शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

॥ 4॥ कैम्ब्रिज म्यूजियम,


 कैम्ब्रिज म्यूजियम 
सुधा भार्गव 



Image result for pixel free images cambridge phitzviliyam museum gate


जिन दिनों मेरी पोती केंब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ रही थी उन दिनों मुझे अपने बेटे के साथ कैम्ब्रिज शहर घूमने का अवसर मिला। वहाँ का प्रसिद्ध म्यूजियम भी हम देखे बिना न रहे। बड़ी खूबसूरती से सुनहरे रंग के बने अन्नास व फूल गेट की शोभा बढ़ा रहे थे। 





       कैम्ब्रिज शहर के दिल में बसा फिटजविल्लियम संग्रहालय अनूठी इमारतों में से एक है। इसकी स्थापना 1816 में मेरियन के सातवें विस्काउंट फिटजविल्लियम ने की थी। जिसने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय  में कला संगीत के अपने विशाल संग्रह को दान में दे दिया था। वह कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में  ट्रिनिटी हॉल कालेज का छात्र था। उसने अपने पूरे जीवन में कलात्मक व दुर्लभ चीजों का संग्रह किया। उसे 144 डच चित्र तो अपने दादा की मृत्यु के बाद विरासत में मिले थे। उसने असाधार्ण कृतियों को जोड़कर उन्हें नया स्वरूप दिया जो संग्रहालय की शान बने हुए हैं। उसका खास शौक तो साहित्यिक और संगीत पाण्डुलिपियों के लिए था।

       हम यहाँ प्रसिद्ध कलाकार रूबेन्स ,ब्रेगेल,मोनेट,और पिकासो की पेंटिंग्स व प्रिंट देख आश्चर्य में डूब गए।



प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पेंटिंग्स 















इटेलियन पेंटिंग्स

इस बालिका की भोलेपन को तो बहुत देर तक टकटकी लगाए देखती रही। लगा साक्षात यह मेरे सामने बैठी है।






आश्चर्य जनक पेंटिंग 


 इसको दूर  से देखा तो लगा कि बेलबूटें--फूल-पत्तियाँ रेशम के धागों से काढ़े गए हैं। यह एक शीशे के बॉक्स में सुरक्षित थी। पास आने पर एहसास हुआ की प्राकृतिक रगों से रेशमी कपड़े पर पेंटिंग हुई है। आर्टिस्ट की कलाकारी पर मुग्ध हो उठी। प्राचीन समय में आजकल की तरह बने बनाए ऑइलपेंटिंग या एक्रलिक कलर नहीं होते थे। बल्कि बड़ी मेहनत से ईश्वर प्रदत्त रंगबिरंगे फूल-पत्तियों  से रंग बनाए जाते थे। 




ग्रीस,रोम,मिस्त्र की कलाकृतियों का तो यहाँ भंडार है।  




प्राचीन संरक्षित मिस्त्र की ममी 


कास्य सवार 


 संग्रहालय में  मध्य युग के सिक्कों का अच्छा खासा संग्रह है।जापान और कोरिया से अँग्रेजी  और यूरोपियन मिट्टी के बरतन , काँच ,फर्नीचर,घड़ियाँ ,चीनी जेड और चीनी मिट्टी के बर्तन भी वहाँ अपनी समृद्धि की कथा कहते प्रतीत होते हैं। जिसे सुनने को दर्शक के पाँवों की गति स्वत:ही धीमी  हो जाती है।  


नयनाभिराम चायना पोटरी,पेंटिंग व फोटोज का अद्भुत संगम 


केंद्रीय विस्टा हॉल के बाहर की गई प्रभावशाली सैटिंग


काफी घूमने के बाद थकान हो गई थी । तब भी वहाँ की अनोखी कृतियों को देखते देखते जी नहीं भरा था। बैठे ही बैठे अपनी नजर चारों तरफ घुमाने लगी। जहां तक हो सकता था हर छवि को अपने पटल पर चित्रित कर लेना चाहती थी। जहां जिस हॉल मैं बैठी हूँ ,वहाँ पहले हर कोई प्रवेश नहीं पा सकता था। विशेष प्रतिष्ठित वर्ग के लोग ही अंदर आ सकते थे पर 1848 से यह जनता के लिए खोल दिया गया है। 

                प्रवेश द्वार की सीढ़ियाँ उतरते उतरते भी  संग्रहालय के हर कोने पर दृष्टि अटक जाती थी।



सुंदर प्रतिमाओं वाला प्रवेश द्वार 


म्यूजियम में घूमते हुये  हम  इतिहास व संस्कृति की एक नई दुनिया में पहुँच गए थे। उसकी अनोखी यादें बहुत दिनों से कैमरे में कैद थीं। आज मैंने उन्हें मुक्त कर दिया है । शायद आपको भी वे रोमांचित करें।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें