विषय -त्वचा दान ,संक्षिप्त परिचय एवं उसका महत्व
सुधा
भार्गव
त्वचा दान की अवधारणा एवं उसकी जागरूकता
ईश्वर ने हर जीव को एक सुरक्षा कवच के साथ इस दुनिया में भेजा है और वह है त्वचा। यह प्रदूषण ,बदलते परिवेश में रासायनिक तत्वों और कीटाणुओं से उसके शरीर की रक्षा करता है। लेकिन आजकल इसके क्षत -विक्षत होने में देर नहीं लगती। आए दिन सड़क दुर्घटनाएँ , जलने-जलाने,आग से झुलसने -झुलसाने की आकस्मिक घटनाओं ने इंसान का जीना दूभर कर दिया है। तेजाब फेंककर किसी का जीवन बर्बाद करने की वीभत्स जानलेवा लीला और शुरू हो गई हैं। चोटों और जलने के छोटे घाव पर तो रोगी के बिना जले हिस्से से त्वचा को काट कर डाल दिया जाता है। पर 60-80%शरीर के जल जाने पर रोगी की त्वचा का उपयोग नहीं हो सकता । ऐसे में दान की त्वचा वरदान सिद्ध होती है। जो छ्ह घंटे के अंदर मृतक शरीर के पीठ,पेट या जांघ-पैर से निकालकर त्वचा बैंक में सुरक्षित कर दी जाती है। वैसे तो त्वचा की आठ परतें होती है पर सिर्फ ऊपर की परत ही निकाली जाती है। कैडेवर त्वचा संक्रमण को रोकने, यंत्रणा को कम करने, घावों या जले भाग की चिकित्सा में अद्भुत मददगार है। हालांकि मृत व्यक्ति की त्वचा से की गई अस्थाई ड्रेसिंग विकल्प के रूप में ही कार्य करती है, लेकिन रोगी की त्वचा के उत्थान में यह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसी मनोदृष्टि से त्वचा दान की अवधारणा विकसित हुई । पर जागरूकता की कमी के कारण यह अपने विकास की प्रथम सीढ़ी पर ही प्रतीत होती है।
कुछ दिनों
पूर्व मुझे ही नहीं पता था कि
त्वचा दान क्या है? इसके बारे में अपने मित्रों से बातें कीं तो जाना, शहरी शिक्षित
वर्ग भी मेरी तरह अंजान है। डॉक्टर रिश्तेदारों
को खखोड़ा। उन तक को नहीं मालूम त्वचादान किस चिड़िया का नाम है। पर मैंने उनके दिमागी
दरवाजे पर दस्तक दे ही दी । उन्होंने अपने परिवार में चर्चा की,मित्रों से
बातें की।एक दूसरे के विचार मेरे साथ साझा
हुये । कहने का अभिप्राय केवल इतना है कि त्वचा दान के प्रति दूसरों में जागरूकता फैलाने
से पहले यह अभियान हम अपने से ही क्यों न शुरू करें।कड़ियाँ तो उसमें स्वमेव ही
जुड़ती चली जाएंगी।
हमारा देश विविधता का देश है। धार्मिक
कट्टरपंथी और अंधविश्वासी आत्मा-परमात्मा ,पाप -मोक्ष
के कुंड में स्नान करते रहते हैं । अगले जन्म से
जुड़े अंतिम अनुष्ठानों से हर भारतीय
का अटूट संबंध है । उन्हें समझना -समझाना दहकते अंगारों पर लोटने से कम नहीं।
ऐसी परिस्थिति में त्वचा दान कहने की बात
बहुत भारी पड़ती है। हम भारतीय जानते हैं मरने के बाद शरीर नश्वर है पर तब भी भावनाओं -संवेदनाओं के वशीभूत
अधिकांशतया मृतक शरीर के छिन्न -भिन्न होने की कल्पना से ही सिहर जाते हैं ।
लोगों की सोच
तो लेकिन बदलनी होगी। उन्मादी इंसान के अमानवीय कृत्यों के परिणामस्वरूप 60%से 80
%जले लोगों को बचाने के लिए मृतक की त्वचा
सुरक्षित करनी ही होगी । वृहद
पैमाने पर लोगों में चेतना लानी होगी । इसके
लिए उनके दिमाग में उठने वाले हर प्रश्न का उत्तर देना होगा। जैसे –त्वचा
दान की आवश्यकता क्यों है ?त्वचा कब कैसे और किसकी ली जाती है ? त्वचा सुरक्षित कहाँ रखी जाती है? इससे किस तरह से लोगों की जान बचाई जा सकती है?आदि—आदि। मानसिक तौर से पूर्ण संतुष्ट होने पर ही लोग त्वचा दान की ओर कदम
बढ़ाएँगे।
इन सब प्रश्नों का उत्तर वही दे सकता है जिसको
त्वचा और त्वचा दान से संबन्धित पूरा पूरा ज्ञान हो। इसके लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम
उठाने होंगे।
मेडिकल
स्नातक के पाठ्यक्रम में त्वचा बैंक ,त्वचा दान जैसे विषय भी शामिल होने चाहिए। उसके बाद लेखक
प्रकाशक व स्नातक के सहयोग से ऐसी पुस्तकें प्रकाशित होनी चाहिए जिनमें शरीर रचना
विज्ञान और सर्जरी को त्वचादान से जोड़ दिया जाय। 80%जले हुए लोगों के पुन :जीवन
दान में त्वचादान के महत्व का उल्लेख हो। त्वचा
विशेषज्ञ डॉक्टर्स किताबें लिखें। वे अपने
सकारात्मक प्रेरक अनुभव बताकर लोगों की सोच बदलने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं ।
मेडिकल स्नातक छुट्टी के दिन स्वयंसेवक के रूप में जन संपर्क द्वारा त्वचा दान के
महत्व को उजागर कर लोगों का ध्यान इस ओर
आकर्षित करने में सफल रहेंगे।
त्वचा दान जैसे गंभीर विषय को बाल साहित्य व
किशोर साहित्य से भी जोड़ सकते हैं। कहानी -कविता द्वारा खेल खेल में अति दिलचस्प तरीके से त्वचा
दान की जरूरत व महत्व पर प्रकाश डाला जा सकता है । इससे यथार्थता की भूमि पर पैर
टिकाये इस विषय से वे एकदम अनभिज्ञ न रहेंगे।
तेजाब हमले से पीड़ित लक्ष्मी अग्रवाल के जीवन
पर आधारित मूवी छपाक देख इंसान दर्द से कराह उठता है । जनता का बहुत बड़ा वर्ग एसिड
अटैक के खिलाफ उठ खड़ा हुआ है । जलने -जलाने की घटनाओं पर शॉर्ट मूवीज बनाकर फिल्म
इंडस्ट्री अहम भूमिका निभा सकती है।
त्वचा दान द्वारा स्वस्थ
हुये रोगियों की कहानियों का
प्रचार किया जाना
चाहिए ।
फिल्में, वृत्तचित्र ,मीडिया इस के प्रसार में
मदद करेंगे।
त्वचा बैंक के लाभार्थी भी जोरदार अभियान चलाकर लोगों को प्रेरित कर महसूस
करा सकते हैं कि जीवन समाप्त होने के बाद भी समाज को कुछ देना है ।
अंगदान के नाम से ही लोग डरते हैं ।
डॉक्टर्स तक किडनीदान ,नेत्रदान के लिए आगे नहीं आते हैं। फिर गैर चिकित्सा
व्यक्ति से उम्मेद लगाना बेईमानी सी लगती है। डर दूर करने के लिए उन लोगों से संपर्क किया जाय जिनके रिशतेदारों ने मृत्यु
पर्यंत त्वचा का दान किया या जिन्होंने
त्वचा के दान का मन बना लिया है।उनके अनुभव से अवश्य भय को राहत मिलेगी।
फौलादी इरादों वाली असहनीय यंत्रणा भोगी लक्ष्मी
अग्रवाल ,एसिड अटैक सरवाइवर प्रज्ञा प्रसून जैसे लोगों को विशेष
कार्यक्रमों में निमंत्रित कर जनता से
साक्षात कराया जाए तो उनकी कही-अनकही व्यथा वास्तविकता के कपाट खोले बिना न रहेगी
।
त्वचा को सुरक्षित रखने के लिए त्वचा बैंकों
की संख्या भी बढ़ानी पड़ेगी । डॉक्टर्स को बर्न विशेषज्ञ बनने के लिए उत्साहित करना
होगा। तभी तो जागरूकता के परिणाम अच्छे होंगे।
माना त्वचा दान की प्रक्रिया अभी शैशव अवस्था
में है, प्रौढ़ता तक पहुँचने में उसे वर्षों लग जाएँगे। पर
अंधेरे में बैठने से तो अच्छा है उम्मीद का एक दिया जलायें! क्या जाने उसकी रोशनी
में अनगिनत दिये झिलमिला उठें और हजारों बिलखते- तड़पते लोगों को जिंदगियाँ मुस्करा
उठें।
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अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
जवाब देंहटाएंgreetings from malaysia
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