गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

समुद्री क्रूज यात्रा-पीनांग

दूसरा दिन (सोमवार -12.8.05)


पीनांग (मलेशिया की एक स्टेट )की सैर


सुबह 7बजे मैं हड़बड़ाकर उठी। जहाज आज मलेशिया पहुँचने वाला था। तटीय भ्रमण सूचनार्थ पेपर मेज पर रखा था । उसमें अनेक तरह के टूर की व्यवस्था थी। जिनकी कीमतें भी भिन्न थीं। हमारी समझ में न आया कि पीनांग में कहाँ जाने का निश्चय करें। यह मलेशिया की एक स्टेट है और इसी के तट पर जहाज रुकने वाला था ।
नाश्ता करते –करते अनेक पर्यटकों से जानकारी हासिल करके मजबूत इरादा कर लिया कि पीनांग का तृषा राइड(TRISHAW RIDE)और सिटी टूर लेंगे ।ज़्यादातर लोग यहीं जा रहे थे ।

 दोपहर के 12बजे जहाज पीनांग पहुँचने वाला था । हम उत्सुकतावश नीचे डेक पर 11बजे ही पहुँच गए। सुरक्षा जांच आदि समाप्त होने के बाद करीब 40पर्यटक लाइफ बोट पर सवार होकर समुद्र तट पर जा पहुंचे। वहाँ तख्ते की बड़ी -बड़ी मेजें व बैंच पड़ीं थी। टोकरी से बड़े -बड़े नारियल झांक रहे थे । जिसको जो जगह मिली थकान मिटाने को पसर गया। सूर्य महाराज पूरी ताकत से चमक रहे थे। नारियल का मीठा पानी पी कर कुछ शांति हुई ।उसकी मलाई तो बहुत स्वादिष्ट थी।   







हम कुछ देर में ही हयूजैटी की ओर चल दिये । उधर से कोच न.6 की ओर जाना था ।एक महिला कोच न०६ का झण्डा लिए खड़ी थी। बस उसका अनुसरण कर हम कोच में बैठ गए और हम पूछाताछी के झंझट से बच गए ।  

पीनांग ब्रिज से गुजरने के समय गाइड ने बताया कि यहाँ सबसे पहले डच आए थे फिर ब्रिटिशर्स ने अपना झण्डा यहाँ गाड़ा। उन्होंने अपनी रक्षा के लिए सिंगापुर और मलेशिया के बीच नहर बनवाकर उसके ऊपर पुल बनवाया ताकि दोनों में संपर्क स्थापित हो सके। उसी पुल से हम गुजर रहे थे ।
स्थानीय होटल में दोपहर का भोजन करने के पश्चात रिक्शा साइकिल में बैठे । इसको यहाँ तृषा (TRISHAW RIDE) कहते हैं। ये फूलों से सजी सजाई फूलों की खुशबू से भरी एक लाइन में खड़ी थीं ।बहुत देर तक टकटकी लगाए मैं उनकी तरफ देखती रही ।      



 कुछ तृशाएँ बड़ी विचित्र थीं। भारत में पहले साइकिल चालक सीट पर होता है, उसके पीछे सीट पर यात्री बैठे होते हैं पर इन रिक्शाओं  में यात्रियों की पीठ चालक की पीठ की ओर होती है। दोनों खुली सड़क का आनंद ले सकते हैं ।


हमें जार्जटाउन के पुराने हिस्से कैम्पबेलस्ट्रीट पर रिक्शा ने घुमाया । वहाँ घरनुमा दुकाने हैं जहां आभूषणों से लेकर कपड़ो तक की बिक्री होती है। फोर्ट कार्नवालिसपर हम रिक्शा से उतर पड़े। यह किला 1789 में लकड़ी का बनाया था ।परंतु बाद में उसका घेरा कंक्रीट का बनाया गया ।  उसके पुन : निर्माण की योजना 1905 में पूर्ण हुई । आज भी किले के  नक्काशी पूर्ण घर व एतिहासिक तोपें इसके गौरवपूर्ण अतीत का स्मरण कराती हैं ।खुले मैदान वाले अखाड़े में देखने योग्य  कार्यक्रम होते रहते हैं।  
कुछ ही देर में हम क्लान पियर्स (clan piers)पहुँचे। यह ऐसा हार्बर है जहां एक ही वंश के लोग उसी स्थान पर अभी तक रहते हैं जहां वर्षों पहले आए थे।  यह चाइनीज वाटर विलेज है(water village) जो बांस के मोटे –मोटे खंबों पर बनाया गया है। अब तो यह समुद्र की ओर बढ़ता ही जा रहा है ।इसको देखकर तो हम आश्चर्य में पड़ गए।  



ब्रिटिशर्स के समय चायना से 7 जातियाँ यहाँ आईं थीं।इस गाँव में उन्होंने 7 टाउन बसाकर लकड़ी के छोटे -छोटे घर बनाए। आज भी वे उन्हीं में रहते हैं।  सबका व्यवसाय मछली पकड़ना है। लकड़ी के खंबों पर फर्श ,दीवारें ,छ्तें टिकी हैं । दायें –बाएँ बने मकानों के बीच चलने का संकरा रास्ता भी लकड़ी के तख्तों का बना है । रास्ते पर चलते समय हमने उनके घरों में झाँका –फ्रिज ,गैस ,टी वी सभी तो कुछ था । घरों की छ्तें  नीची थीं ।सबसे बड़ी बात खारे पानी से घिरा,काठ पर टिका यह जल गाँव इतना साफ---गंदगी का नामोनिशान नहीं मछुओं की बस्ती में।   
  
घरों के पास ही एक मंदिर में जल देवता स्थापित थे। मछुए उनको प्रणाम करके  उसके आगे से ही  समुद्र में उतरते हैं।उतरने की जगह बहुत सी नौकाएँ बंधी थीं  मंदिर के बाहर गन्ने का छोटा सा पेड़ था । इसकी भी पूजा होती है। गाइड ने ही बताया –जापान ने जब यहाँ बम बरसाया तो सब कुछ नष्ट हो गया परंतु गन्ना ज्यों का त्यों रहा । ऐसे विकट समय में इसका रस पीकर ही मछुओं ने जीवन पाया फिर अपने जीवन दाता को कैसे न पूजें ।
सन 1957 में मलेशिया अंग्रेजों से मुक्त हुआ था। यहाँ 50%चाइनीज ,10%भारतीय हैं।यहाँ की  राष्ट्रीय भाषा मलयी है।
हमने वहाँ अनेक मंदिर देखे जिनसे पीनांगवासियों की धार्मिक रुचि का पता लगता है। खो कोंगसी (kho kongsi) तो शिल्पकला का बेजोड़ नमूना है। खो –चाइनीज परिवार के कुल का नाम है और कोंगसी का तात्पर्य है साझेदारी । हमने जो मंदिर देखा वह नया था पुराना जलकर नष्ट हो गया है  यह तो चारों तरफ से अद्भुत है । मैं तो इसके  केवल आगे का सौंदर्य कैमरे में कैद कर सकी।   


शिल्पकार च्यून चू (Chuan Chew) का यह महान कीर्ति स्तम्भ है । उसकी मूर्ति भी इस देवालय के प्रांगण में है। यह मंदिर सर्वोत्तम लकड़ी को काट –तराश कर बनाया गया। नक्काशी के द्वारा भरे रंगों से उत्पन्न सुनहरी किरणों में पूरा का पूरा मंदिर चमक रहा है ।

 प्रवेश द्वार पर पत्थर के दो ड्रैगन बैठे हुए हैं जिनमें एक नर है और एक मादा । मादा की गोद में बच्चा  है इनको देखकर लगा वे मुस्कान बिखेरते हुए अभिवादन कर रहे हैं । विश्वास किया जाता है कि वे मंदिर के रक्षक हैं
 
एक अन्य मंदिर –वाट चाय मंगकलारन (wat chaiyammangkalaran)के संरचनात्मक कौशल को देखकर हम ठगे से रह गए । यह चाइनीज ,थाई और वर्मी शिल्प नमूनों का सम्मिश्रण है । यह अद्भुत निर्माण 19वीं सदी में हुआ था।  मंदिर के अंदर नयनाभिराम बुद्ध की लेटी प्रतिमा है । 


अपनी विशालता के कारण यह संसार में तृतीय स्थान रखती है । इसकी लंबाई 33मीटर है । भगवान बुद्ध की आंखें और नाखून समुद्री  सीपियों से बने हैं ।सीपी शिल्प में दक्ष कलाकार का हुनर सराहनीय हैं।  रिकलाइनिंग बुद्धा के चारों ओर सोने की पन्नी लिपटी हुई है । उनके पीछे 12 मूर्तियाँ हैं । ये चाइनीज कलैंडर के जानवरों का प्रतिनिधित्व करती हैं ।

अनोखी शिल्प शैलियों के जादू में सैलानी डूब कर रह गए। हमारी भी निगाहें कहाँ हटती थीं। इसका सौंदर्य तो अवर्णनीय है। 




  हमारे टूर का समय केवल 5 घंटे था । गर्मी भी काफी थी इसलिए आर्ट विलेज वाटिक फैक्टरी देखकर लौटने का विचार हुआ।जाते ही वहाँ नारियल का मीठा पानी पिलाकर हमारा स्वागत किया। 

बाटिक फैक्टरी में परंपरागत तकनीक अपनाते हुए मोम और रंगों का प्रयोग होता है। कपड़े के डिजायन बहुत ही सुंदर और जगमग कर रहे थे।  बाटिक शिल्प के दो कार्ड खरीदे जिनमें मछुआरों के जीवन को चित्रित किया गया है।यहाँ भी कितने लुभावने लग रहे हैं। लगता है इन्हें जल्दी से केनवास पर पेंटिंग के रूप में उतार लूँ।    




सर्प मंदिर को देखने गए तो पर वहाँ हमारे रोंगटे खड़े हो गए। 

अंदर ऐसे घूम रहे थे ,झांक रहे थे , लिपटे हुए थे मानो वह उनकी विश्राम स्थली हो । हम तो उल्टे पाँव लौट पड़े तभी वहाँ के धर्माधिकारी ने आवाज दी और कहा –ये विषधारी नहीं हैं और जलती हुई अगरबत्ती के धुएँ से ये बेहोश से रहते हैं । उनकी बात ठीक होगी पर हम खतरों के खिलाड़ी नहीं थे सो जान बचाकर भागे ।

हमारा लौटने का समय हो गया था । पीनांग ब्रिज के पार समुद्री तट पर बिजली समान  फुर्तीली लाइफ बोट पहले से ही हमारी प्रतीक्षा में थी । जलपरी की तरह वह किल्लोल करती हुई स्टार क्रूज की ओर बढ़ चली।

खुले सागर में दूर –दूर तक नौकाओं का जाल बिछा था। डगमगाते जलपोतों को चतुर नाविक बड़े विश्वास व कौशल से बंदरगाह की ओर ले जा रहे थे ।

 नेवीशक्ति सम्पन्न सिंगापुर मलेशिया जैसे राष्ट्रों में न सील मछली का भय न समुद्री शैवाल का । हाँ सूनामी लहरों की याद इन आनंद के पलों में दंश देना न भूलती थी ।
जहाज की सीढ़ियों पर चढ़ते समय रंगमंच के कलाकारों ने हमारा पुन : स्वागत किया मानो हम बहुत भारी विजय प्राप्त  करके आ रहे हों । चाइनीज व्यंजन खाने की इच्छा पूर्ति के लिए हम डेक 6 ,पैवेलियन रेस्टोरेन्ट में चले गए ।
चायना कल्चर के अनुसार वहाँ बड़े –बड़े चीनी फूलदान ,लकड़ी की नक्काशी वाले ड्रैगन देखकर लगा जैसे हम चीन में खड़े हैं ।++
अपने केबिन में जाते ही देखा –फुकेट थाईलैंड भ्रमण की सूचनाओं से भरा पेपर हमारा इंतजार कर रहा है । वह टूर अगले दिन सुबह 8बजे से शाम को 6बजे तक का था । कई तरह के टूर थे । जैसे मनोरंजक टूर ,थाई तेल मालिश टूर । एक हमें पसंद आया –ऑफ शोर एडवेंचर (off shore adventure)। इसमें समुद्री गुफाओं व नौकाओं से संबन्धित कार्यक्रम थे । पर वह हम जैसे सीनियर सिटीजन के लिए न था । हमने फुकेट जाने का इरादा ही छोड़ दिया क्योंकि और कार्यक्रम में हमारी रुचि ही न थी। क्रूस मेन रहकर ही समुद्र का आनंद उठाना ज्यादा ठीक समझा।
स्टार क्रूजर की दुनिया में पिक्चर हाउस आठवे डेक पर था । वहाँ Be Cool पिक्चर देखी पर मन तो चलायमान था ,समय भागा जा रहा था और बहुत कुछ देखना था । एक घंटे के बाद ही  उठकर गेलेक्सी स्टार चले गए ।वहाँ मन बहलाने वाले  कार्यक्रम होते ही रहते हैं।   
उस दिन वहाँ एडल्ट फन टाइम (adult fun time)शुरू हो गया था । उसमें विभिन्न उम्र के जोड़ों को बुलाया गया । दो नव विवाहित थे। अन्य जोड़े की शादी को दस वर्ष और दूसरे की शादी को बीस वर्ष हो गए थे। हमको भी खींच लिया गया । हमारे शादी को चालीस वर्ष हो चुके थे । चुनाव करते समय यह भी ध्यान रखा गया था कि जोड़े अलग- अलग देशों का प्रतिनिधित्व करें । जोड़ों से प्रश्नों की झड़ी शुरू हो गई । प्रश्न इस तरह के थे जिनसे पता लग सके पति पत्नी एक दूसरे की सोच इच्छाओं आदतों व जीवन के महत्वपूर्ण पलों से कितना परिचित हैं ।अत्यधिक सजग वसही ंउत्तर ेदेने वाले  पति -पत्नी हीरो माने गए क्योंकि उन्होंने ज्यादा नंबर लिए।  

एक अन्य खेल में पति को कैबरे डांसर के साथ बॉलडांस करना था । कुछ तो बहुत संकोची थे । एक बेचारा भरतीय तो डांसर का हाथ पकड़ते ही शर्म से पानी –पानी हुए जा रहा था ।

 आखिरी कार्यक्रम को सोच –सोचकर तो अब भी मेरी  हंसी फूटने लगती है । हुआ यूं कि 6कुर्सियों पर 6गठरियाँ रख दीं । अब एक –एक गठरी पत्नियों ने उठा ली । जो गठरी जिसके हिस्से आई उसको उसमें बंधे कपड़े अपने पतिदेव को देने  थे । कुछ लोग चादर तानकर उनके सामने खड़े हो गए ताकि कपड़े बदले जा सकें । तैयार होने पर उनको चादर ओढ़ाकर बैठा दिया गया ।
बारी –बारी से पत्नी ने पति की चादर हटाई और उसका नया रूप दर्शकों के  सामने उजागर किया । कोई साड़ी पहने था तो किसी ने स्कर्ट –ब्लाउज पहन रखा था ,कोई मंकी कैप और मूंछ लगाए बंदर बना मटक रहा था । मेकअप भी उनका नए रूप के अनुसार हंसने –हँसाने वाला था ।

एक वृद्ध सज्जन को जज बनाया गया । इस प्रतियोगिता में भागीदारों को अपनी मोहक अदाओं से जज का दिल जीतना था । मैं तो झिझकते हुए पीछे हट गई लेकिन हमारे कुछ साथियों का व्यवहार,उनका अभिनय काफी उन्मुक्तता लिए था पर जैसा देश वैसा भेष समझकर मनोरंजन के इस रूप का भी अनुभव कर लिया। 
जज साहब प्रतियोगियों के हास –परिहास में बड़े उत्साह से भाग ले रहे थे । वे हाजिरजवाबी में माहिर थे । कहते हैं कला का ज्ञाता छिपते नहीं छिपता । वही प्रतिभागी विजयी हुआ जो छात्र जीवन में कमाल का रंगमंचीय अभिनेता था ।हंसीभरी चुटकियों में आधी रात हो गई ।

 कमरे में पहुँचते ही बालकनी की कुर्सी में धंस गई । अब भी आँखों से सागर नापना चाहती थी। समुद्री ठंडे झोंकों से देह महक उठी । एक पल में मेरा मन न जाने कहाँ –कहाँ हो आया । अंधकार के वक्ष को चाँद की किरणों ने चीर कर रख दिया था ।लहरों पर किरणें अठखेलियाँ कर रही थीं। सोने से अच्छा उसे निरखना अच्छा लगा पर नींद को तो आना ही था सो जल्दी ही हम उसकी गोद  में लुढ़क गए । 


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क्रमश: