शुक्रवार, 23 जून 2017

2017 लंदन डायरी -पहला पन्ना

लंदन डायरी 
2017
पहला पन्ना-18 जून 2017
नए मित्र का जन्मदिवस  
    कौन कहता है विदेश में बसे भारतीय  अपनी जड़ों से कट जाते हैं! भावना शून्य हो रिश्तों की अहमियत भूल जाते हैं! माँ-बाप अपने को  उपेक्षित महसूस करते हैं! मेरा तो अनुभव कुछ दूसरा ही रहा।
    मैं 18 जून को भारत से लंदन दोपहर दो बजे के करीब घर पहुंची। रास्ते में ही बेटा बोला- -“माँ घर पहुँचकर थोड़ा आराम कर लेना । 4बजे के करीब शेरेटन होटल (Sheraton hotel) में जन्मदिन पार्टी में जाना है।
    मैं जाकर क्या करूंगी?”थके स्वर में बोली।
   “आपका जाना तो बहुत जरूरी है। आज प्रेमा आंटी का जन्मदिन हैं। वे मेरे दोस्त की सासु माँ हैं । आज 75वर्ष पूरे कर लेंगी। उनकी बेटी ने जन्मदिवस मनाने की खूब ज़ोर-शोर से तैयारी की है और आपको खास तौर से बुलाया है।”
   “तब तो जरूर जाऊँगी। चिंता न कर --झटपट तैयार हो जाऊँगी ।’’ मैं उत्साह से भर उठी और सारी थकान भूल गई।
    पाँच बजे के करीब अपनी बहू के साथ शेरटन होटल में जा पहुंची। केवल महिलाओं ही आमंत्रित थीं। प्रेमा जी सोफे पर बैठी थी और बर्थडे केक उनसे कुछ दूरी पर मेज पर रखी पार्टी की शोभा बढ़ा रही थी। 


उस पर उनका ध्यान भी न गया। असल में उनको पता ही नहीं था कि उनके जन्मदिन की पार्टी है। वे तो सोचकर बैठी थीं कि अन्य मेहमानों की तरह वे भी किसी अन्य की जन्मदिवस पार्टी में शामिल होने आई हैं । 
    मैं जैसे ही वहाँ पहुंची मैंने हँसते हुए पूछा –भई,आज की बर्थडे गर्ल कहाँ है? उनकी बेटी अनुपमा ने प्रसन्न मुद्रा में मेरा परिचय  कराया। मैंने उन्हें जन्मदिन की मुबारकबाद दी और कहा- “आज का दिन तो आपका है। आप ही पूरी पार्टी की चमक हैं।

वे चौंकी-“मेरा जन्मदिन!”
   बस एक साथ जोर का शोर हवा में घुल गया- हैपी बर्थ डे टू यू! 

   आश्चर्य मिश्रित खुशी से प्रेमाजी की आँखें भर आईं । एक पल को उनका गला भर्रा गया और अपनी बेटी व पोती को गले लगा लिया।इतना व्यवस्थित आयोजन और इस सरप्राइज़ पार्टी की उन्हें भनक तक नहीं!फिर तो ज़ोर शोर से बधाइयों का तांता लग गया, तालियों की गड़गड़ाहट कानों में रस घोलने लगीं। केक कटी गई और प्रेम से उसका आदान-प्रदान होने लगा। 



इस आयोजन की तैयारी कई महीने से चल रही थी। एक समय था प्रेमाजी को फिल्मी गाने सुनने का बड़ा शौक था। हमेशा गुनगुनाती रहती थीं। उनकी मनपसंद गानों का किसी तरह पता लगाया गया। उनकी बेटी ने वे गाने अपनी सहेलियों को तैयार करने को दिये। और फिर उनकी रिकॉर्डिंग की गई।डिनर करते समय वे गाने सबने सुने। संगीत लहरी ने वातावरण को और भी खुशनुमा बना दिया। प्रेमाजी सोचती ही रह गई कि इन गानों का पता कैसे लगा! हम भी पीछे कैसे रहते! जो मन में आया उसे कविता के रंगों में ढाल अपने नए मित्र के लिए सुना दिया। धीरे धीरे वे अतीत की गलियों में खो गई। खामोश मगर उनके  चेहरे पर अद्भुत चमक की चादर तनती चली गई।  
    वात्सल्यमयी  माँ की आँखों से अगाध स्नेह छलका पड़ता था। प्रतीत होता था मानों उसका वे भार सँभाल नहीं पा रही हैं।नेह सहित गले लगते हुए हम सब प्यारी सी याद लिए एक दूसरे से विदा हुए।  

क्रमश:

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें