शनिवार, 21 सितंबर 2019

कनाडा डायरी कड़ी ।। 38 ।।


कनाडा डायरी के पन्ने 
प्रकाशित 
अंतर्जाल पत्रिका साहित्य कुंज

साहित्य चर्चा 
सुधा भार्गव 

23 8 2008
      
     कनाडा में भी हिन्दी प्रेमियों की कमी नहीं। ओटावा में रहते हुए मैंने काफी प्रयास किया कि यहाँ के कुछ वरिष्ठ प्रेमियों से मुलाक़ात हो जाए पर निराशा ही हाथ लगी। असल में मैंने यह प्रयास देर से शुरू किया दूसरे मैं भागीरथ महाराज के चक्कर में फंस गई।  पिछले माह उन्होंने बहुत से कवियों और लेखकों  के नाम गिनाकर हमें बहुत प्रभावित कर दिया था साथ ही वायदा भी किया कि आगामी कवि सम्मेलन में मुझे अवश्य बुलाकर ओटावा की कवि मंडली से परिचय कराएंगे। साथ ही कविता पाठ करने का मौका देंगे। सुनते ही हम तो गदगद हो गए और  अपना  कविता संग्रह रोशनी की तलाश में तुरंत उन्हें भेंट किया। कुछ ज्यादा ही  मीठी जबान में उनसे बातें करते रहे जब तक वे हमारे घर रहे। बड़ी ही बेसब्री से इनके आमंत्रण की प्रतीक्षा करने लगे पर वह दिन आया कभी नहीं। एक लंबी सी सांस खींचकर रह गए।
      सविता जी से जो शीतल से परिचित है  पता लगा कि 28 जून को तो वह कवि सम्मेलन हो भी चुका है जिसकी चर्चा मि॰भागीरथ ने की थी। उस कवि सम्मेलन के संगठनकर्ता पूरा तरह से वे ही थे। अब हम क्या करते?हाथ ही मलते रह गए। लेकिन हमसे इतनी नाराजगी! कारण कुछ समझ नहीं आया। कम से कम सूचना तो दे देते । हम इंतजार की गलियों में तो न भटकते।
सविता जी के कारण रश्मि जी से फोन पर मेरा परिचय हुआ।वे साहित्यिक गतिविधियों में बहुत गतिशील रहती हैं। उनके प्रयास से निश्चित हुआ कि 25 अप्रैल को सेंटर लाइब्रेरी के ओडोटोरियम में होने वाले कवि सम्मेलन में मुझे भाग लेने का मौका मिलेगा। दुर्भाग्य से यह कार्यक्रम नहीं होने पाया क्योंकि उस दिन ओटावा के अधिकांश भागों में बिजली चले जाने के कारण सभागार बंद कर दिया गया। ताकि बिजली की खपत कम से कम हो। ओफिस  भी 3-4 दिनों को बंद कर दिए गए ताकि एयरकंडीशन ,कंप्यूटर के चलने से बिजली कम खर्च हो । घरों में बिजली न होने से जन जीवन मुश्किल में पड़ गया। 25 अगस्त का कार्यक्रम 2 सितंबर तक  स्थगित कर दिया गया। हम तो 28 अगस्त को ही भारत आने वाले थे। अब क्या करें?समझ नहीं आ रहा था। ऐसे समय रश्मि जी ने हमें उबार लिया।
       उन्होंने 26 अगस्त की शाम को एक छोटी  सी काव्यगोष्ठी का  अपने ही घर पर आयोजना किया । देखा तो न था उन्हें अब तक पर उनकी मिलनसार प्रकृति सर चढ़कर बोलने लगी।
      फोन पर ही उन्होंने बताया –भारत से संतोष गोयल भी आई हैं। मिलने पर शिकायत भरे स्वर में उन्होंने मीठा सा उलाहना दिया-“आप इतने दिनों से आईं ,हम से बातें भी नहीं कीं। 2-3 कार्यक्रम रखते ,दूसरों से आपको मिलवाते। वैसे भी भारत से आए कलाकारो और साहित्यकारों का हम सम्मान करते हैं।” सुनकर हर्ष हुआ और संतोष कर लिया कि चलो 4-5 लोगों से तो मिल ही लेंगे।
      असल में हमने ही वहाँ की साहित्य मंडली में शामिल होने का समय गंवा दिया। पोती के जन्म  की खुशी में कुछ दिनों को  हम अपने को ही भूल गए। वह जब तीन माह की हो गई तब पेंटिंग या कविता जैसे शौक़ों को खँगालने का मौका मिला। वह नन्ही सी जान तो खुद एक कविता है। यह कविता मैंने जब-जब पढ़ी। जीवन के रंग और भी चटकीले हो गए।
क्रमश:  




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