हर मोड़ पर फूल बटोरने की कोशिश की गई, जिनकी सुगंध से कदम -कदम पर ऊर्जा मिली। कभी -कभी काँटों की चुभन का एहसास हुआ पर उनकी पीड़ा वीणा की तरह तन -मन को झंकृत करने लगी और कुछ कर गुजरने को जी चाहा ।
क्या यही जीवन का यथार्थ है!
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