शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

आठवाँ पन्ना



 किशोर डायरी /
सुधा भार्गव 


नौकरानी को सुबह आने में देर हो गई | घर में दूध - ब्रेड चाहिये थी ।पापा जैसे ही बाजार जाने को तैयार हुए ,मैंने कहा --मैं दूध ब्रेड लेकर आता हूँ ।
-तुम कहाँ जाओगे ।तुम्हारे हाथ से चोर -उचक्का रुपया छीन कर ले जा सकता  है ।

पापा आपने  मुझे एक पल में ही बता दिया कि  मैं किसी काम का नहीं ।माँ से थोड़ी उम्मीद थी   --पूछा 
--माँ ब्रेड ले आऊँ ।
-नहीं --नहीं,बासी ब्रेड ले आओगे ।सड़क भी ऊबड़ खाबड़ है --गिर पड़ोगे ।घर में ही बैठो ।
मन में उथल पुथल होने लगी --क्या मैं इतना बेबकूफ हूँ ।

थोड़ी देर में रसोई में पानी लेने पहुंचा ।पीछे -पीछे माँ ,आप जा पहुंची--
-क्या करना है ?
--फ्रिज से पानी लूंगा ।
--मैं देती हूँ ,तू  इसे खुला छोड़ देगा ।

छूट्टी  के दिन बस यही नाटक होता है ।जब आप आठ -आठ -घंटे घर से गायब रहती हैं तब भी तो नौकरानी गड़बड़ करती रहती है ।उससे कुछ नहीं कहतीं ।कहें भी कैसे ---ज़रा चूँ चपड़  की तो घर का काम छोड़कर चली जायेगी ।मैं तो घर छोड़कर जा भी नहीं सकता |आप दोनों मेरी मजबूरी का फायदा उठाते हैं ।

मुझे  आप कोई काम नहीं सिखाएंगी----बस डराती रहेंगी या डरती  रहेंगी । माँ--- इतना न डराओ वरना  मुझे कोई  काम ही नहीं आयेगा ।ऐसी जिन्दगी से मैं तंग आ चुका हूँ ।मुझे कायर बना कर रख देंगी ।शुरू में सबसे गलती होती है ।गलती नहीं करूंगा तो सीखूँगा कैसे ?अपने पर भरोसा कैसे होगा ।

क्या आप चाहती हैं --बात -बात पर आपका मुंह ताकता रहूं ,अपने पैरों पर न खड़ा होऊं ।

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