कनाडा डायरी के पन्ने
प्रकाशित
अंतरजाल पत्रिका साहित्य कुञ्ज
म्यूजिक सिस्टम
सुधा भार्गव
12 जुलाई 2003
मेरे पास भारत में फ्लिप्स का पोर्टेबल म्यूजिक
सिस्टम (Portable music system)था। करीब
15 साल काम करते-करते वह थक चुका था और मैं---उसका इलाज कराते कराते थक चुकी थी।
अंत में मैंने उसे अपने घर से हटा ही दिया और सोचा-कनाडा तो जा ही रही हूँ वही से
नया,सुंदर सा म्यूजिक सिस्टम खरीद लूँगी।
एक दिन ओटावा में हम वॉल मार्ट जा रहे थे। मैंने
म्यूजिक सिस्टम के बारे में बेटे से बात की। वहाँ जे.वी.सी. सोनी,पेनासोनिक,सैन्यो के नए –नए मॉडल रखे थे। डिस्काउंट
के कारण जे.बी.सी सबसे सस्ता पड़ रहा था। सस्ते के लालच में मैं उसे खरीदने को तैयार
तो हो गई पर अंदर से मन बुझा-बुझा सा था।जे.वी.सी.अंदर से कैसा है इसका तो मुझे
अंदाज नहीं पर ऊपर से एकदम काला था ,एकदम भूत की तरह--- और
मुझे काले रंग से महाचिढ़। एक बार हाँ करके अपनी बात से पलटना भी नहीं चाहा। माँ
होने की नाते थोड़ा तो भारी-भरकम होना था।
करूँ तो क्या करूँ!दुविधा में अच्छी जान फंसी।
मेरी मन की स्थिति को बेटा भाँप गया। बोला –"माँ ,खरीद लेते हैं। क्योंकि हो सकता है कल
इस पर इतनी छूट न मिले । आप घर पर चलकर अच्छे से सोच लेना । कहोगी तो बदलकर ले
जाएंगे।"
मैं राजी हो गई। पर खरीदने के बाद वह उल्लास न था
जिस उल्लास के साथ दुकान पर गई थी।
असल मेरे दिमाग में सेन्यो का नील सफेद
सुन्दर मॉडल घूम रहा था। मैं तो उसकी सूरत पर फिदा थी ,सीरत का पता न था। घर पर
आए। न म्यूजिक सिस्टम का डिब्बा खोला न उसे बजाया। बस रख दिया उसे अलमारी के ऊपर, मानो उसे खरीदा ही हो बदलने के लिए।
रात में कंप्यूटर पर मैं कोई काम कर रही थी कि चाँद
धीरे से आकर बोला-"माँ--।" "मैं चौंक पड़ी। प्रश्न भरी
निगाहों से उसकी तरफ देखा।
प्यार भरी मुस्कान बिखेरता बोला-"माँ,इस समय
आसपास कोई नहीं –मुझे चुपचाप बता दो ,आपको म्यूजिक सिस्टम पसंद है या नहीं।"
मैंने बड़ी मुश्किल से साहस जुटाया और कहा-"नहीं।"
"मगर क्यों माँ?"
"पहली तो बात,वह कालू है। रात के अंधेरे में
मुझे दिखाई ही नहीं देगा। वैसे ही मुझे कम
दिखाई देता है।”
“ओह माँ क्या बात करती हो! आँख में मोतिया बिन्द
उतर आया है। आपरेशन से सब ठीक हो जाएगा।”
"अरे सुन तो---। दूसरे उसका आकार बड़ा बेढब और बड़ा है।
हर जगह उसको लेकर बैठा नहीं जा सकता।" एक सांस में कह कर हल्की हो गई।
"तब सोनी ले ले।"
उसकी मुस्कान और गहरी हो गई।
"वह तो बड़ा महंगा है।"
"माँ। ऐसी बात क्यों करती हो?क्या मैं आपको दिला नहीं सकता?याद है आपको---जब मैं
छोटा था मुझे संगीत सुनने का बड़ा शौक था। मैं म्यूजिक सिस्टम चाहता था। आप मुझे
अकेली लेकर बाजार गईं और न जाने कितनी दुकानें देखकर मेरे लिए वीडीओ कोन का
म्यूजिक सिस्टम पसंद किया। पापा की इच्छा ले विरुद्ध मुझे वह खरीदवाया।"
"हाँ तब मैं कुछ रुपया तुम लोगों के लिए बचाकर
रखती थी। उस समय मेरे पास पैसा था।"
"अब मेरे पास है। मैं आपकी इच्छा का
खरीदवाऊंगा।"
"मुझे तो सेन्यो (sanyo)जापानी मॉडल पसंद है। मन की बात आखिर जबान पर आ ही गई। उसे लेने बच्ची की
तरह मचल पड़ी।
"यह कंपनी भी बहुत अच्छी है। कल ही चलेंगे
माँ!"
मैं पुलकित हो उठी और उसने मेरे चेहरे पर चमकते
सितारों की भाषा पढ़ ली।
शायद उसे इन्हीं सितारों का इंतजार था।
वह तो अपने कमरे मेँ चला गया पर मैं वास्तव
मेँ एक छोटी सी बच्ची हो गई जो अपनी
मनचाही गुड़िया पाने की ललक में उछल रही थी। है तो वह मेरा बेटा ही पर कभी -कभी
लगता है उसके साथ पितातुल्य छ्त्रछाया में रह रही हूँ।
किसी ने ठीक ही कहा है-बच्चे जब छोटे होते हैं तो
इन्हें माँ-बाप की छत्रछाया चाहिए ,पर जब वे ही माँ
बाप बुढ़ापे की चौखट पर पहुँच जाते हैं तो उन्हें बच्चों के मजबूत कंधों का सहारा
चाहिए।
क्रमशः
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें