सोमवार, 5 नवंबर 2012

किशोर डायरी



चौथा पन्ना /सुधा भार्गव 





माँ, अक्सर आप 7बजे तक घर आ जाती हो  आज तो रात के 9 बज गए ।शायद आपके आफिस में मीटिंग थी ।पापा टर्की गए हैं ।आप भी बाहर --पापा भी बाहर ।पापा यह नौकरी छोड़ क्यों नहीं देते ।एक महीने में 20 दिन अमेरिका .इटली ,न जाने कहाँ कहाँ रहते हैं ।आपको मेरे लिए समय  नहीं मगर पापा मौका पाते ही  मेरे साथ गप्पबाजी करते हैं ,बाजार से मेरी इच्छा के जूते ,टाफियां दिलाते हैं । 

एक बार आपने पापा से कहा भी था -बाहर जाने से अच्छा अपने देश की  ही नौकरी अच्छी है ।पापा तो भड़क उठे  -तुम नौकरी क्यों नहीं छोड़ देतीं ।घर को कुशलता से चलाना भी बहुत बड़ा काम है ।तुम्हें कितना पैसा चाहिए ---मैं दूंगा ।घर को बर्बाद होने से बचा लो ।

पापा की आवाज रोनी सी हो गई ।मैं बहुत घबरा गया ।पापा से लिपट गया ।पापा ने गोदी में लेकर मुझे चूम लिया ।समझ नहीं आया पापा मेरी तरह रोये  -रोये  से क्यों हो गए ।वे तो मेरी तरह छोटे नहीं हैं --फिरभी --कोई बात मिलती है हम दोनों की ।

समय काटे  नहीं कट रहा है ।हवा से पर्दा भी हिलता है तो लगता है आप आ गईं ।टी .वी देखते -देखते दस बार नींद के झोंके ले चुका हूँ ।वी डीयो  गेम खेला ,मनपसंद चाकलेट खाई ।आलू चिप्स के तो दो पैकिट खा गया ।डिनर हो गया समझो ।सोना भी चाहता हूँ और नहीं भी ।नींद का समय है नींद तो आयेगी पर आपसे बात नहीं हो पायेगी ।कितनी देर से आपका चेहरा देखने को तरस रहा हूँ

सुबह उठते ही वही भागदौड़ ।काम की भागदौड़ नहीं रहती आपके मोबाईल और टेलीफोन की भागमभाग रहती है ।नानी से आप बहुत देर तक बातें करती हो ।कभी सोचा आप मेरी   माँ हो ,मेरा दिल भी आपके सामने खुल जाना चाहता  है ।माँ की खशबू चाहता है ।चाहता हूँ आप मेरे बालों में अपनी लम्बी -लम्बी उँगलियाँ घुमाओ और मैं गहरी नींद में सो जाऊं ।मुझे अलग कमरे में सुलाती हो ताकि स्वस्थ रहूं ।ठीक ही सोचती हो मगर इस मन का क्या करूं !रात में नींद खुलने पर बाथरूम जाता हूँ ,नींद उछट  जाती है ।डर लगने लगता है । किसी कोने में जंगली बिल्ली नजर आती है ,कहीं सांप देखता हूँ ।काश !आपकी गोद में छिप जाता ।एक दिन आपके कमरे का दरवाजा खड़खड़ा दिया था तो मुझे ऐसे दुत्कार दिया जैसे गली के कुत्ते को भगाते हैं ।

लगता है मन से जरूर  बीमार हो जाऊँगा।

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