गुरुवार, 22 मार्च 2012

कैम्ब्रिज की वह छात्रा -निहारिका

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की छात्रा  से एक  मुलाक़ात
पिछले साल 2011 में लंदन में एक भोली सी भारतीय लड़की निहारिका से मुझे बड़ी आत्मीयता से बातें करने का अवसर मिला जो अक्टूबर 2011  में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी जाकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू करने वाली थी ।ऐसा अवसर पाने वालों में  अपने परिवार की वह  प्रथम लड़की है ।
  उसके साथ मैं कैम्ब्रिज शहर की सैर करने गई ।  कार से रास्ता तय करते समय उसने बताया --शहर में 31 कॉलेज हैं । इन सबको मिलाकार कैम्ब्रिज कहा जाता है । विद्यार्थी अलग अलग कॉलेज में रहते हैं ,उनकी वहाँ अपनी लाइब्रेरी हैं ,सांस्कृतिक कार्यक्रम अपने अनुसार करते हैं पर कक्षाएं कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में ही आयोजित होती हैं । मैं न्यून हैंस (Newnhans )कॉलेज   में रहूँगी ।

हमारी कार  यूनिवर्सिटी की और बढ़ चली ।   था तो महीना जून का ---लंदनवासियों के लिए वसंत की खुशबू से भरा मास पर मुझे तो ठंड ही लगती थी फिर मौसम भी तो यहाँ का बड़ा चंचल है । घड़ी में धूप ,घड़ी में बादलऔर कभी रिमझिम बरसात । इसलिए बरसाती कोट भी चढ़ा कर गई थी । हमारे साथ निहारिका के चाचा जी भी थे।
यूनिवर्सिटी के चारों ओर दूर -दूर तक फैली हरियाली ,सुगंधित बयार ,खुला आसमान और उसके नीचे ऊंचे -ऊंचे वृक्षों के बीच झाँकती विशाल यूनिवर्सिटी ----यह दृश्य मन मोहने के लिए काफी था ।
यूनिवर्सिटी  का प्रवेश मार्ग

लायब्रेरी में न्यूटन ,सेंट पीटर की हस्तलिपियाँ (manuscript )देखकर चकित रह गए । कवि बायरन (Byron )की तो एक ऐसी कविता देखी जो उसने 10 वर्ष की आयु में अपने हाथों से लिखी थी । सबसे बड़ी बात -पाण्डुलिपियों को बहुत सावधानी से सँजो कर रखा गया है ।
कहीं कक्षाएं चल रही थीं तो कहीं परीक्षाएँ ,चारों ओर शांति का साम्राज्य था और मैं, निहारिका के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने को उतावली हो रही थी सो पूछ बैठी -
  -- तुम्हारी सफलता का राज क्या है ? 

पहले तो वह मुसकराई फिर मृदुल स्वर में बोली --
-सब मेरी सफलता का राज पूछते हैं लेकिन न तो मैंने इसका सपना देखा था और न ही माँ -बाप ने ऐसी मुझसे आशा की थी । पापा कम्प्यूटर इंजीनियर हैं । वे नौकरी के सिलसिले में पिछले पाँच सालों से यहाँ हैं ।यही हम दोनों बहनों की शिक्षा हो रही है ।
मेरी  सफलता में केवल मेरा हाथ नहीं बल्कि परिवार के सदस्यों ,अध्यापकों व मित्रों के अनेक हाथ लगे हैं ।
कहने को तो माँ ने कैमिस्ट्री में Msc . करने के बाद वायु प्रदूषण ( air-pollution )में डाक्ट्रेट की है ,बहुत सरलता से रिसर्च वर्क कर सकती थीं पर उन्होंने घर को प्राथमिकता दी । वे सरल स्वभाव की बड़ी मिलनसार महिला हैं । सबकी मददगार हैं चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या घर का अखाड़ा ।

इसी बात पर मुझे दिल्ली के वे दिन याद आ रहे हैं  जब मैं वहाँ कक्षा 3 में ब्लू बैल इन्टरनेशनल स्कूल  (Blue Bell International School) में  पढ़ा करती थी । स्कूल- बस ,घर से थोड़ी दूर पर रुकती थी , वहीं से बच्चों को स्कूल ले जाती और छुट्टी के बाद उसी  स्थान पर छोड़ देती थी । माँ पड़ोस के बच्चों को जरूरत पड़ने पर बस स्टाप तक छोडतीं । शाम को डांस स्कूल से लौटते समय मेरी सारी सहेलियों को कार में भर लेतीं । हम एक के ऊपर एक गिरे पड़ते। फिर उन्हें घर पहुंचातीं । हफ्ते में3-4दिन तो ऐसा होता ही था ।
-पापा कभी कह देते -तुम्हारी कार तो गंदी रहती है --।
-हँसकर कहतीं ,अरे यह टैक्सी है ,अब थोड़ी तो गंदी रहेगी ।
यूनिवर्सिटी के अंदर निहारिका अपने चाचा जी व लेखिका  के साथ
-तुमको घर में कौन पढ़ाया करता था ?
-हमेशा से माँ ने ही मुझे पढ़ाया । जब तक मेरा गृहकार्य पूरा न हो जाता ,घर से न ही निकलतीं और न ही वे  मुझे निकलने देतीं । उन्हें पढ़ने-पढ़ाने का बड़ा शौक है ।  पढ़ाने का तरीका इतना दिलचस्प है कि जितनी देर वे पढ़ाती उतनी देर मैं  पढ़ती रहती । गणित और विज्ञान से संबन्धित विषयों को इतने विस्तृत रूप से बतातीं कि  कक्षा में मैं अपने साथियों से आगे बढ़ जाती ।
नतीजा यह हुआ कि मैं कक्षा में प्रथम आने लगी ।

-तुम किस अध्यापिका से प्रभावित हुईं ?

खुशहाल बचपन

निहारिका अपने माता -पिता व बहन के साथ
-कोई ऐसी अध्यापिका का नाम याद नहीं आ रहा जिसने मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया हो । हाँ ,माँ मेरी अवश्य गुरू रहीं । घर में आकर कहती ---स्कूल में पढ़ाये गए पाठ को दुबारा पढ़ा दो ,समझ में नहीं आया । मुझे पाठ याद होता तब भी इच्छा रहती --पढ़ाई करते समय वे मेरे पास बैठी रहें -लगता ज्ञान की साक्षात देवी मेरे सामने बैठी है । माँ भी सारा आना -जाना छोड़ बस मेरे पास बैठीं छोटी बहन को पढ़ातीं ,सब्जी काटतीं या फोन करतीं।
-ऐसी खटपट में तुम ठीक से पढ़ पातीं थीं ?मैंने पूछा
.
-मुझे शोर में पढ़ने से कोई फर्क नहीं पढ़ता । फर्क पड़ता था जब माँ दिखाई नहीं देतीं ।  परीक्षा के दिनों में मैं पाठ दोहराती पर उनका पल्लू नहीं छोड़ती थी । माँ के काम का अंत नहीं था ।
-तुम्हारे पापा क्या बहुत व्यस्त रहते हैं जिसके कारण तुम्हें समय नहीं दे पाते हैं ?
प्यारे पापा
-पापा !पापा बहुत हंसमुख और प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले हैं ।   जब भी हम उनके साथ बैठते हैं दिल खोलकर हँसते हैं ---सारे दिन की थकान उतर जाती है । लगने लगता है तपती धरती पर वर्षा की फुआरें पड़ने लगी हैं ।
पढ़ाई कराते समय माँ को उनका भरपूर सहयोग मिला । छुट्टियों मैं वे कहा करते --                           
कक्षा में जो पढ़ा दिया है उससे अगला पढ़कर आगे बढ़ जाओ ।
पापा हमेशा मेरी मंजिल बताते गए । वे मेरे मार्गदर्शक रहे हैं |
-परिवार के किसी अन्य सदस्य से भी क्या तुमने कुछ सीखा ?
-मेरे बाबा इंजीनियर थे ।  मुझे बहुत प्यार करते थे । हम दोनों धीरे -धीरे बात करते ,तीसरे को आता देख चुप हो जाते ।

निहारिका अपनी छोटी बहन और दादी -बाबा के साथ 
                              
मनकी उलझन उन्हें बताती तो उसे सुलझाते । दादी माँ के कारण हिन्दी में मेरे सबसे ज्यादा अंक आते । वे कहीं भी होतीं ,मेरे प्रश्नों के उत्तर लिख कर दे देतीं या फोन पर बतातीं । मम्मी जब नानी से मिलने जातीं तो दादी -बाबा के साथ समय खूब अच्छे से कटता ।
-बहन से तो खूब लड़ाई -झगड़ा होता होगा ।
-वह मुझसे ढाई साल छोटी है । बड़ी प्यारी - सी सबसे अच्छी सहेली । लड़ना -झगड़ना ,रूठना -मनाना तो चलता ही रहता है । उसके बिना मेरा खाना हज़म नहीं होता ।
-तुम बहुत नसीब वाली निकलीं कि बचपन इतना खुशहाल रहा ।
-इसमें कोई शक नहीं । ऐसे हरे-भरे बचपन में मेरी इच्छा पंख पसार कर उड़ने लगी कि मैं आगे बढ़ूँ --आगे बढ़ूँ । इसी भावना स्वरूप मेरे वे ही मित्र बने जो पढ़ते थे --केवल पढ़ने के लिए नहीं अपितु कुछ कर दिखाने को --कोई लक्ष्य पाने को ।
मैं  डांस भी सीखती तो यही सोचकर कि सबसे अच्छा करूं । सबकी निगाहें मेरे ऊपर हों । एक बार मुझे तीन दिनों से बुखार आ रहा था । उन दिनों डांस का कोई प्रोग्राम था । रोज दो -दो घंटे अभ्यास को जाती रही । स्टेज पर जिस समय पैर थिरक रहे थे सारा शरीर बुखार के ताप से झुलसा जा रहा था पर मैंने नृत्य बंद न किया । प्रबन्धक ने माइक पर मेरा नाम लेकर प्रशंसा की तो डांस खत्म होने के बाद भी मुझे लगा ----मेरा अंग -अंग नृत्य कर रहा है ।
-कहा जाता है किसी प्रतिभा से मिलो तो अवश्य पूछो कि उसने क्या -क्या किताबें पढ़ी हैं ?
-मैं बहुत ज्यादा किताबें नहीं पढ़ती हूँ लेकिन कोशिश यही रहती है जहां से भी कुछ सीखने को मिले सीख लूँ ।
-शायद इसी चाह का नतीजा हुआ कि ज्ञान की जड़ें गहरी होती चली गईं और पता भी न लगा । मैंने कहा ।

कैम नदी पर बनी पुलिया


-पता तो लगा----पर जब कैम्ब्रिज में दाखिला मिल गया । एक बार तो न ही मुझे इस पर विश्वास हुआ और न घरवालों को । लेकिन जब यूनिवर्सिटी से आए इस समाचार  को बार -बार पढ़ा तो चारों ओर खुशी की लहरें उठने लगीं ।
ये  लहरें अब भी मुझे निहारिका के चेहरे पर दिखाई दीं ।

बातें करते -करते हम कैम नदी (cam river)की ओर निकल आए । उसकी पुलिया पर खड़े  हुए  ही थे कि पंटिंग (boating)पर नजर टिक गई . लोग इससे अपना खूब मनोरंजन कर रहे थे ।
- तुम्हारी कोई और इच्छा है जिसे तुम पूरा करना चाहती हो ?मैंने निहारिका के मन की थाह लेनी चाही
- इच्छा तो है पर मैं उसका विस्तार चाहती हूँ । मेरी सफलता दूसरों की सहायक हो सकती है
हम भारतीयों में बुद्धि जीवियों की कमी नहीं हैं । लेकिन कैम्ब्रिज में दाखिले के लिए कोशिश कैसे की जाए यह बहुत कम लोगों को मालूम है ।  डॉक्टर मन मोहन सिंह छात्रवृति भारतीय छात्रों के लिए वरदान है I भारत में शिक्षा संस्थाओं की कमी नहीं है पर विदेशों की विशेष संस्थाओं में उच्च शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिल जाए तो क्या बुराई है ।  मेधावी छात्रों को इस ओर अवश्य कदम उठाने चाहिए लेकिन यह बिना माँ -बाप के सहयोग के असंभव है I
मैं निहारिका की इस भावना की कदर करती हूँ और चाहती हूँ कि उसकी इच्छा अवश्य पूरी हो I
यह निहारिका और कोई नहीं, बल्कि वह नन्ही सी परी है जो कुछ वर्षों पहले मेरे ही आँगन में उतरी ,खेली , बड़ी हुई और मुझे दादी माँ कहती है I



* * * * * *

17 टिप्‍पणियां:

  1. निहारिका के सुखद भविष की कामना करता हूँ...ऐसी विलक्षण प्रतिभाएं ही देश का नाम रौशन करती हैं...साधुवाद आपका उनसे मिलवाने के लिए

    नीरज

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  2. निहारिका बिटिया से आपकी कलम के माध्यम से मिलना बहुत अच्छा लगा. उसको और उसकी दादी को बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ.

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  3. लेखन की, और यायावरी की भी सार्थकता को आपने सिद्ध कर दिखाया। आज, जब अधिकतर लेखक अपने 'अहं' से बाहर नहीं आ पा रहे हैं, आपका यह रिपोर्ताज़ एक बच्ची के सुखद भविष्य को और उसे पंख देने वाले कारकों को हमारे सामने खोलता है। आपकी लेखनी यूँ ही समाज के उजले पक्ष को हमारे सामने रखती, कुछ न कुछ देती रहे। हमारी बच्चियाँ माता-पिता और देश का सम्मान बनती रहें।

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    1. खुशी है कि लेखन प्रक्रिया के अंतर्गत आपको यह रिपोर्ताज़ पसंद आया । आपकी दी टिप्पणी पढ़ते समय विद्यार्थी जीवन में पढ़ा एक निबंध याद आ गया -कलम और तलवार । कमाल का निबंध था । उसके लेखक याद नहीं आ रहे ।
      समानता का दावा किया है तो बेटियों को समान तो बनाना ही होगा और इसकी शुरुआत होगी घर से --ऐसी आशा शिक्षित समाज से तो की ही जा सकती है। क्यों ठीक है न !

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  4. निहारिका एक बहुत ही प्यारी और सौम्य बच्ची है और ये गुण उसे माँ से भी मिला है.वह इसी तरह सफल होती जाये.इसके लिए उसका परिवार भी बधाई का पात्र है.

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    1. शिखा जी
      आपने ठीक फरमाया । मैं आपसे पूर्ण सहमत हूँ । लंदन आने पर आपसे अवश्य मिलना चाहूंगी ।

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  5. PRERNADAAYAK SANSMARAN ! NIHARIKA SAFALTA KE SHIKHAR TAK
    PAHUNCHE , DUAA KARTA HUN .

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  6. प्रेरणादायक संस्मरण …………निहारिका की हर इच्छा पूर्ण हो और सफ़लता कदम चूमे।

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  7. शुक्रिया सुधा जी . आपने इतने दिनों बाद भी लेख को ढूंढ कर पढ़ा . यह वास्तव में सराहनीय है .
    प्रतिभाशाली लड़की निहारिका से मिलकर बहुत अच्छा लगा .
    लन्दन में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की सैर में भी बड़ा आनंद आया .
    शुभकामनायें .

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    1. बहुत दिनों से ऐसे लेखों की तलाश थी जो भारतीय परम्पराओं के प्रति डगमगाते विश्वास को अडिग कर सकें । वैज्ञानिक तर्क और वैज्ञानिक सोच ज्यादा कारगार है न कि अंधविश्वास । आपके ब्लॉग पर अब आती रहूँगी ।
      खुशी है आप कुछ पलों के किए ही सही कैम्ब्रिज हो आए ।

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  8. बहुत ही प्रेरणादायक संस्मरण...सफलता निहारिका के कदम चूमे..

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  9. समस्त शुभ कामनाएँ समय -समय पर निहारिका तक पहुँच रही हैं । उसका आप सबको प्रणाम ।

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  10. अनुकरणीय संस्मरण
    शुक्रया मुझे कुछ मिला...
    हौसला बढ़ा मेरा
    सादर

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