लन्दन की एक संध्या
जगजीत सिंह का लाइव कंसर्ट
29 मई,2011रविवार की वह सन्ध्या आखिर आ ही गई जिसका मुझे कुछ दिनों से बेसब्री से इंतजार था। मैं उन दिनों लंदन में ही थी I
बहुत अर्से से उनकी गजलें सुनती आ रही थी पर भारत में उनका कोई भी कार्यक्रम न देख पाई। सौभाग्य से उनकी सुनहरी आवाज सुनने का अवसर लंदन में मिला|
।कार्यक्रम तो 6 बजकर ३० मिनट्स के बाद ही शुरू हुआ था ,लोग बाहर खड़े-खड़े इत्मिनान से बतिया रहे थे ,कोई किसी का इंतजार कर रहा था पर हम तो इतने उत्तेजित थे कि जल्दी से हाल में घुसे और अपनी सीट में धँस गये।खौफ की खिचड़ी दिमाग में पक रही थी कहीं प्रोग्राम शुरू हो गया तो-----।
धीरे –धीरे-सभागार खचाखच भर गया । मंच पर अंधेरा सा था ,वाद्य व कलाकारों का आना-जाना शुरू हुआ ।जरा सी आहट होने या रोशनी होने से हम बच्चों की तरह सीट से उचक-उचककर देखते ---शायद जगजीत सिंह की झलक मिल जाय।
७ बजते-बजते वाद्य संगीत शुरू हुआ ।झिलमिलाती रोशनी के बीच हमारे गजलकार हारमोनियम सँभाले बैठे नजर आये ।शीघ्र ही उनकी उँगलियाँ थिरकती हुई ध्वनियाँ निकालने लगीं।साथ ही वे अन्य वाद्यकलाकारों को आवश्यक निर्देश देने में व्यस्त हो गये ।
एकाएक मधुर स्वर की झंकार से सभागार गूंज उठा।
ठुकराओ कि प्यार करो
मैं सत्तर बरस का हूँ
दिमाग चकराया --यह क्या ?
तभी अगली पंक्ति सुनाई दी-----
हैपी बर्थ डे----हैपी बर्थ डे--
कोना-कोना तालियों की गड़गड़ाहट से सारोवार हो गया I
फिर सुनाई दिया--
मैं नशे में हूँ
जो चाहे मेरे यार करो
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मैं नशे में हूँ।
उन्होंने बताया —
-मैं सत्तर वर्ष का हो गया हूँ और देश-विदेश घूमकर 70कंसर्ट करना चाहता हूँ।
मन ही मन उनके उत्साह व जोश की दाद दी ।
एक अन्य सज्जन ने घोषणा की-------
कार्यक्रम समाप्त होने के बाद बर्थडे केक अवश्य खाकर जायें।उस समय प्रशंसक मन ही
मन उनके दीर्घायु होने की कामना कर रहे थे ।
इसके बाद तो गीत –गजल –पंजाबी संगीत का सिलसिला जो शुरू हुआ तो थमने का नाम ही नहीं!
--तेरा चेहरा सुहाना लगता है----
--दूरियाँ बढ़ती गईं,चिट्ठी का रिश्ता रह गया----
उनकी मनमोहक आवाज का जादू सिर चढ़ कर बोलने लगा।श्रोतागणों ने उनके स्वर में स्वर मिलाकर गाना शुरू कर दिया---
--झुकी –झुकी सी नजर,बेकरार है कि नहीं—
--होठों से छू लो तुम ,मेरा गीत अमर कर दो—
--ये दौलत भी ले लो,ये शोहरत भी ले लो----
--मत छीनो मुझसे मेरी मोहब्बत-----
भावना के वशीभूत आँखों के कोर नम हो उठे।
कार्यक्रम समाप्त होते ही हम बाहर आये ।देखा—कई मेजों पर बड़ी-बड़ी केक रखी हैं।लोग जी भर कर खा रहे हैं।एक केक खतम होती,दूसरी आ जाती!
सब लोग सच्चे दिल से जन्मदिन मनाते नजर आये।वार्तालाप का एक ही विषय था-जगजीतसिंह।
दो केक के पीस हम घर ले गये ताकि परिवार के अन्य सदस्य भी उसे चखकर गजल सम्राट की लम्बी उम्र की कामना करें।
अफसोस! हजारों –करोड़ों दुआयें भी जब 10सितम्बर 2011 को उनके प्राणों की
रक्षा न कर पाईं तो अपनी मजबूरी पर रोना आ गया I
-करोड़ों का दिल जीतकर एक जादुई आवाज अमर हो गई I
-करोड़ों का दिल जीतकर एक जादुई आवाज अमर हो गई I
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