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बड़े कंधों
का शहर शिकागो की क्रूस यात्रा
शिकागो में हमारे
पास केवल 7दिन थे।
इतने कम समय में ज्यादा से ज्यादा शहर का इतिहास जानना चाहते थे। शिकागो विशाल लेक मिशिगन एवं मिसिसिपी नदी के बीच बसा है। लेक के पास
ही हमारा घर! सो पैदल ही पैदल बड़े से पार्क को पार करते लेक के किनारे
पहुंच गए। धूप का चश्मा ,टोपी ,जाकेट और
पानी ले जाना न भूले। न जाने मौसम का कब मिजाज बदल जाये।
प्राकृतिक सुषमा को
निहारते कुछ देर तक लेक का चक्कर लगाया।
एक मूर्ति को देख रुक गए। कुछ देर उसके शिल्प को देखती रही
जो मुझे मुग्ध किए बिना न रहा। कौतूहल वश
उस पर जड़ी पीतल की पट्टी पर लिखा पढ़ा और कैमरे में कैद कर लिया।
CAPTAIN ON THE HELM
They mark our passage as a race of men,Earth
will not see such ships as those agen."
JOHN MASEFIELD
DEDICATED THIS 19TH DAY OF MAY,IN THE YEAR
2000
TO THOSE COURAGEOUS MARINES WHO GUIDED THEIR
SHIPS
THROUGH PERILIOUS WATERS,CARRING CARGO AND
PEOPLE. THEIR CONTRIBUTIONS
INTERNATIONAL SHIPMASTERS'ASSOCIATION.CHICHGO
LODGE NO.3
SCULPTURE:Michael Martino
झील
के किनारे सफेद ,नीली वाटर टैक्सियाँ
सैलानियों को लुभाने में लगी
थीं।मैं अपने बेटे के साथ वाटर बोट टैक्सी में बैठकर शिकागो नदी के किनारे पहुँच
गई। । शिकागो नदी का इतिहास तो पूरे शहर का इतिहास है। यह
नदी शिकागो शहर से ही गुजरती है।इसी
इतिहास को जानने के लिए हमने
क्रूज में बैठने का इरादा किया । टिकट
लेने के लिए पूंछते -पांछते उस जगह रुक गए जहां एक बोर्ड टंगा था । लिखा
था ….
Shore line sight seeing
फट से टिकट ले ,लहरों के साथ हिलते- झूमते क्रूस पर हम चढ़ गए। नीली -चमकीली लहरों को छूती हवाएँ ठंडी व तेज
थी। हमारे एक साथी की तो टोपी ही उड़ गई और २१ फ़िट गहरी नदी में खेलने लगी लहरों के साथ। हमने तो अपनी टोपी कस कर पकड़ ली और काला
चश्मा नाक पर ज़ोर देकर बैठा लिया। कहने को तो नदी का रंग नीला है पर सेंट पैट्रिक दिवस पर इसे हरे रंग से
रंग देते हैं।
इसमें
बैठते ही जलमार्ग की भव्य उपस्थिति पूरे शहर में महसूस होने लगीं।
दोनों तरफ गगनचुम्बी इमारतों को देख ठगे से रह गए। जो
समृद्ध वास्तु शिल्प का इतिहास बताने में सक्षम हैं। शिकागो दुनिया की पहली
गगनचुंबी इमारत का घर है। सबसे पहले विलियम लेबरन जेनी शिकागो वास्तुकार ने नौ
मंजिल ऊंची होम लाइफ इंश्योरेंस बिल्डिंग बनाई जिसका बाहरी दीवारों सहित पूरा वजन लोहे के फ्रेम पर रखा गया था।
गाइड
ने यह कहकर हमें हैरत में डाल दिया कि 500
से ज्यादा गगनचुम्बी इमारतें
मिट्टी से बनी हैं। इन पर न पानी
का असर होता है और न आँधी -तूफान
का। कुछ इमारतें तो सैकड़ों
वर्ष पुरानी लगीं। लेकिन बड़ी शान से खड़ी अपने अतीत की गाथा कह रही थीं।
बातों
ही बातों में क्रूस मेँ बैठे
एक बुजुर्ग ने बताया -“शिकागो जमीन से ऊपर उठाया शहर है।”
हम तो चौंक पड़े पर पास ही खड़ा एक लड़का चहक उठा-“तब
तो अंकल, शिकागो शहर के
हवाईजहाज़ की तरह पहिये लगे होंगे
।तभी तो यह ऊपर उठ गया।”
उसकी भोली बात से चेहरों पर हंसी मुखर हो उठी।
एक अन्य किशोर भी वाचाल हो उठा -“मुझे तो लगता है
पूरे शहर को जैक लगाकर अपलिफ्ट किया है।”
“ ये सज्जन ठीक ही बोल रहे हैं। शिकागो असल में दलदल वाली जमीन पर बसा है। एक बार हैजे ,टाइफाइड जैसी बीमारियों ने ज़ोर पकड़ा तो सैंकड़ों की संख्या में लोग मरने लगे जी। बाद में पता लगा कि मिशिगन झील और शहर की ऊंचाई एक
होने के कारण जमीन दलदली हो गई है।” गाइड बोला।
“अब तो दलदली नहीं लगती । पानी कैसे सुखा दिया?”
मैंने पूछा।
“मिट्टी का भीगना तो अपने आप ही बंद हो गया जी ,जब शहर को थोड़ा ऊपर उठा दिया।”
“ऐं,
तुम भी वही बात कर रहे हो जो
असंभव है।”
“ठीक ही कह रहा हूँ।
एक तरह से शहर को फिर से बनाया।
दलदली जमीन,फुटपाथ,नालियों को मिट्टी से पाटा । पुरानी इमारतों को ऊपर उठाया। नई इमारतों को ऊंचाई पर बनाया।”
“बड़ी मेहनत और सूझबूझ का काम है यह तो ।मान गए मिट्टी के शहर का लोहा।”
बातों
का बाज़ार गर्म था पर निगाहें सामने ही बढ़ते क्रूज़ पर जमी थी । दोनों तरफ बिल्डिंग को
छूता पानी --टकराती लहरें मीठा सा संगीत पैदा कर रही थीं। बीच में शहर के दो
बिंदुओं को जोड़ते छोटे -छोटे ब्रिज बने थे जिन पर स्ट्रीट के नाम लिखे थे-
जैसे मेडिसन स्ट्रीट ,लेक स्ट्रीट ,क्लार्क स्ट्रीट, हेरिसन स्ट्रीट।। इन पुलों के कारण जल जीवन भी सामान्य था और शहर के
दूसरे हिस्से में पैदल प्रवेश भी सुविधाजनक था। न ट्रैफ़िक न प्रदूषण। मैं तो इन्हें देखती ही रह गई। क्या
अद्भुत संरचना! कुछ ही देर मेँ बैंक , विशाल रंगीन
कांच और अल्मुनियम के भवन ,होटल ,संग्रहालय , क्लब हाई
टावर ,शिकागो
यूनिवर्सिटी सहित चमकती
दुनिया को भी देख लिया।
यहाँ
की श्रम प्रवृति , उन्नतशील औद्योगिक गतिविधियाँ तथा परिवहन व्यवस्था को देख ऐसा लगा जैसे यह बड़े कंधों का शहर हो।