हृदयग्राही सामुद्रिक यात्रा
-बुधवार 14-9-05
पहले दिन की क्षति पूर्ति करने मैं जल्दी उठ गई और सूर्योदय के समय
की गगन की शोभा और पयोधि की शालीन मुद्रा निरखने लगी। आज तो मुझे कागज के कोरे
टुकड़ों पर सागर राज का हृदय उड़ेल कर रख ही देना था तूलिका से उसमें चमकीले रंग
भरने लगी।
क्रूज पर कार्यक्रम तो
आज भी बड़े लुभावने थे । कहीं नेपकिन फोल्ड करना सिखाया जाना था ,कहीं
सब्जी –फलों को काट –तराशकर उन्हें सुंदर रूप देने का प्रदर्शन । बच्चों –किशोरों
के प्रथक कार्यक्रम थे।बच्चों का स्वीमिंग पुल देख तो मैं चकित रह गई ,एकदम
बालप्रकृति के अनुकूल।

कंप्यूटर सेंटर ,स्वीमिंग
पूल ,जिम,जकूजी –सोना बाथ सेंटर आदि में जाने का तो समय ही
नहीं था। यहाँ पर हर एक की रुचियों का ध्यान रखा गया है। लाफ्टर योगा क्लास में मेरी
जरूर रुचि थी मगर भार्गव जी ने सनराइज़ वॉक
का आग्रह किया । 5 मिनट बॉडी स्ट्रेच कक्षा में भी झांकी मार ली । गाइड ने खड़े होकर
,लेटकर ,इस तरह शरीर के अंगों को तानकर उनमें खिंचाव करना
सिखाया कि सुस्ती ,शरीर का दर्द मिनटों में छूं मंतर हो गया।ब्लू
लैगून एशियन वीस्ट्रो में नाश्ता करके बालकनी में जा बैठे । दोनों तरफ ---खामोश
समुद्र ---दूर --–सपाट दूर ---आकाश समुद्र मिले हुए।एक – दूसरे में खोए,एक
ही रंग में रंगे ,कितना अदूभुत प्रकृति का जलमंच। अजीब सी शांति मन
में समा गई । लहरों को चीरता जहाज आगे बढ़ रहा था ,न कोई रुकावट न कोई बंदिश।
गतिमान के साथ निरंतर गतिमान। काश! मैं भी ऐसा कर सकती ।
देखते ही देखते सूर्य ऊपर चढ़ आया । सूर्य की किरने लहरों पर
पड़ने के कारण वे शुभ्रता छिटकाती चांदी की सी मछलियाँ प्रतीत होती थीं । नीलांबर
में खरगोशी चपलता लिए बादल भी टिकने का नाम नहीं ले रहे थे । सूरज उनकी ओर ललचाई
दृष्टि से देख रहा था । शायद बालकों की तरह उनके साथ आँख मिचौनी खेलने को लालायित
हो ।
दोपहर के भोजन पश्चात स्वागत कक्ष में हमने एक्सेस कार्ड जमा कर
दिए और पासपोर्ट व अन्य कागजात वापस ले लिए।
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स्वागत कक्ष |
केबिन हमें शाम के पाँच बजे छोड़ देना
था । इसलिए सामान उसके बाहर ही रख आए थे ताकि कर्मचारी वहाँ से उठा ले और सिंगापुर
में हमें दे दे। मटरगश्ती करते हुए 4बजे एक रेस्टोरेन्ट में घुस गए । खिड़की के
सहारे रखी कुर्सियों पर बैठकर गरम –गरम चाय –पेस्ट्री का आनंद उठाने लगे लेकिन
हमारा ध्यान खिड़की से बाहर ही था । धरती का छोर दिखाई देने लगा था । जहां से चले
बहीं पहुँचने की प्रतीक्षा करने लगे ।
जलयान के कुछ कर्मचारी भारतीय भी थे। वे बड़े अपनेपन से बातें
करते रहे। उनमें से एक ने आकर बताया –अगले वर्ष स्टार क्रूज भारत में भी बंबई से
चलनेवाला है। इसका नाम है –सुपर स्टार लिब्रा। यह लक्षदीप,कोची
और गोवा जाएगा। मेरे नियुक्ति भी उसी जलयान पर होनवाली है। वह बहुत खुश था क्योंकि
ऐसा होने पर वह भारत में अपने परिवार से मिल पाएगा। ।
पाँच बजते ही डेक 6पर बालकनी क्लास के यात्री पैवेलियन रूम में
बैठ गए। वर्ल्ड क्रूसर श्रेणी के अतिथि डेक 7से सिंगापुर हार्बर उतरने वाले
थे। भीड़ होते हुए भी सब अनुशासनबद्ध,पंक्तिबद्ध
थे।
क्रूज यात्रा खतम होने जा रही थी पर इतनी मनोरंजक और हृदयग्राही
सामुद्रिक सैर से जी न भरा था। लहरों पर ये बिताए चंद दिन जीवन केहसीन पलों में गुंथ गए। हार्बर आने पर हम सीढ़ियाँ उतर रहे थे कि
संगीत उभरा –
ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना-----
पीछे मुड़कर देखा समुद्र ,क्रूज और उसके स्टाफ की हजार हजार निगाहें स्नेह से
हमें देख रही हैं।
मेरे पैर भी तो बड़ी मुश्किल से आगे बढ़ रहे थे। यात्रा से विदाई
का क्षण ऐसी ही मधुर उदासी से भरा होता है । एक ओर यात्रा समाप्ति का दुख तो दूसरी
ओर जन -जन के साथ यात्रा के मधुर अनुभव बांटने का उत्साह ।
समाप्त