बहुत तेज थी । पढ़ने में इतना तल्लीन था कि अपने चारों ओर का कुछ पता ही न था । दुकानदार टकटकी लगाए इसी की ओर देख रहा था । जब उससे न रहा गया तो बोला –भैया यह दुकान है ,लाइब्रेरी नहीं

वैसे भी उसकी बातें चौंकाने वाली ही होती थीं । ऋषभ करीब रहा  होगा पाँच वर्ष का ,उसके पापा दो वर्ष को लंदन गए । साथ में वह और उसकी  मम्मी भी गईं ।उसका स्कूल में दाखिला हो गया ,नया वातावरण बहुत रास आया।  
प्यारा बचपन

कारणवश मम्मी को भारत जल्दी लौटना  पड़ा।  ऋषभ को जब मालूम हुआ कि मम्मी के साथ उसका भी टिकट ले लिया गया है ,वह अनमना हो उठा और बोला --किससे  पूछकर मेरा टिकट लिया गया ,पापा के साथ भी मैं जा सकता था ।कुछ पलों को  माँ -बाप भौचक्के से उसकी ओर देखते रहे । 

क्रिकेट ,टेबिल टेनिस का खिलाड़ी होते हुये भी यह बच्चा साधारण बच्चों से कुछ अलग था । शोर –गुल ,धूम –धड़ाका,शादियों की भीड़भाड़ से  दूर रहना ही पसंद  करता था । शांत ,मितभाषी व किताब मंडली से घिरा बच्चे का  बुद्धि बीज धीरे –धीरे पनपता हुआ प्रतिभा पुंज में परिवर्तित हो गया ।

इस प्रतिभा को जानने की जिज्ञासा जरूर होगी । यह और कोई नहीं  बल्कि मेरा नाती और ऋचा का अग्रज प्यारा भाई ऋषभ है ।
भाई-बहन
अगर चंचल मन और शैतान बचपन की थाह लेनी हो तो इन  भाई -बहन की तकरार देखते ही बनती है  ।

ऋषभ सफलता की सीढ़ियाँ लगातार पार करता चला गया और कर रहा है । उसकी प्रारम्भिक शिक्षा कानपुर (भारत )में ही हुई और सेठ आनंद राम जयपुरिया का छात्र रहा । हाई स्कूल और 12वीं कक्षा में सिटी टोंपर बनने का गौरव प्राप्त हुआ । 2011 में तो उसने आई .आई .टी. कानपुर में 24वीं रैंक लाकर कमाल कर दिया ।
 उसके रिजल्ट के समय दूसरे उत्तेजित होते हैं ,उत्साह से भर जाते हैं पर वह अपनी उपलब्धियों को बहुत सहजता से लेता है जैसे कुछ विशेष हुआ ही नहीं या उसका अंदाज उसको पहले से ही लग जाता होगा ।
ऋषभ का आई .आई. टी.जाने का पूर्ण निश्चय था पर भाग्य तो उसे कहीं और ले जाना चाहता था ।

उसके मामा जी लंदन निवासी हैं । 

रवि भार्गव
उनकी बेटी का कैम्ब्रिज इंजीनियरिंग में चयन हो चुका था । उन्होंने सुझाव दिया -क्यों न ऋषभ के लिए वहाँ कोशिश की जाए । बस पूरा परिवार चाहत के पंखों पर सवार हो इस दिशा की ओर मुड़ गया । 
जहां चाह होती है वहाँ राहें अपने आप निकल आती हैं । ऋषभ की मेहनत रंग लाई । लिखित परीक्षा और साक्षात्कार में सफलता प्राप्त कर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ( U.K. ) गिरटन कालेज में इंजीनियरिंग में दाखिला पा ही लिया 

भारत में हर वर्ष विभिन्न स्ट्रीम –इंजीनियरिंग ,साइंस ,और हयूमनिटीज़ से कैम्ब्रिज में केवल तीन छात्रों को प्रवेश पाने का अवसर मिलता है । ऋषभ 2011 में उनमें से एक था और तकदीर से उस को  कैम्ब्रिज कॉमन वेल्थ ट्रस्ट द्वारा डॉ मनमोहन सिंह स्कालरशिप भी मिल गई ।

कैम्ब्रिज में ऋषभ अपने मित्रों के साथ 

आजकल वह इंजीनियरिंग के दूसरे वर्ष की पढ़ाई में व्यस्त है । कैम्ब्रिज में पढ़ाई का घमासान युद्ध तो है ही ।एक से एक टॉपर अपना  भविष्य बनाने  में लगे हैं  पर वहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भी भरमार है । जिसने कभी गाना न गाया हो वह गाना सीख जाता है जिसने कभी अभिनय न किया हो वह नाटक में भाग लेने लगता है  ! 

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जिसने कभी डांस न किया हो उसके पैर  सुर की ताल पर थिरकने लगते हैं ।


 एक बार किसी ने पूछा -यहाँ पढ़ना भी बहुत पड़ता है और कार्यक्रमों में भाग भी लेना पड़ता है । दोनों काम कैसे करोगे ? एक ही कर सकते हो ।
 उत्तर मिला - हम दोनों करेंगे । 
-कैसे ?
-नींद कम कर देंगे । 
 तो ---यह है राज वहाँ के योग्य अपने को बनाने का । ऋषभ ने इस चुनौती को भी स्वीकार किया ।अध्ययन के साथ -साथ रचनात्मक ,व्यवहारिक व  सांस्कृतिक गतिविधितों में कोई कमी न आने दी । 

वहां की कुछ झलकियाँ ---


कैम्ब्रिज छात्रों के साथ प्रिंस चार्ल्स

वह मारा  छक्का !

ज्ञान व स्मृति का सागर 

जीवन के रंगों में है एक प्यार का रंग--
होली है !


मार्च 28 (2013 )को मुझे उसके M.I.T. यूनिवर्सिटी(  Massachusetts Institute Of Technology)   में जाने की सूचना मिली ।

M.I.T.University
U.S.A.

खुशी और आश्चर्य की रिमझिम बरसात होने लगी । खुशी इसलिए --- खुशियों के फूल  आँगन में वसंत की तरह छा गए  और आश्चर्य इसलिए कि ऋषभ अकेला नहीं जा रहा है बल्कि उसकी बहन निहारिका का भी चयन  M.I.T.के लिए हो गया है । इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष की पढ़ाई वे वहाँ  करेंगे  । 


निहारिका

कैसा संयोग है !एकही  परिवार से दो इंजीनियर कैम्ब्रिज छात्र और अब M.I.T. में भी साथ साथ । 
यह  (U.S.A.)  में है । कैम्ब्रिज और एम्. आई .टी .  के बीच एक वर्ष के लिए कुछ विद्यार्थियों की अदला बदली होती है । इस वर्ष करीब 85 ने कोशिश की थी और 15 चुने गए ।शिक्षा और रिसर्च की दृष्टि से यह विश्व की सर्वोत्तम यूनिवर्सिटी है जहाँ बुद्धि  को और  वही ज्यादा तराशने व प्रतिभा को विकसित करने  का अवसर मिलता है । 
ऋषभ भार्गव व निहारिका भार्गव जैसे छात्रों ने सिद्ध कर दिया कि  भारत माँ की संतान भी किसी से कम नहीं !जहाँ भी जायेगी  खुद चमकेंगी और रिश्तों की मधुरता ,पारिवारिक एकता व संस्कारों के उजास में अपने देश  का नाम रोशन करेगी । 


भारत माँ की संतान

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