शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

डायरी के पन्ने -कड़ी 6

प्रकाशित -साहित्य कुंज अंतर्जाल मासिक पत्रिका जनवरी के दूसरे अंक 2016  में। 
www.sahityakunj.net
/LEKHAK/S/SudhaBhargava/06_patjhar_se_kinaaraa.htm

                                              कनाडा  सफर के अजब अनूठे रंग       
                                                                  सुधा भार्गव 
17/4/2003 
पतझड़ से किनारा

       आज हम बेटे के  मित्र आलोक के यहाँ दावत उड़ाने गए । वहाँ अन्य जोड़े भी थे । किसी का बच्चा किंडरगारडन में जाता था तो किसी का नर्सरी में । बातों ही बातों में एक ने मुझे बताया –आंटी यहाँ का कायदा मुझे बहुत पसंद आता है । केवल किताबी ज्ञान न देकर शिष्टाचार ,सद्व्यवहार और मानवीय कोमल भावनाओं को उजागर करने पर अधिक बल दिया जाता है पर मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही !ये नियम –कानून ,यह सोच कहाँ विलीन हो गए थी  जब इसी धरती के एक कोने में इराकीय मासूम बच्चों को सदैव के लिए मौन किया जा रहा था ।

        मेरी कुछ स्मृतियाँ  भी पुनर्जीवित होने लगीं और आलोक की बात पर विश्वास न कर सकी।
बात ही कुछ ऐसी थी। कुछ साल पहले की ही तो बात है मेरे मित्र श्रीमन के बेटी –दामाद अपने प्यारे  बच्चे रूबल  के साथ चार साल के लिए लंदन गए। परंतु सास- ससुर की अस्वस्थ्यता के कारण बेटी सुलक्षणा को दामाद जी से  6माह पहले ही भारत लौटना पड़ा। बड़ा अरमान था कि बेटे को कुछ  साल तक वहीं पढ़ाएंगे। उसने नर्सरी से निकलकर कक्षा 2 उत्तीर्ण भी कर ली थी और रूबल वहाँ बहुत खुश था। जब उसे पता चला कि भारत जाने का उसका टिकट खरीदा जा चुका है तो उखड़ पड़ा ।

        तमतमाए चेहरे से उसने प्रश्न किया –माँ ,किससे पूछकर आपने भारत जाने का मेरा टिकट कराया?
सुलक्षणा को इस प्रकार के प्रश्न की आशा न थी। वह हँसते हुए बोली –अरे ,तुम मेरे बिना कैसे रहोगे ?
-पापा तो यहीं रहेंगे !
-तुम्हारे पप्पू तो अस्पताल में मरीजों को देखते रहेंगे,तुम्हारी देखभाल कौन करेगा ?
-मैं अपनी देखभाल करना अच्छी तरह जानता हूँ ।
-कैसे?
-स्कूल में हमें बताया गया है जिनके माँ –पापा अलग रहते हैं या उनका तलाक हो जाए तो उन्हें अपने काम अपने आप करने चाहिए।
तलाक शब्द इतने छोटे बच्चे के मुंह से सुनकर सुलक्षणा का माथा भन्ना गया। फिर भी उसके कौतूहल ने सिर उठा लिया था।
उसने पूछा –मैं भी तो सुनूँ---मेरा लाड़ला क्या –क्या ,कैसे-कैसे  करेगा ?
-घर में अकेला होने पर जंक फूड ,प्रीकुक्ड फूड,फ्रीज़ फूड खाकर और दूध पीकर रह लूँगा। मेरे पास इन्टरनेट से लिए होटल के फोन नंबर भी हैं । डायल करने से वे तुरंत घर में सबवे सेंडविच ,पीज़ा पहुंचा देंगे। माँ ,नो प्रोब्लम !
माँ को झटका सा लगा –वह अपने बच्चे को जितना बड़ा समझती थी उससे कहीं ज्यादा बड़ा हो गया उसका बेटा ।
बुझे से स्वर में बोली –बेटा तुम्हें मेरी याद नहीं आएगी ?
-आएगी मम्मा पर टी वी मेरा साथी जिंदाबाद!
-तुम बीमार हो गए तो मैं बहुत परेशान हो जाऊँगी ।
-अरे आप भूल गईं !आपने ही तो बताया था एक फोन नम्बर जिसे घुमाते ही एंबुलेंस दरवाजे पर आन खड़ी होगी ।
-लेकिन बेटा तुम्हें तो मालूम है कि पापा थक जाने के बाद चिड़चिड़े हो जाते हैं । अगर तुम्हें डांटने लगे तो तुम्हें भी दुख होगा और मुझे भी ।
-देखो माँ! डांट तो सह लूँगा क्योंकि पैदा होने के बाद डांट खाते –खाते मुझे इसकी आदत पड़ गई है पर मार सहना मेरे बसकी नहीं । मुझे स्कूल में अपनी रक्षा करना भी बताया जाता है।
-अपनी रक्षा !
-मतलब ,अपने को कैसे बचाया जाए !
-तुम अपनी रक्षा कैसे करोगे ? मेरे भोले बच्चे के हाथ तो बहुत छोटे –छोटे हैं । प्यार से सुलक्षणा ने रूबल के हाथों को अपने हाथों में ले लिया।
ममता को दुतकारते हुए रूबल ने अपना हाथ छुड़ा लिया –अगर पापा मुझ पर हाथ उठाएंगे तो मैं पुलिस को फोन कट दूंगा। वह पापा को झट पकड़ कर ले जाएगी या उन्हें जुर्माना भरना पड़ेगा। यहाँ बच्चों को मारना अपराध है । मैं आप के साथ भारत नहीं जाऊंगा ,वहाँ मेरे चांटे लगाओगी ।

       सुलक्षणा की इस बात में दो राय नहीं थीं कि उसका बेटा कुछ ज्यादा ही सीख गया है । उसने लंदन छोडने में ही भलाई समझी। उसे एक –एक दिन भारी पड़ रहा था । बेटे के व्यवहार से विद्रोह की बू आ रही थी लेकिन डॉक्टर होने के नाते वह यह भी जानती थी कि उसकी सोच को एक उचित मोड़ देना होगा।

       सुलक्षणा भयानक अंधड़ से गुजर रही थी। यह कैसा न्याय !गलती करने पर माँ –बाप को दंडित करने की समुचित व्यवस्था है परंतु माँ –बाप से जब संतान बुरा आचरण करे तो उन्हें सजा देने या समझाने का कोई विधान नहीं ।
        अपने को संयत करते हुए सुलक्षणा ने बेटे को समझाने का प्रयास किया –बच्चे हम अपने देश में तुम्हारे दादी –बाबा के साथ रहते हैं और एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं।  वे तुम्हारे बिना नहीं रह सकते ।
-बाबा का तो कल ही फोन आया था । पूछ रहे थे ,हम कब वापस आ रहे हैं । उनकी याद आते ही बच्चे  की आँखें छलछला आईं। आखिर जड़ें तो रूबल की भारतीय थीं।

        अब रूबल दूसरी ही दुनिया में चला गया  जहां रिश्तों की महक से वह  महकता रहता था। कुछ रुक कर बोला –दादी तो ज्यादा चल नहीं सकतीं । बाबा को ही सारा काम करना पड़ता होगा । आप भी तो यहाँ चली आईं। मेरे दोस्तों के दादी –बाबा तो यहाँ उनसे अलग रहते हैं । बूढ़े होने पर भी उन्हें बहुत काम करना पड़ता है । कल मम्मा ,आपने आइकिया (I K E A)में देखा था न ,वह पतली –पतली टांगों वाली बूढ़ी दादी कितनी भारी ट्रॉली खींचती हाँफ रही थी । उसकी सहायता करने वाला कोई न था । रूबल का मन करुणा से भर गया ।

         कुछ मिनट  पहले बहस की गरमा गर्मी शांत हो चुकी थी । हरिण सी कुलाचें मारता रूबल का मन अपनी जन्मभूमि की ओर उड़ चला था ।
-मम्मी जब आप लखनऊ में अस्पताल चली जाती थीं तो दादी माँ मुझे खाना खिलातीं ,परियों की कहानी सुनातीं। ओह !बाबा तो मेरे साथ फुटबॉल खेलते थे । अब तो वे अकेले पड़ गए हैं । अच्छा मम्मी !मैं भी चलूँगा आपके साथ । मैं अभी ई मेल बाबा को कर देता हूँ।
       अपने अनुकूल बहती बसंती बयार में सुलक्षणा ने गहरी सांस ली । उसको लगा जैसे पतझड़ उसके ऊपर से गुजर गया ।
क्रमश:

सोमवार, 4 जनवरी 2016

कड़ी 5- बेबी शावर डे


प्रकाशित-साहित्य कुंज अंतर्जाल मासिक पत्रिका जनवरी प्रथम अंक 2016 में लिंक http://www.sahityakunj.net/LEKHAK/S/SudhaBhargava/05_Baby_Shower_Day.htm 

डायरी के पन्ने 

कनाडा सफर के अजब अनूठे रंग
सुधा भार्गव 

12/4/2003

बेबी शॉवर डे

कनाडा पहुँचने के दो दिन पहले बर्फीला तूफान आ चुका था। 10अप्रैल तक सड़क के दोनों ओर बर्फ ही बर्फ  जमी थी।अब यह पिघल गई है। खिड़की से झाँककर इस अनूठे प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठा रही हूँ । आमने खड़ा चिनार का वृक्ष (maple tree) पल्लवविहीन होते हुए भी सूर्य की आभा से जीवन पा रहा है। उसके नीचे बिछी बर्फ की शुभ्रता युद्ध के मँडराते बादलों के मध्य शांति का संदेश देती प्रतीत होती है । अमेरिका –ईराक के युद्ध के समाचार सुनते –पढ़ते कान पक चुके हैं । टी.वी. में देखे हुए रोंगटे खड़े करने वाले दृश्यों से राहत पाने के लिए प्रकृति में खो जाना चाहती हूँ।
आज दोपहर लंच के लिए बहू शीतल की सहेली नमिता के घर जाना है। यहाँ  भारत से आए माँ –बाप को विशेष अनुग्रह द्वारा निमंत्रित किया जाता है । जहां से निमंत्रण मिलता है वहाँ मित्र एक –एक सब्जी , पूरियाँ या मिठाई बना कर ले जाते हैं। इस सहयोग से 30 जनों के खाने का प्रबंध सरलता से हो जाता है । यहाँ यह जरूरी भी है क्योंकि नौकर शाही प्रथा के अभाव में खुद ही मालिक हैं और खुद ही नौकर । शीतल ने भी ले जाने के लिए केक बना ली है वह भी बिना अंडे के । नमिता की माँ अंडा नहीं खाती हैं।
हमने जैसे ही नमिता के घर में प्रवेश किया फोटोग्राफी होने लगी । सबकी नजरे  शीतल पर टिकी थीं । मैं हैरान –यह सब क्या हो रहा है!
बाद में पता लगा कि  मेरे बहू का ही बेबी शावर डे (baby shower day)मनाने का आयोजन है । इस अवसर की सफलता के लिए चुपके –चुपके तैयारियां करके भावी माँ का अभिनंदन तालियों की गड़गड़ाहट व आश्चर्य मिश्रित भाव-भंगिमाओं के साथ किया जाता है । मित्र और रिश्तेदार नवशिशु की कुशलता व उसके आगमन की कामना करते हैं। इससे  वात्सल्य तरंगे झनझना उठती हैं।  जो इस कार्यक्रम के प्रबंधकर्ता होते हैं उनको ही इस उत्सव की जानकारी होती है बाकी सब अनभिज्ञ । इसीकरण मुझे व शीतल को इसके बारे में कुछ पता न था ।
शीतल किसी की मीठी धुन में समा गई। आने वाले बच्चे की सुखद कल्पना से उसके चेहरे पर ताजी गुलाब खिल गए । उसे कुर्सी पर बैठा दिया गया है ताकि थकान उसके लावण्य को कम न कर दे । बारी –बारी से मित्रों ने उपहार देकर अपने  स्नेह धागे से उसे बांध दिया। सारे पैकिट खोलकर वह  सबको दिखा रही है और बेटा पास में बैठा देने वालों की प्रशंसा कर रहा है । शौक व अरमानों से अगर कोई वस्तु भेंट में दे तो उस ही के सामने उसकी तारीफ में दो बोल बहुत जरूरी है –यह मैंने अभी महसूस किया ।
बहुत कुछ तो दिया है दोस्तों ने –मॉनिटर ,डायपर्स ,कॉट,कारसीट आदि –आदि । कोई बेकार का समान नहीं ,यह देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा । इससे नवशिशु के आने के बाद आर्थिक बोझ उठाने में भी सहायता मिलती है। उपहार देने से पहले पूछ लिया जाता है कि क्या चाहिए ?कुछ लोग शिशु पालन से संबन्धित वस्तुओं की सूची बनाकर दुकानदार को भेज देते हैं और बंधुगण अपने पसंद की वस्तु का चुनाव  कर दुकान से खरीद लेते हैं । यदि  भावी माँ –बाप के पास एक ही तरह की वस्तु दो हो जाएँ तो दुकान से उसे बदला भी जा सकता है । बिल होने पर दाम लौटा दिए जाते हैं। वस्तु लौटाने की अवधि 3-4 माह होती है । यह नियम बड़ा ही भला लगा ।न ही अनावश्यक वस्तु का जमाव हो न  पैसा नष्ट हो।
लंच के बाद आत्मीयता से एक दूसरे से  परिचय कराया गया। कनेडियन्,इटेलियन,मराठी,पंजाबी,मद्रासी बंगाली सभी तों हैं। विभिन्न क्यारियों के फूल एक ही क्यारी में नजर आ रहे हैं।
-अब कुछ खेल खेले जाएंगे जिनका संबंध गर्भवती माँ से है। शीतल की दोस्त ने ऐलान किया और मुझसे कहा – आंटी एक बात पूछूं?शैतानी उसकी आँखों से टपक रही थी ।
-हाँ !हाँ पूछो । मैं भी बहुत उत्साहित थी ।
-अच्छा बताइये !शीतल के पेट का घेरा कितना बड़ा होगा ?
मैं तो सकपका गई । जबाब देते न बना। खिसियाई बिल्ली बन मुंह छिपाने लगी । विनोदी लहजे में वह कहने लगी –आंटी आप तो सबसे ज्यादा शिल्पी के पास रहती हैं ,आपको इतना भी नहीं मालूम ! एक क्षण तो मुझे लगा ,वाकई में बड़ी भारी गलती ही गई । मुझे सोच में डूबा देख दूसरी बोली –यह सब हंसी मजाक है ताकि होने वाली माँ को अधिक से अधिक खुश रखा जा सके।
उपयुक्त उत्तर की आशा में उसने प्रश्न दूसरों की तरफ उछाल दिया । कोई संतोषजनक उत्तर नहीं  आने पर  दूसरा प्रश्न पूछा  गया-
-अब यह बताया जाए कि बालक किस तिथि को जन्म लेगा ?सबने अपने अंदाज भरे तीर चलाए । डॉक्टर ने शिशु जन्म की तारीख 8मई बताई थी। मगर यह किसी को मालूम न थी।जिसने 8तारीख के सबसे पास वाली तारीख बताई उसे इनाम दिया गया। तालियों की गड़गड़ाहट ओसकी बूंद बन माथों पर झलक पड़ी।
मेरी  नजरों के सामने 2-3गर्भवती महिलाएँ बैठी है जिन्हें अपने बेबी शावर का बेसब्री से इंतजार है पर विचित्र बात है ऐसी महिला न  उसका प्रबंध कर सकती है और न उसे आखिरी समय तक अपने ही बेबी शावर का पता लग पाता है । हाँ उसका पति अवश्य दूसरों से गुप्त रूप से मिला होता है। शुभ कामनाओं की बौछार करने की बड़ी रोमांचक व अनूठी प्रथा है इस उत्सव की विनोदप्रियता व चुहुलबाजी मुझे अब भी  रहरहकर गुदगुदा देती है।

क्रमश: 

कड़ी 4 -कनाडा एयरपोर्ट


साहित्य कुंज अंतर्जाल मासिक पत्रिका ,जनवरी प्रथम अंक 2016 में प्रकाशित,

लिंक-http://www.sahityakunj.net/LEKHAK/S/SudhaBhargava/04_Canad_airport.htm

कनाडा डायरी 

04 कनाडा एयरपोर्ट

कनाडा एयरपोर्ट पर बहू-बेटे दोनों ही लेने आए थे। दिल से तो मैं यही चाहती थी कि बहू शीतल एयरपोर्ट पर न आए क्योंकि उसका प्रसवकाल निकट था। उसे फुर्ती से अपनी ओर आते देखा ,लगा तो बहुत अच्छा। गृहस्थी की गाड़ी को खींचने वाले दोनों पहिये समान रूप से सक्रिय नजर आए। उन्होंने  हमारे चरण स्पर्श किए और और सीने से लग गए।तीन वर्ष का वियोग क्षण भर में मिट गया।
सफर की सारी थकान हम अपनी मंजिल पर पहुँचते ही भूल गए। कार में एक दूसरे से नजर टकराते ही आँखों में चमक आ जाती।मूक होकर भी हजार बात कह देते। कार रॉकेट बनी हवा को चीरती चिकनी सड़कों पर सरपट दौड़ रही थी। मेरी समझ में नहीं आया –ठंडे सुहावने मौसम में भी बेटे ने कार के शीशे चढ़ा रखे हैं  और एयर कंडीशन चल रहा है।
-यहाँ तो प्रदूषण भी नहीं है । ताजी हवा के झोंके आने के लिए खिड़कियों के शीशे नीचे कर दो। मैंने सलाह दी।
उसने हमारी तरफ का शीशा थोड़ा सा हटा दिया। यह क्या !हवा के तीव्र झोंकों से हम आतंकित हो उठे। दूसरे कार की स्पीड भी बहुत तेज थी। साँय-साँय की आवाज ऐसी कर्णभेदी हो गई मानो जंगल में हलचल मच गई हो।
-अरे बंद कर शीशा । मैं चिल्ला उठी।
-बंद कर दूँ ---। आपजान कर बेटा ज़ोर से बोला और हंसने लगा। अब आया समझ में राज शीशे बंद रखने का।
रोज़लोन कोर्ट में घुसते ही उसके बंगले के सामने खड़े हो गए । सीट पर बैठे ही रिमोट कंट्रोल का बटन दबाने से खुल जा समसम की तरह गैराज का शटर ऊपर जाने लगा। लौंडरी रूम,रसोईघर ड्राइंगरूम पार करते हुए ऊपर जाने लगे। बेटा बहुत विनोदी स्वभाव का है सो सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते उसका टेप रिकॉर्डर चालू हो गया। 
-माँ, सुबह-सुबह ताजी हवा खाने के चक्कर में नीचे का दरवाजा न खोल देना। अलार्म बज उठा तो पुलिस आन धमकेगी और पकड़कर ले जाएगी।
-हम क्या चोर है!
-चोर तो नहीं पर खतरे की घंटी तो बज जाएगी। सुबह उठकर एलार्म का गलेटुआ घोंटना पड़ता है।
-यहाँ भी चोरी होती है क्या।?धनी राष्ट्रों में हमारे देश की तरह गरीबी कहाँ!भार्गव जी बोले।  
-चोरी गरीब ही नहीं करता । आदत पड़ने पर अमीर भी चोरी कर सकता है। चोरी भी तो चौसठ कलाओं में से एक है।  
-अरे वाह !पहले से क्यों नहीं बताया माँ। मैंने बेकार आई.आई.टी. में चार साल गँवाए, यही कला सीखता।
-ओह ,तू तो बहुत खिजाता है। बस मेरी बात पकड़ ली।
शीतल हमारी बातों का आनंद उठा रही थी। व्यवस्थित मास्टर बेडरूम ,बेबी रूम,से होते हुए हम अपने शयनागार में पहुंचे । स्वच्छ चादर व फूलदार लिहाफ हमारा इंतजार कर रहे थे। शीतल के हाथ का खाना खाकर कुछ ही देर में हम शुभ रात्रि कहते हुए उसमें दुबक गए।
दिल्ली में तो मन में उथल पुथल मची ही रहती थी कि बच्चे पराई संस्कृति में रह रहे हैं, कहीं बदल न जाएँ। न जाने किस विचारधारा से टकरा कर सुविधा के जाल में फंस जाएँ पर संस्कारों की जड़ें इतनी मजबूत लगीं कि भटकन की कोई गुंजाइश नहीं दिखाई दी।  
विचारों की घाटियों से गुजरते 2बज गए। दिमाग ने कहा –सोने की कोशिश तो करनी ही पड़ेगी,कल से नए वातावरण से समझौता करने और उसे समझने का श्री गणेश हो जाएगा। कुछ भी हो हम 8 अप्रैल के चले 10 की रात कनाडा अपने घर तो पहुँच ही गए थे सो चिंतारहित चादर तान सो गए ।

क्रमश: