सोमवार, 26 जून 2017

कनाडा डायरी की 19वीं कड़ी


डायरी के पन्ने 
कनेडियन माली 
सुधा भार्गव

           साहित्य कुंज में प्रकाशित 

16 5 2003
कनेडियन माली
    
    हम सबको भगवान ने बनाया है । वही हमारा पालनहारा है। पर पेड़-पौधों का भगवान माली है। वही बीज बोकर उन्हें उगाता है। उसी की देखरेख में वे बड़े होकर फल फूलों से लदे धरती माँ की शोभा बढ़ाते हैं। 
     कनाडा में ऐसे माली घर-घर बसते हैं, जिन्हें प्रकृति से अगाध प्यार है। असल में कनाडा वासियों को बागबानी का बड़ा शौक है। महिलाएं भी इस काम में पीछे नहीं रहती। कामकाजी महिलाएं रोज शाम को अपने बगीचे की सुंदरता निहारते मिलेंगी। जमीन खोदने,घास हटाने का काम ,बीज बोने ,पौधों में पानी देने आदि से जरा भी नहीं कतराती। मुझे लगता है यह शौक उनके खून में है। बच्चे तक माँ का हाथ बंटाते हैं । बचपन से ही उनके हाथ में छोटी-छोटी -खुरपी, बाल्टी थमा देते हैं जो खिलौनों से कम नहीं दीखतीं। खेल- खेल में ही वे फूल-पौधों के बारे में बहुत कुछ जान जाते हैं और उनसे उन्हें लगाव हो जाता है।
    बच्चा छोटा हो या बड़ा ,एक हो या दो,काम महिलाओं के कभी स्थगित नहीं होते। वे बहुत मेहनती और ऊर्जावान होती हैं। गोदी का बच्चा हो तो उसे प्रेंबुलेटर में लेटा खुरपी चलाने लगती हैं। बच्चा घुटनु चलता हो तो कंगारू की तरह आगे या पीछे एक थैली बांध लेती है और इस बेबी केरियर में बच्चे को लिए अपने काम निबटाती हैं। उसमें बच्चा आराम से बैठा  रहता है और हिलते- डुलते सो भी जाता है। सबसे बड़ी बात बच्चे को इसका आभास रहता है कि वह अपनी माँ के साथ है।
    छुट्टी के दिन तो पति-पत्नी  दोनों ही अपनी छोटी से बगीची को सजने सँवारने में लग जाते हैं। बगीचा देखने लायक होता है। जगह जगह रोशनी जगमगाती मिलेगी। लाल,पीले ,नीले फूलों के बीच मिट्टी- काँच के बने मेंढक- मछली -बतख दिखाई देंगे जो सचमुच के प्रतीत होते हैं।  प्राकृतिक दृश्य उपस्थित करने के लिए उनके सामने पानी से भरा बड़ा सा तसला रख दिया जाता है या छोटा सा कुंड बना देंगे। इनकी खूबसूरती देख मेरी निगाहें तो रह रह कर उनमें ही अटक जाती।
    अपने बाग के फूलों को कभी मैंने उन्हें तोड़ते नहीं देखा। घर में फूल सजाने के लिए वे बाजार से खरीदकर लाते हैं। अपने घर-आँगन की फुलवारी को नष्ट करने की तो कल्पना भी नहीं कर सकते।  यदि हम भी इनकी तरह फूल-पौधों को  प्यार करने लगें तो पेड़ कटवाकर धरती माँ को कष्ट देने की बात किसी के दिमाग में ही न आए।
*
    यहाँ रहते रहते मेरा बेटा भी अच्छा खासा माली बन गया है। बच्चे का  घर में आगमन होने से कम कुछ बढ़ गया है इस कारण चाँद को बगीचा साफ करने में देरी हो गई। बगीचा साफ करना भी बहुत जरूरी था। शीत ऋतु में यह बगीचा बर्फ से ढका श्वेत श्वेत नजर आने लगा । जगह जगह हिम के टीले बन गए। सूर्यताप से जैसे ही बर्फ ने पिघलना शुरू किया उसके नीचे दबी घास और पत्ते भीग  गए। जल्दी ही सड़कर बदबू फैलाने लगे। इससे पड़ोसियों को एतराज भी हो सकता था।
    अवसर पाते ही चाँद ने बागवानी करने के लिए कपड़े बदले। टोपी पहनकर दस्ताने चढ़ाए और उतार पड़ा पेड़-पौधों के जंगल में। लंबी लंबी कंटीली झाड़ियाँ,सूखे-गीले पत्तों का ढेर ,ढेर सी उगी जंगली घास को देख मैं तो सकते में आ गई-चाँद सा बेटा मेरा चाँद अकेले कैसे करेगा?तभी उसे गैराज से इलेक्ट्रिक हेगर ,लॉनमोवर निकालते देखा। शीतल  उसकी सहायता कर नहीं सकती थी। मैं और मेरे पति खड़े खड़े देखने लगे। पर ज्यादा देर उसको अकेले इन मशीनों से जूझते देख न सके। हम दोनों ने आँखों आँखों मे इशारा किया। अंदर जाकर पुराने कपड़े पहने,टोपी और दस्ताने पहनकर बाहर निकल आए। दरवाजे पर ही 2-3 जोड़ी चप्पलें पड़ी थी जिन्हें पहनकर घर के अंदर नहीं घुस सकते थे।   उनको पहना और बागबानी करने निकल पड़े। हमें खुरपी,फावड़े चलाने का ज्यादा अनुभव न था । तब भी बेटे की मदद करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थे।
    हम पूरे कनेडियन माली लग  रहे थे। चाँद हमें देखकर बड़ा खुश हुआ। इसलिए नहीं कि उसे मददगार मिल गए बल्कि इसलिए कि इस उम्र में भी उसके माँ-बाप में जवानी का जोश है । वह  बिजली के यंत्र की सहायता से घास-पत्तों  को रौंदता,कट कट काटता चल पड़ा। मैं कचरे को दूसरे  यंत्र की सहायता  से कोने में इखट्टा करने लगी।बाद में हमने मिलकर प्लास्टिक के बड़े बड़े बोरों में भर मुंह बंद कर दिया। रात में चाँद उन्हें उठाकर अपने  घर के सामने सड़क पर रख आया ताकि सुबह कचरे की गाड़ी आए तो बोरों को ले जाए।
    थोड़ा -बहुत काम धीरे- धीरे करके बगीचे  को इस लायक बना दिया कि उसमें बैठा जाए। यहाँ बड़ी सी मेज व दस कुरसियाँ पड़ी है। साथ ही इलेक्ट्रिक तंदूर भी एक कोने में रखा है। अब तो छोटी छोटी पार्टियां वहीं होने लगीं। सुबह –शाम की चाय भी वहीं पीते हैं।सुबह की ताजी हवा और गुनगुनी धूप के बीच उड़ती तितलियों को देखते देखते चाय की चुसकियाँ लेने का मजा कुछ और ही है।
क्रमश:




शनिवार, 24 जून 2017

2017 :लंदन डायरी -दूसरा पन्ना

लंदन डायरी
2017
21/6/2017
सूर्यदेव का रौद्र रूप
    मैं बैंगलोर से चली,बड़ी खुश। आह !लंदन जा रही हूँ। मिलने वालों ने भी मेरे भाग्य की सराहना की। यहाँ की जमीन पर पैर रखे तो तापमान 32 डिग्री। चेहरे पर हवाइयाँ उड़ चलीं। अफसोस कर बैठे बैंगलोर में शिमला जैसी टकराती  ठंडी हवाओं को छोड़ कहाँ आन फंसे! चार दिन बीत गए पर अभी तक मौसम का पारा उतरा नहीं है।
   



यहाँ घर वातानुकूल तो हैं ही नहीं। छत से पंखे भी लटके नजर न
हीं आते। हाँ,इक्के-दुक्के घरों में टेबिल फैन चलते जरूर दिखाई दे जाते हैं। वह भी हर कमरे में नहीं बल्कि घर में इकलौता। दिन में धूप में निकलना कठिन –कार ओवेन की तरह जलती है। जब तक वह ठंडी होती है तब तक गंतव्य स्थान पर पहुँच ही जाते हैं। उस दिन की ही बात ले लो जब हम  शेरेटन होटल  गए –इतना बड़ा होटल- - - पर भरी दोपहरी में कहीं  कोई  पंखा नहीं चल रहा था। एयर कंडीशन की तो बात करना ही बेकार है। न जाने यहाँ के लोग कैसे रहते हैं!
    हमारे बाहर के काम गर्मी से रुक जाते हैं। सोच में पड़ जाते हैं –घर से बाहर निकलने पर चिलचिलाती धूप में कहीं खोपड़ी गरम न हो जाए ,पानी ले जाना पड़ेगा आदि-आदि। पर यहाँ  के निवासियों को कोई फर्क नहीं पड़ता। कहते हैं –हम तो धूप के लिए तरसते हैं। यही तो समय है जब ठंड की  ठिठुरन से छुटकारा मिलता है और शरीर पर चढ़ी कपड़ों की परतें गायब होती हैं।

    कुछ भी हो हमारा दिमाग तो इतनी गर्मी में काम करता नहीं। लोग कहते हैं 25 साल में इतनी गर्मी पड़ रही है। अगले हफ्ते वर्षा रानी जरूर आएगी। इसी भरोसे समय कट रहा है --- शायद रिमझिम- रिमझिम बारिश शुरू हो जाय और सूर्य महाराज उसके सामने हथियार डाल दें।
क्रमश:

शुक्रवार, 23 जून 2017

2017 लंदन डायरी -पहला पन्ना

लंदन डायरी 
2017
पहला पन्ना-18 जून 2017
नए मित्र का जन्मदिवस  
    कौन कहता है विदेश में बसे भारतीय  अपनी जड़ों से कट जाते हैं! भावना शून्य हो रिश्तों की अहमियत भूल जाते हैं! माँ-बाप अपने को  उपेक्षित महसूस करते हैं! मेरा तो अनुभव कुछ दूसरा ही रहा।
    मैं 18 जून को भारत से लंदन दोपहर दो बजे के करीब घर पहुंची। रास्ते में ही बेटा बोला- -“माँ घर पहुँचकर थोड़ा आराम कर लेना । 4बजे के करीब शेरेटन होटल (Sheraton hotel) में जन्मदिन पार्टी में जाना है।
    मैं जाकर क्या करूंगी?”थके स्वर में बोली।
   “आपका जाना तो बहुत जरूरी है। आज प्रेमा आंटी का जन्मदिन हैं। वे मेरे दोस्त की सासु माँ हैं । आज 75वर्ष पूरे कर लेंगी। उनकी बेटी ने जन्मदिवस मनाने की खूब ज़ोर-शोर से तैयारी की है और आपको खास तौर से बुलाया है।”
   “तब तो जरूर जाऊँगी। चिंता न कर --झटपट तैयार हो जाऊँगी ।’’ मैं उत्साह से भर उठी और सारी थकान भूल गई।
    पाँच बजे के करीब अपनी बहू के साथ शेरटन होटल में जा पहुंची। केवल महिलाओं ही आमंत्रित थीं। प्रेमा जी सोफे पर बैठी थी और बर्थडे केक उनसे कुछ दूरी पर मेज पर रखी पार्टी की शोभा बढ़ा रही थी। 


उस पर उनका ध्यान भी न गया। असल में उनको पता ही नहीं था कि उनके जन्मदिन की पार्टी है। वे तो सोचकर बैठी थीं कि अन्य मेहमानों की तरह वे भी किसी अन्य की जन्मदिवस पार्टी में शामिल होने आई हैं । 
    मैं जैसे ही वहाँ पहुंची मैंने हँसते हुए पूछा –भई,आज की बर्थडे गर्ल कहाँ है? उनकी बेटी अनुपमा ने प्रसन्न मुद्रा में मेरा परिचय  कराया। मैंने उन्हें जन्मदिन की मुबारकबाद दी और कहा- “आज का दिन तो आपका है। आप ही पूरी पार्टी की चमक हैं।

वे चौंकी-“मेरा जन्मदिन!”
   बस एक साथ जोर का शोर हवा में घुल गया- हैपी बर्थ डे टू यू! 

   आश्चर्य मिश्रित खुशी से प्रेमाजी की आँखें भर आईं । एक पल को उनका गला भर्रा गया और अपनी बेटी व पोती को गले लगा लिया।इतना व्यवस्थित आयोजन और इस सरप्राइज़ पार्टी की उन्हें भनक तक नहीं!फिर तो ज़ोर शोर से बधाइयों का तांता लग गया, तालियों की गड़गड़ाहट कानों में रस घोलने लगीं। केक कटी गई और प्रेम से उसका आदान-प्रदान होने लगा। 



इस आयोजन की तैयारी कई महीने से चल रही थी। एक समय था प्रेमाजी को फिल्मी गाने सुनने का बड़ा शौक था। हमेशा गुनगुनाती रहती थीं। उनकी मनपसंद गानों का किसी तरह पता लगाया गया। उनकी बेटी ने वे गाने अपनी सहेलियों को तैयार करने को दिये। और फिर उनकी रिकॉर्डिंग की गई।डिनर करते समय वे गाने सबने सुने। संगीत लहरी ने वातावरण को और भी खुशनुमा बना दिया। प्रेमाजी सोचती ही रह गई कि इन गानों का पता कैसे लगा! हम भी पीछे कैसे रहते! जो मन में आया उसे कविता के रंगों में ढाल अपने नए मित्र के लिए सुना दिया। धीरे धीरे वे अतीत की गलियों में खो गई। खामोश मगर उनके  चेहरे पर अद्भुत चमक की चादर तनती चली गई।  
    वात्सल्यमयी  माँ की आँखों से अगाध स्नेह छलका पड़ता था। प्रतीत होता था मानों उसका वे भार सँभाल नहीं पा रही हैं।नेह सहित गले लगते हुए हम सब प्यारी सी याद लिए एक दूसरे से विदा हुए।  

क्रमश: