प्रकाशित-साहित्य कुंज अंतर्जाल मासिक पत्रिका जनवरी प्रथम अंक 2016 में लिंक http://www.sahityakunj.net/LEKHAK/S/SudhaBhargava/05_Baby_Shower_Day.htm
डायरी के पन्ने
कनाडा सफर के अजब अनूठे रंग
सुधा भार्गव
12/4/2003
बेबी शॉवर डे
कनाडा पहुँचने के दो दिन पहले बर्फीला तूफान आ चुका
था। 10अप्रैल तक सड़क के दोनों ओर बर्फ ही बर्फ
जमी थी।अब यह पिघल गई है। खिड़की से झाँककर इस अनूठे प्राकृतिक सौंदर्य का
आनंद उठा रही हूँ । आमने खड़ा चिनार का वृक्ष (maple tree) पल्लवविहीन होते हुए भी सूर्य की आभा से जीवन पा रहा है। उसके नीचे बिछी
बर्फ की शुभ्रता युद्ध के मँडराते बादलों के मध्य शांति का संदेश देती प्रतीत होती
है । अमेरिका –ईराक के युद्ध के समाचार सुनते –पढ़ते कान पक चुके हैं । टी.वी. में
देखे हुए रोंगटे खड़े करने वाले दृश्यों से राहत पाने के लिए प्रकृति में खो जाना
चाहती हूँ।
आज दोपहर लंच के लिए बहू शीतल की सहेली नमिता के घर
जाना है। यहाँ भारत से आए माँ –बाप को विशेष
अनुग्रह द्वारा निमंत्रित किया जाता है । जहां से निमंत्रण मिलता है वहाँ मित्र एक
–एक सब्जी , पूरियाँ या मिठाई बना कर ले जाते हैं। इस सहयोग
से 30 जनों के खाने का प्रबंध सरलता से हो जाता है । यहाँ यह जरूरी भी है क्योंकि
नौकर शाही प्रथा के अभाव में खुद ही मालिक हैं और खुद ही नौकर । शीतल ने भी ले जाने
के लिए केक बना ली है वह भी बिना अंडे के । नमिता की माँ अंडा नहीं खाती हैं।
हमने जैसे ही नमिता के घर में प्रवेश किया
फोटोग्राफी होने लगी । सबकी नजरे शीतल पर
टिकी थीं । मैं हैरान –यह सब क्या हो रहा है!
बाद में पता लगा कि मेरे बहू का ही बेबी शावर डे (baby shower day)मनाने का आयोजन है
। इस अवसर की सफलता के लिए चुपके –चुपके तैयारियां करके भावी माँ का अभिनंदन
तालियों की गड़गड़ाहट व आश्चर्य मिश्रित भाव-भंगिमाओं के साथ किया जाता है । मित्र
और रिश्तेदार नवशिशु की कुशलता व उसके आगमन की कामना करते हैं। इससे वात्सल्य तरंगे झनझना उठती हैं। जो इस कार्यक्रम के प्रबंधकर्ता होते हैं उनको
ही इस उत्सव की जानकारी होती है बाकी सब अनभिज्ञ । इसीकरण मुझे व शीतल को इसके
बारे में कुछ पता न था ।
शीतल किसी की मीठी धुन में समा गई। आने वाले बच्चे
की सुखद कल्पना से उसके चेहरे पर ताजी गुलाब खिल गए । उसे कुर्सी पर बैठा दिया गया
है ताकि थकान उसके लावण्य को कम न कर दे । बारी –बारी से मित्रों ने उपहार देकर
अपने स्नेह धागे से उसे बांध दिया। सारे
पैकिट खोलकर वह सबको दिखा रही है और बेटा
पास में बैठा देने वालों की प्रशंसा कर रहा है । शौक व अरमानों से अगर कोई वस्तु
भेंट में दे तो उस ही के सामने उसकी तारीफ में दो बोल बहुत जरूरी है –यह मैंने अभी
महसूस किया ।
बहुत कुछ तो दिया है दोस्तों ने –मॉनिटर ,डायपर्स ,कॉट,कारसीट आदि –आदि
। कोई बेकार का समान नहीं ,यह देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा ।
इससे नवशिशु के आने के बाद आर्थिक बोझ उठाने में भी सहायता मिलती है। उपहार देने
से पहले पूछ लिया जाता है कि क्या चाहिए ?कुछ लोग शिशु पालन
से संबन्धित वस्तुओं की सूची बनाकर दुकानदार को भेज देते हैं और बंधुगण अपने पसंद
की वस्तु का चुनाव कर दुकान से खरीद लेते
हैं । यदि भावी माँ –बाप के पास एक ही तरह
की वस्तु दो हो जाएँ तो दुकान से उसे बदला भी जा सकता है । बिल होने पर दाम लौटा
दिए जाते हैं। वस्तु लौटाने की अवधि 3-4 माह होती है । यह नियम बड़ा ही भला लगा ।न
ही अनावश्यक वस्तु का जमाव हो न पैसा नष्ट
हो।
लंच के बाद आत्मीयता से एक दूसरे से परिचय कराया गया। कनेडियन्,इटेलियन,मराठी,पंजाबी,मद्रासी बंगाली सभी तों हैं। विभिन्न क्यारियों के फूल एक ही क्यारी में
नजर आ रहे हैं।
-अब कुछ खेल खेले जाएंगे जिनका संबंध गर्भवती माँ
से है। शीतल की दोस्त ने ऐलान किया और मुझसे कहा – आंटी एक बात पूछूं?शैतानी उसकी आँखों से टपक रही थी ।
-हाँ !हाँ पूछो । मैं भी बहुत उत्साहित थी ।
-अच्छा बताइये !शीतल के पेट का घेरा कितना बड़ा होगा
?
मैं तो सकपका गई । जबाब देते न बना। खिसियाई बिल्ली
बन मुंह छिपाने लगी । विनोदी लहजे में वह कहने लगी –आंटी आप तो सबसे ज्यादा शिल्पी
के पास रहती हैं ,आपको इतना भी नहीं मालूम ! एक क्षण
तो मुझे लगा ,वाकई में बड़ी भारी गलती ही गई । मुझे सोच में
डूबा देख दूसरी बोली –यह सब हंसी मजाक है ताकि होने वाली माँ को अधिक से अधिक खुश
रखा जा सके।
उपयुक्त उत्तर की आशा में उसने प्रश्न दूसरों की
तरफ उछाल दिया । कोई संतोषजनक उत्तर नहीं आने पर दूसरा प्रश्न पूछा गया-
-अब यह बताया जाए कि बालक किस तिथि को जन्म लेगा ?सबने अपने अंदाज भरे तीर चलाए । डॉक्टर ने शिशु जन्म की तारीख 8मई बताई
थी। मगर यह किसी को मालूम न थी।जिसने 8तारीख के सबसे पास वाली तारीख बताई उसे इनाम
दिया गया। तालियों की गड़गड़ाहट ओसकी बूंद बन माथों पर झलक पड़ी।
मेरी नजरों
के सामने 2-3गर्भवती महिलाएँ बैठी है जिन्हें अपने बेबी शावर का बेसब्री से इंतजार
है पर विचित्र बात है ऐसी महिला न उसका प्रबंध कर सकती है और न उसे आखिरी समय तक अपने ही बेबी शावर का पता लग पाता है । हाँ उसका पति
अवश्य दूसरों से गुप्त रूप से मिला होता
है। शुभ कामनाओं की बौछार करने की बड़ी रोमांचक व अनूठी प्रथा है । इस उत्सव की
विनोदप्रियता व चुहुलबाजी मुझे अब भी
रहरहकर गुदगुदा देती है।
क्रमश:
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