शनिवार, 7 सितंबर 2019

कनाडा डायरी कड़ी ।। ३३।।


कनाडा डायरी के पन्ने
प्रकाशित 
अंतर्जाल पत्रिका साहित्य कुंज 

न्यूयार्क शहर के दर्शनीय स्थल

भाग-2
 25 7 2003
      
विश्व प्रसिद्ध मॅनहट्टन मॉल(5th Avenue)
      यह मॉल हमें जरूर देखना था । इसके अलावा कोई भी विदेश यात्रा पर जाता है उसे स्वादिष्ट भोजन करने और ख़रीदारी का मोह तो सताता ही है।इसलिए हम एम्पायर स्टेट बिल्डिंग से खिसकने लगे। थोड़ी दूर चलकर हमने 5थ एवेन्यू में प्रवेश किया।यह टाइम्स स्कायर(Busines improvement District) का एक हिस्सा है । यहाँ एक समय टाइम्स अखबार का ऑफिस था,उसी के नाम पर इस स्थल का नामकरण हुआ। विश्व का जाना -माना मॉल मॅनहट्टन (Manhattan)मॉल यही पर है। मॉल में दुकानों का आकार सच में दैत्य समान था। खिलौनों के ताजमहल सी दुकान पर तो मनुष्य के आकार के स्टफ्ड जानवर ,बच्चों के आकार की स्पोर्ट्स कार थीं। दाम भी बड़े बड़े थे पर शान गज़ब की थी। पास में ही विस्तृत मैनसीज स्टोर में रखे बैग ,पर्स की चमक अपनी ओर खींच रही थी।लैगोशॉप पर भी दृष्टि पड़ी। मानव आकार की बनी स्टेच्यू ऑफ लिबर्टीको विस्फारित नेत्रों से हम देखते रहे।
      शाकाहारी लोगों को मनपसंद भोजन विदेशी धरा पर कठिनाई से ही मिलता है। मुझे और मेरे श्रीमान जी को सोचने में आधा घंटा लग गया कि क्या खाएं क्या न खाएं?मांसाहारी तो जल्दी से चिकिन और वाइन लेकर बैठ गए। जैसे –तैसे हमने शाकाहारी पीत्ज़ा,कोककोला,पोपकोर्न लिए। उन्हें गटक तो गए पर तृप्ति न हुई। हाँ!टॉफियाँ –पेस्ट्री और आइसक्रीम की भरमार थी। जहां मौका मिलता खाने से उन्हें बाज न आते।
      ब्रॉडवे टिकिट सेंटर
      5थ एवेन्यू के पास में ब्रॉडवे टिकिट सेंटर(broadway ticket centre) है। वहाँ पर मामा मिया (Mama Mia)द लॉइन किंग , केबरेट(cabaret) शो के टिकट मिल रहे थे पर खरीदने वालों की बड़ी सी  लाइन थी। कोई मामा मिया देखना चाहता था क्योंकि उसका संगीत –गाने लाजबाव हैं तो कोई द लॉइन किंग में दिलचस्पी दिखा रहा था क्योंकि उसमें इंसान मास्क लगाकर खुद अफ्रीकन जानवर बन अपनी अद्भुत मुद्राओं से हलचल पैदा कर देते हैं। मन तो कर रहा था सब ही देख लें पर समय और पैसे की सीमा थी। ह
       एक बार तो हम पति -पत्नी ने थिएटर देखने का इरादा ही छोड़ दिया क्योंकि एक व्यक्ति का टिकट करीब  44अमेरिकन डॉलर था। परंतु उस दिन 50%कम में टिकिट उपलब्ध था सो हमने हिम्मत जुटा ली। यह भी सोचा –जब ओखल में सिर दिया तो डरने से क्या लाभ!ज्यादा से ज्यादा ख़रीदारी नहीं करेंगे। आखिर में 26 जुलाई के कैब्रेट शो के टिकिट खरीद लिए। यह शो राउंड एबाऊट थियेटर कंपनी (Round About Theatre Company)की तरफ से स्टूडिओ 54 में प्रस्तुत किया गया था। 
      थियेटर शो के टिकिट तो हमने सुबह 12 बजे तक खरीद लिए थे। मगर टिकट 26 तारीख का था इसलिए कल तो यहाँ आना ही था।
      
मिड टाउन मॅनहट्टन एयरपोर्ट
      बिना समय खराब किए हमारी बस रॉक फैलर सैंटर ,ग्रीनविच विलेज होती हुई मिड टाउन मॅनहट्टन एयरपोर्ट (south street sea port)की ओर चल दी। मॅनहट्टन अपने आप में एक छोटा सा टाउन है। पर देखने लायक है। इसमें करीब 100 दुकाने हैं। कैफे –रेस्टोरेन्ट की तो भरमार है। अपनी पोकिट के हिसाब से दूसरों के लिए आकर्षक उपहार मिल ही जाता है। खाओ-पीओ –मौज उड़ाओ उसी में कहो तो घंटों गुजर जाएँ।
     एयर स्पेस लिविंग म्यूजियम को देखने का समय न मिल सका। मेरीटाइम म्यूजियम(मैरिटाइम म्यूज़ियम ) में  युद्ध के समय क्षतिग्रस्त जहाजों को उचित देखरेख में रख छोड़ा है। बड़े -बड़े जहाज के मॉडल व उनी आर्टिस्ट की पेंटिंग्स को देख मैं तो अचरज में पड़ गई। यहाँ के निवासियों को अपने अतीत से प्यार है और भविष्य सुनहरा बनाने के लिए राष्ट्रीय भावना में पगे भागे चले जा रहे हैं।
      समुद्र में खड़े माल धोने वाले पोत ,भ्रमण हेतु जहाज़ी बेड़े,आनंददायक समूत्री यात्रा वाले यान। छोटे-बड़े ,सुंदर –विलराल सभी मिलकर आश्चर्यजनक दृश्य उपस्थित कर रहे थे। कुछ् सुसज्जित यात्रों में रात्रि भोजन का प्रबंध था और उन क्षणो को मन मोहक बनाने के लिए विशेष शराब की व्यवस्था थी।

रॉक फैलरसैंटर एवेन्यू
        रॉक फैलरसैंटर एवेन्यू भी बहुत प्रसिद्ध है। ख़रीदारी का तो यहाँ अंत ही नहीं।  चहलकदमी करते हुए नाईक टाउन और वॉल्ट डिजनी में हमने कदम रखे। खिलौनों के साम्राज्य में प्रवेश करते ही हमारी तो दुनिया ही बदल गई।  खिलौनों का तो यहाँ ताजमहल है। जानवरों के पूर्ण आकार के बराबर स्टफ जानवर हैं। बच्चों बराबर की स्पोर्ट्स कार हैं। यहाँ एक फोर्मर मूवी पैलेस है जिसमें करीब 6000 सीटस हैं। जिसका अपना महत्व है।
      खिलौनों की दुनिया से निकल हम ग्रीन विच विलेज पहुंचे। यह चित्रकला प्रेमियों की बस्ती है। सोहो आर्ट गैलेरी तो अद्भुत आर्ट का खजाना है। पर उसे अंदर से नहीं देख पाए। इसका बहुत अफसोस रहा । बाहर से ही गैलरी के अनदेखे विश्व प्रसिद्ध चित्रांकन को शीश झुकाया। कई कलाकारों के निवासस्थान भी वहीं थे जो पर्यटकों के देखने के लिए खुले थे। पर हमारा ऐसा भाग्य कहाँ !कुछ युवकों की अधाधुंध ख़रीदारी हमें ले डूबी। असल में अधिकांश पर्यटक ख़रीदारी में ही दिलचस्पी ले रहे थे। एक सज्जन और उनकी पत्नी  भारत से केवल एक बैग लेकर आए और वहाँ दो बड़ी -बड़ी अटैचियाँ खरीदीं  जिन्हें भरना शुरू कर दिया।लगता था मानो बेटी के लिए पूरा दहेज तैयार कर रहे हों।इस मनोवृति के कारण गाइड को इतना समय न मिला कि वह आर्ट गैलरी दिखा  सके। हम जैसे कलाप्रेमी तो मन मारकर रह गए। मशहूर लैंडमार्क देखने ही तो हम  मीलों उड़कर आए थे और ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी के लिए गाइड से प्रश्न पर प्रश्न करते रहते थे। ख़रीदारी और सामान ढोने मेँ कोई रुचि न थी ।वैसे  चीन का बना समान वहाँ सस्ता था,पर चायना छाप तो सब जगह मिलता है। 
      उस विलेज में मनमौजी चित्रकार जगह- जगह छोटी -छोटी बैंच या स्टूल लिए बैठे थे । उनके एक ओर पेपर पेंटिंग्स लटक रही थी दूसरी ओर जमीन पर रंग मुसकाते हुये बैठे थे। लगता था जहां ये बिखर जाएंगे वहीं अपनी मुस्कान फैला देंगे। हुआ भी यही! चित्रकार 20 मिनट में ही किसी का चित्र बना देता तो लगता आकृति अभी बोल उठेगी। पेड़-पौधे बनाकर रंग भरता तो प्रकृति विहंसने लगती। अपनी तूलिका से बेजान कागज में जान डालकर कलाकारों ने हमें चकित कर दिया। उनको अपनी स्मृतियों में बसाकर चल दिए ।
क्रमश 

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