किशोर डायरी /सुधा भार्गव
इस बार लक्ष्य छुट्टियों में नही आ रहा है ।चाचा जी अस्वस्थ हैं ।चाची उनको अकेला छोड़ नहीं सकतीं और लक्ष्य बिना चाची के कहीं रह नहीं सकता ।
आपको जब यह मालूम हुआ तो खुशी -खुशी मुझे चाचाजी के पास भेजने का इरादा बना लिया वह भी एक माह को ।बिना मुझसे पूछे मेरे बार में निर्णय ले लिया ।एक बार तो मुझसे पूछ लिया होता ---।जानता हूँ --बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ --मेरे रहने से आपकी आजादी में खलल पड़ता है ।अब कुछ दिनों को तो बंधन मुक्त हो गईं ।मुझे भी आपकी याद नहीं सतायेगी ---आदत जो पड़ गई है बिना आपके रहने की ।
एक बात नहीं समझ सका ।जब कोई माँ अपने बच्चे की अंगुली पकडे सड़क पर जाती है या उसे दुलारती है ,जब खूँटे से बंधी गाय अपने बच्चे को चूमती -चाटती है तो मेरे सीने में बेचैनी होने लगती है ।दोनों हथेलियों से मुंह ढाप कर जोर- जोर से रोने को मन करता है ।ऐसा मेरे साथ क्यों होता है---- ?
कोई भूख लगने पर रोता है कोई माँ के न होने पर रोता है ,कोई मनपसंद खिलौना न मिलने पर आँसू गिराता है ।मेरे पास तो यह सब कुछ है फिर भी आँखें बार -बार गीली हो जाती हैं ।इसकी भाषा कोई नहीं जानता !
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ओह ... कितनी मासूमियत है इस पन्ने पर ...
जवाब देंहटाएंदीपावली की शुभकामनायें
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