7th जून
कड़ी 5
आर्ट इंस्टिट्यूट ऑफ़ शिकागो
जहां भी जाती हूं आर्ट इंस्टिट्यूट ,आर्ट गैलरी या आर्ट प्रदर्शनी ज़रूर देखती हूँ। मालूम हुआ कि यहाँ भी अमेरिका का काफी पुराना और बड़ा कला संस्थान है तो मन मचल उठा। यह मिशिगन ग्रांट पार्क में ही है। सवा साल की पोती को प्रेंबुलेटर में बैठाकर अंदर घुसे कलात्मक संग्रह को देख दंग रह गए। और मान गए कि यह दुनिया के महान कला संग्रहालयों में से एक है। जिसमें विश्वभर की रचनात्मक कृतियाँ हैं।
वैसे भी मेरी बहुत समय से शिकागो जाने की इच्छा था। मुझे वह जगह देखनी थी जहां विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को अपना पहला भाषण केवल दो मिनट दिया था। लेकिन भाषण की शुरुआत ऐसे जादुई शब्दों में की कि वहां बैठे लोग ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया मंत्रमुग्ध की तरह उसे सुनती रही। ।
जैसे ही उन्होंने अपना भाषण शुरू किया
' अमेरिका के भाइयों -बहनों ---इन तीन शब्दों के बाद 2 मिनट तक अनगिनत हाथों की तालियां गूँजती रहीं। ।
उनके भाषण को सुनने के लिए 6000 से अधिक लोग स्थाई स्मारक कला महल में इकट्ठे हुए थे जिसे आजकल शिकागो का कला संस्थान कहा जाता है। इसके बाद तो उन्होंने अनेकानेक वक्तव्य द्वारा भारत की आध्यात्मिक विरासत का प्रचार किया।
यहाँ प्रसिद्ध चित्रकारों की पेंटिंग का भंडार है। अद्भुत तस्वीरों,दुर्लभ मूर्तियों का आगार है। तमिल नाडु की बुद्ध मूर्ति को मेडिटेशन की मुद्रा में बैठे देख नजर ठहर गई और अपने देश की याद आ गई। इंप्रेशनिस्ट और पोस्ट इंप्रेशनिस्ट चित्रों की तो मैं प्रशंसा किए बिना न रही। अंदर से लहर आई कि काश मेरे हाथ में ब्रुश और सामने कैनवास होता! उनकी तरह रंग बिखेर पाती!
वहाँ की कुछ झलकियाँ

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