लंदन डायरी
2017
21/6/2017
सूर्यदेव का रौद्र रूप
मैं बैंगलोर से चली,बड़ी खुश।
आह !लंदन जा रही हूँ। मिलने वालों ने भी मेरे भाग्य की सराहना की। यहाँ की जमीन पर पैर रखे तो
तापमान 32 डिग्री। चेहरे पर हवाइयाँ उड़ चलीं। अफसोस कर बैठे बैंगलोर में शिमला
जैसी टकराती ठंडी हवाओं को छोड़ कहाँ आन
फंसे! चार दिन बीत गए पर अभी तक मौसम का पारा उतरा नहीं है।
हमारे
बाहर के काम गर्मी से रुक जाते हैं। सोच में पड़ जाते हैं –घर से बाहर निकलने पर चिलचिलाती
धूप में कहीं खोपड़ी गरम न हो जाए ,पानी ले जाना पड़ेगा
आदि-आदि। पर यहाँ के निवासियों को कोई
फर्क नहीं पड़ता। कहते हैं –हम तो धूप के लिए तरसते हैं। यही तो समय है जब ठंड
की ठिठुरन से छुटकारा मिलता है और शरीर पर
चढ़ी कपड़ों की परतें गायब होती हैं।
कुछ भी
हो हमारा दिमाग तो इतनी गर्मी में काम करता नहीं। लोग कहते हैं 25 साल में इतनी
गर्मी पड़ रही है। अगले हफ्ते वर्षा रानी जरूर आएगी। इसी भरोसे समय कट रहा है --- शायद रिमझिम- रिमझिम बारिश शुरू
हो जाय और सूर्य महाराज उसके सामने हथियार डाल दें।
क्रमश:
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें